गत 6 जुलाई को 28 वर्ष की उम्र में कामरेड केशो ने शहीद की मौत धारण की.
केशो बिहार के भोजपुर जिले से आये एक किसान थे. पार्टी से उनका संबंध 1975 में हुआ था. पार्टी की सशस्त्र यूनिट के एक महत्वपूर्ण सदस्य के नाते उन्होंने वर्ग दुश्मन एवं पुलिस के खिलाफ कई सशस्त्र ऐक्शनों में भागीदारी निभाई थी. कालक्रम में वे पार्टी के एक महत्वपूर्ण संगठक बन चुके थे. वे पार्टी की तीसरी कांग्रेस के प्रतिनिधि भी थे.
पार्टी ने उन्हें एक विशेष काम की जिम्मेवारी दी थी. इसके अतिरिक्त वे रोहतास जिले में पार्टी की नेतृत्वकारी टीम के सचिव नियुक्त किये गये थे.
हरिजन जाति के बीच से आये एक अगुआ भूमिहीन किसान योद्धा ने किस तरह धीरे-धीरे अपनी सैद्धांतिक, राजनीतिक और सांगठनिक क्षमता को बढ़ाकर खुद को एक सचेतन सर्वहारा योद्धा और कम्युनिस्ट में रूपांतरित कर लिया, इसकी चमत्कारपूर्ण मिसाल हैं कामरेड केशो.
पार्टी के संपर्क में उन्होंने राजनीतिक और विचारधारात्मक शिक्षा प्राप्त कर एक कठिन लड़ाई संचालित की और एक दीर्घ प्रक्रिया के दौरान वे पार्टी के नेता बन चुके थे. इस प्रकार वे एक ऐसे पार्टी नेता थे जिनका जनता के साथ घनिष्ठ संबंध था और जिन्होंने खुद भी लड़ाई लड़ने की क्षमता का परित्याग नहीं कर दिया था.
वे पार्टी के एक कुशल योद्धा थे. एक अत्यंत कठिन और विशेष किस्म के काम को संपन्न करने के लिए पार्टी उनपर निर्भर थी. अपनी संपूर्ण क्षमता के साथ उन्होंने इस दायित्व को निभाया और इस दायित्व को पूरा करने के क्रम में ही अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया.
विगत कई वर्षों के बीच पार्टी को हुई अनेक क्षतियों में उनकी मृत्यु सबसे बड़ी क्षति है. उनकी बेमिसाल जीवन-यात्रा से सामान्यतः सभी कामरेडों को और विशेषकर भूमिहीन गरीब किसान योद्धाओं को अवश्य शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए.
हमारे घनिष्ठ कामरेडों के बीच वे अन्यतम थे. उनका प्रेमपूर्ण चेहरा, उनकी सर्वहारा दृढ़ता और सृजनशील चिंतनधारा मेरी स्मृति में हमेशा जीवित रहेगी.
उनके शोकमग्न परिवार और उनके सहयोद्धाओं के प्रति मैं अपनी हार्दिक सहानुभूति प्रकट करता हूं. उनकी मृत्यु के लिए उत्तरदायी शत्रुओं को निश्चित रूप से दंड देना होगा और उन्होंने जिस विशेष कार्यक्षेत्र में एक शक्तिशाली स्तंभ खड़ा किया है उस कार्य को हमलोगों को अवश्य ही पूरा करना होगा.
20.07.1985