(25 मई 1998 के मुजफ्फरपुर में पांचवें बिहार राज्य सम्मेलन में उदघाटन भाषण; समकालीन लोकयुद्ध, 1-15 जून 1998 से. प्रमुख अंश)
नक्सलबाड़ी की चिंगारी बिहार में सबसे पहले इसी जिला मुजफ्फरपुर के मुसहरी में गिरी थी. तीस वर्ष बाद बिहार के सभी अगुआ क्रांतिकारी आज इसी शहर में इकट्ठा हैं, अपने आंदोलन की एक नई शुरूआत करने के लिए. इतिहास का यह नियम है – आंदोलन की शुरूआत, उसकी कुछ उपलब्धियां, फिर एक नई शुरूआत. बेशक, यह नई शुरूआत किसी शून्य से नहीं होती. पिछले अनुभवों से ही जन्मती और संवरती है. उसमें इतिहास की एक निरंतरता होती है. हमने वर्षों में तीखे संघर्ष चलाए हैं. इसमें हमें रणवीर सेना जैसी निजी सेनाओं और पुलिस का दमन आतंक झेलना पड़ा है. बहुतेरे जनसंहार रचाए गए और हमारे अगुआ कमारेडों की हत्याएं की गईं. लेकिन हमने आंदोलन का रास्ता नहीं छोड़ा. हमने बिहार में जो सत्तारूढ़ दल है, उसके भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चलाया. पिछले पांच वर्षों में हमने हर मोर्चे पर लड़ाइयां लडीं. आज हमें तमाम कामकाज का, उसमें आए गतिरोध का शोध करना चाहिए, ताकि बिहार में लोकतंत्र के लिए लड़ाई को हम नए सिरे से शुरू कर सकें. एक नई शुरूआत की बात इसलिए भी कि जनता को गोलबंद करने का काम कभी पूरा नहीं होता. हमें जनता को नए नए सिरे से जगाने, संगठित करने, नई पहल लेने, आंदोलन चलाने के लिये नए नारे और नई कार्यशैली विकसित करनी पड़ती है. यह चुनौती हमारे सामने है.
केन्द्र में एक नई सरकार आई है. नई सरकार अपने नेशनल एजेंडे के प्रति कितनी गंभीर है, यह हम नहीं जानते; पर यह जरूर है कि उस पर बात नहीं हो रही. वह जोर-शोर से आणविक विस्फोट करने में लगी हुई है. हमने सीटीबीटी पर दस्तखत करने की मुखालफत की थी. पश्चिमी देशों द्वारा आणविक बमों के एकाधिकार का भी हम विरोध करते हैं. भारत को परमाणविक बम बनाने का विकल्प खुला रखने के हम विरोधी नहीं हैं. पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का भी हम विरोध करते हैं और देश की आजादी पर कोई भी आंच आने से हम कम्युनिस्ट कुर्बानी देने में सबसे आगे रहेंगे. एकाध अपवादों को छोड़ कर – मसलन 1942 के आंदोलन को छोड़ कर – आजादी की लड़ाई में कम्युनिस्टों द्वारा दी गई शहादत इसकी गवाह है. आजादी की लड़ाई में भगत सिंह जैसे तमाम क्रांतिकारी या तो कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रेरित थे या उसके नजदीक आए. लेकिन आरएसएस का ऐसा कोई इतिहास नहीं. माननीय प्रधानमंत्री का कोई इतिहास है भी तो अंग्रेज सरकार के लिए मुखबिरी करने का इतिहास रहा है. आडवाणी के तो समूचे खानदान में से कोई आजादी की लड़ाई में नहीं रहा.
फिर भी सवाल तो यह उठेगा कि भारत की प्रतिरक्षा को खतरा क्या था कि अणु बम बने? चीन से दोस्ती का माहौल बन रहा था. पंजाब, जम्मू-कश्मीर राज्यों में हुए सफल चुनाव पाकिस्तान की ओर से खतरे की तत्कालिकता नहीं साबित करते. तो फिर यह अचानक विस्फोट देश की रक्षा के लिए हुआ है कि गद्दी की रक्षा के लिए? हमारे देश में भाजपा एक ऐसी पार्टी है जो बिना उन्माद फैलाए अपने आधार को न टिकाए रख सकती है, न बढ़ा सकती है. अब चूंकि राममन्दिर कारगर नहीं रहा, सो अंधराष्ट्रवाद का उन्माद पैदा करना उनकी एक जरूरत थी. हमने परमाणु विस्फोट का विरोध इसलिए किया कि यह किन्हीं वास्तविक खतरे के मुद्देनजर नहीं, कृत्रिम खतरों के नाम पर किया गया. तमाम झूठ के सहारे जार्ज शुरू से और सुनियोजित ढ़ंग से चीन विरोधी माहौल बनाने में लगे. देश को परमाणविक विस्फोट के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जाने लगा था.
इन्दिरा जी ने भी परमाणु विस्फोट कराया था लेकिन उसका हश्र क्या निकला – आपात्काल. ये भी संविधान समीक्षा के जरिए राष्ट्रपति प्रणाली के नाम पर ‘एक’ सुयोग्य व्यक्ति अर्थात् एक हिटलर को लाने जैसी बातें कर रहे हैं. भूलवश जो लोग इस उन्माद में बह रहे हैं, उन्हें यह जरूर याद रखना चाहिए. विस्फोट की खुशी रणवीर सेनावालों ने भोजपुर के नगरी बाजार पर चढ़ाई कर आठ गरीबों की हत्या करके मनाई. हमारी पार्टी ने इस विस्फोट के जरिए जो वर्गीय गोलबंदी की जा रही है, उसका विरोध किया है. आप देख रहे होंगे वामपंथ के खिलाफ इन्होंने निशाना साधना शुरू कर दिया है, हम हर कीमत पर इस चुनौती का सामना करेंगे. पोखरण विस्फोट पर प्रधानमंत्री ‘जय जवान! जय किसान!! जय विज्ञान!!!’ का नारा लगा रहे हैं. लेकिन ये नारा बाहरी खपत के लिए है. अन्दर खाते वे खुद – जय ललिता! जय ललिता!! का नारा दुहरा रहे हैं. जयललिता विस्फोट फिर एक नया आकार ले रहा है.
बिहार की राजद सरकार हमारे सामने दुहरी भूमिका में मौजूद है. राज्य की वह सत्ता पक्ष है और केन्द्रीय सरकार के मुकाबले में वह विपक्ष है. उसकी इस दुहरी चरित्र की सरकार के साथ हमारी कार्यनीति दुहरी होगी. अगर राजद सरकार को गिराया जाता है तो हम उसका विरोध करेंगे, लेकिन अंदरूनी तौर पर यह एक प्रतिक्रियावादी सरकार ही है. इसने पूरे बिहार का बंटाधार कर दिया है. उसके पास न कोई नया कार्यक्रम है, न नया नारा. इसके जनविरोधी चरित्र के खिलाफ हम डट कर लडेंगे.
पिछले लोकसभा चुनाव में वामपंथी दलों में हमारी पार्टी ही एक ऐसी पार्टी थी जिसने सबकुछ के बावजूद अपना आधार बढ़ाया है. सबसे बड़ी वामपंथी पार्टी बनने के लिए हमारे सामने अनुकूल परिस्थिति है. हम राजद के सामाजिक न्याय के पाखंड का विरोध करके ही आगे बढ़ सकते हैं, लालू के पीछे-पीछे चल कर नहीं. सीपीआई-सीपीएम का यह रास्ता गलत साबित हो चुका है. हमारा रास्ता ही वामपंथ के विकास का सही रास्ता है. इसके और समृद्ध करने की जरूरत है.
हमें कम्युनिस्ट कार्यशैली को विकसित करना होगा. ऊपर के फैसलों को आंख मूंद कर लागू करना, शासन-प्रशासन से दाएं-बाएं करके, सोर्स-पैरवी लगाकर काम करा लेना कम्युनिस्ट कार्यशैली नहीं हो सकती. बड़ी एकता के लिए काम करना – एकता नजदीक के साथियों से ही नहीं; अपनी पूरी कमेटी, पूरी पार्टी कतारों और हर तबके के लोकतंत्र पसंद लोगों के साथ एकता कायम करना – यह बड़ी एकता हमारी कम्युनिस्ट कार्यशैली का अंग है.
सामाजिक जांच-पड़ताल के बगैर अपने प्रचार को सृजनात्मक और जीवंत बनाना संभव नहीं है. इस कार्यशैली के न होने से एक बड़ा लोकतांत्रिक आंदोलन का मोर्चा जो हमें खड़ा करना है हम नहीं खड़ा कर पा रहे हैं. आपका सम्मेलन कम्युनिस्ट कार्यशैली के इस महत्वपूर्ण प्रश्न पर जरूर गौर करेगा. पूरे बिहार में लोकतंत्र की आकांक्षा को मूर्त रूप देने की जिम्मेदारी हमारी पार्टी पर है और इसका अवसर भी है.
हमारी नई शुरूआत का लक्ष्य इस बार एक ऐसी बड़ी छलांग लगाना होना चाहिए कि हम पूरे बिहार की आकांक्षाओं को मूर्त रूप देने वाली सबसे बड़ी, मजबूत और लड़ाकू पार्टी बन कर उभरें. दक्षिणपंथी सत्ताधारी ताकतों का धावा बढ़ गया है. उसका मुकाबला सिर्फ कम्युनिस्ट क्रांतिकारी ही कर सकते हैं, दूसरा कोई नहीं. हमारी पार्टी को यह चुनौती कबूल करनी होगी.