(बथानी टोला जनसंहार पर भाकपा (माले) की केंद्रीय कमेटी द्वारा जारी फोल्डर)
जैसा कि आप जानते हैं भोजपुर के बथानी टोला में 11 जुलाई 1996 को रणवीर सेना के आदमखोर दरिन्दों ने बर्बर व वीभत्स हत्याकांड रचाया. इसमें 20 महिलाओं और 8 वच्चों को नृशंसतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया गया. एक गर्भवती महिला को तलवार से पेट चीरकर मारा गया. एक बच्चे के नारियल सरीखे सिर को न केवल तलवाल से फोड़ दिया गया बल्कि उससे पहले उसकी जुबान रेत दी गई. एक अबोध बच्चे के हाथ की उंगलियां काट दी गईं. मां की गोद में चिपके एक नवजात शिशु और मां दोनों को न केवल तलवाल से गोद-गोद कर मार डाला गया बल्कि घर में आग लगाकर उन्हें जला दिया गया. एक नौजवान हो रही लड़की के साथ बलात्कार करके, स्तन काट लेने जैसी नृशंसताएं की गईं. घायलों में दो बच्चों की बाद में मौत हो गई. बेशक, यह एक घोर वहशियाना हरकत है जिसकी दूसरी मिसाल आजाद हिंदुस्तान में शायद ही मिले. आखिर इस दिल हिला देने वाली घटना की पृष्ठभूमि क्या है? इसके पीछे की हकीकत क्या है?
यहां यह जानना जरूरी है कि यह आदमखोर रणवीर सेना पिछले डेढ़ सालों से प्रतिबंधित है और इससे आम जनता की सुरक्षा के नाम पर ही घटनास्थल के नजदीक तीन-तीन पुलिस कैंप तैनात थे. प्रशासन को भी मौखिक व लिखित रूप से सूचना देकर बार-बार जनसंहार की आशंका व्यक्त की गई थी. लेकिन आला अधिकारियों ने कोई भी एहतियाती कदम नहीं उठाया और पुलिसवाले तमाशबीन बने रहे. मुख्यमंत्री ने इलाके का दौरा किया और स्थानीय पुलिसवालों को निलंबित कर दिया. लेकिन जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक के खिलाफ उन्होंने कोई भी कदम उठाने से इनकार कर दिया. अपने भाषणों में उन्होंने बड़ी-बड़ी लफ्फाजी भरी बातें कीं. लेकिन व्यक्तिगत बातचीत में उन्होंने पत्रकारों से कहा कि ‘माले वाले आर्थिक नाकेबंदी करेगें तो वो सब क्या करेगा?’ देश के गृहमंत्री वहां पहुंचे. न उन्होंने घटनास्थल पर उपस्थित जनता से कुछ जानना चाहा न पटना में हमारे पार्टी प्रतिनिधि से मुलाकात की. मुख्यमंत्री व नौकरशाहों से ली गई जानकारी के आधार पर बिहार पुलिस के आधुनिकीकरण का वायदा करके वे दिल्ली लौट आए, गोया पुलिस व प्रशासन की निष्क्रियता का कारण हथियारों की कमी थी. पत्रकारों से उन्होंने फरमाया कि भूमि सुधार न होने की वजह ऐसी घटनाएं बिहार में होती रही हैं (और शायद होती रहेंगी). यह कहते वक्त गृहमंत्रीजी शायद भूल गए थे कि पिछले छः वर्षों से बिहार में उन्हीं की पार्टी द्वारा समर्थित लालू यादव की प्रगतिशील सरकार चल रही है. गृहमंत्री ने अवश्य ही बिहार प्रशासन को दोषी बताया और एक अखबारी रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने जिला प्रशासन की मिलीभगत की बात भी कही. लालू यादव के दबाव के सामने हालांकि बाद में वे इस वक्तव्य से मुकर गए.
गृहमंत्री द्वारा जिला प्रशासन पर इतना बड़ा आरोप लगाने के बावजूद, विधानसभा की सर्वदलीय कमेटी द्वारा डीएम-एसपी को दंडित करने की अनुशंसा के बावजूद बिहार सरकार ने कोई भी कदम उठाने से इनकार कर दिया है. उल्टे, इस मांग पर शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक आंदोलन करनेवालों पर उन्हीं आपराधिक जिला प्रशासकों द्वारा लाठियां बरसाई जा रही हैं, आमरण अनशन पर बैठे जनप्रतिनिधियों को जेलों में ठूंसा जा रहा है. अरवल जनसंहार की कहानी एक बार फिर दोहराई जा रही है जिसमें तमाम सरकारी व गैर सरकारी जांच रिपोर्टों में दोषी करार दिया गया हत्यारा एसपी कासवान लालू यादव की कृपा से आज भी अपने पद पर जमा हुआ है. रणवीर सेना के खिलाफ कोई पुलिस कार्यवाही नहीं हो रही है. दूसरी ओर पूरी सरकारी मशीनरी एवं शासक वर्ग की पार्टियां ऊलजलूल तर्कों के सहारे रणवीर सेना को बचाने और दोष हमारी पार्टी के मत्थे मढ़ने की साजिश रच रही हैं.
हमारे कुछ तथाकथित वामपंथी बंधुओं ने तटस्थता का रवैया अपना रखा है. आज गरीब भूमिहीन किसानों व सामंत कुलकों के बीच उन्हें फर्क नजर नहीं आता. दलितों-अल्पसंख्यकों और सवर्ण जाति दंभ की ताकतों के बीच भी उन्हें फर्क नजर नहीं आता. न ही इस घटना में जीता-जागता साम्प्रदायिक पहलू उन्हें नजर आता है और न ही दुधमुंहे शिशुओं और महिलाओं की यह नृशंस हत्या उनके विवेक को झकझोरते हुए उन्हें सड़कों पर उतरने की प्रेरणा देती है. उल्टे, वे भी प्रशासन के सुर में सुर मिलाकर, घटना की सही पृष्ठभूमि को ओझल करने व प्रगतिशील जनमत को भ्रमित करने में लगे हुए हैं. ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि हम इस घटना की पृष्ठभूमि की सही जानकारी आपको दें जो अखबारों के माध्यम से आप तक कम ही पहुंची है.
भोजपुर के गरीब किसानों के सशक्त आंदोलन की चोट से सामंतशाही की ढहती इमारत को बचाने के उद्देश्य से ही आज से दो वर्ष पहले रणवीर सेना का जन्म हुआ जिसका घोषित उद्देश्य है, “भोजपुर को रूस या चीन नहीं बनने देंगे, बंदूकों के बल पर भोजपुर क्या, सारे देश से लाल झंडे को उखाड़ फेंकेंगे और पुरखों की बनाई हुई जो सामाजिक व्यवस्था व रीति-नीति चलती रही है उसे फिर से बहाल करेंगे.” अपने जन्म से अबतक इस सेना ने भोजपुर के सहार व संदेश इलाके में करीब एक सौ लोगों की हत्या की है जिसमें अधिकांश बच्चे, महिलाएं, बूढ़े एवं निरीह व निर्दोष लोग ही हैं जो सभी दलित, अति पिछड़ी जातियों व मुस्लिम सम्प्रदाय से आते थे. रणवीर सेना के खिलाफ प्रशासनिक कार्यवाही की मांग पर आरा शहर में हमारी पार्टी के धरने पर तथा दिल्ली रैली में जाते लोगों पर ग्रेनेड बरसाए गए जो पूरी तरह फट ना पाने की वजह से खास नुकसान नहीं पहुंचा सके, वरना सैकड़ो लोग मारे जा सकते थे. शुरूआत में इसके नेतृत्व में कांग्रेसी थे, बाद में नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी के हाथों में चला गया और इसी के साथ
अल्पसंख्यक संप्रदाय को खासतौर से निशाना बनाया जाने लगा. भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के ताबडतोड़ दौरे हुए, मीटिंगें हुईं और पिछले लोकसभा चुनाव में रणवीर सेना ने लिखित फतवा जारी कर भाजपा को समर्थन देने का एलान किया, जिस फतवे की कापी खुद सरकार ने विधानसभा में पेश की.
लोकसभा चुनावों में भाजपा-समता गठजोड़ के अच्छे प्रदर्शन के बाद से ही हर जगह दबंग सवर्ण जातियां और कुलक-सामंती ताकतें हमलावर हो गई हैं. जनता दल का नपुंसक नेतृत्व इन ताकतों से सीधा मोर्चा लेने के बजाए इनके तुष्टीकरण की नीति पर चल रहा है. खासकर भोजपुर जिले में दलित व अति पिछड़ी जातियां पूरी तरह माले के साथ हैं और जहां सामाजिक न्याय का संघर्ष लाल झंडे के तले लड़ा जा रहा है, वहां जनता दल माले की ताकत को रोकने के लिए सामंतों के साथ खुलेआम हाथ मिलाता है. वहां आपको लालू यादव कुख्यात सामंत के साथ एक ही मंच पर नजर आएंगे. जनता दल सांसद और मंत्री चन्द्रदेव वर्मा रणवीर सेना पर से प्रतिबंध हटाने की मांग करते दिखाई देंगे और जनता दल के कई नेता एवं रणवीर सेना के गुंडे आपस में गलबहियां करते नजर आएंगे. यही वह राजनीतिक पृष्ठभूमि है जिसने रणवीर सेना का मनोबल बढ़ाया है और प्रशासन को उसके पक्ष में खड़ा कर दिया है.
1978 के ग्रामपंचायत चुनाव में मो. युनुस तत्कालीन मुखिया केशो सिंह को हरा कर मुखिया बने. उसके बाद घटित घटनाओं का सिलसिला देखने से यह बात साफ नजर आने लगती है कि मो. युनुस का मुखिया पद पर चुना जाना साम्प्रयादिक तनाव का कारण बन गया. सवर्ण सामंती मिजाज इस हार को बर्दाश्त नहीं कर सका. उसने मुसलमानों के साथ रगड़ा शुरू किया. पहले तो इमामबाड़ा के सामने पड़नेवाले रास्ते पर कब्जा किया और फिर इमामबाड़ा पर कब्जा जमाया. इसके खिलाफ अंचलाधिकारी के पास 13 अगस्त 1991 को एक केस किया गया. अंचलाधिकारी ने एक कर्मचारी को जांच की जिम्मेदारी सौंपी. उसने अपनी जांच रिपोर्ट में अतिक्रमण की पुष्टि की पर अंचलाधिकारी ने कोई फैसला नहीं दिया. 1992-93 में सामंतों ने इमामबाड़ा की ईंटें उखाड़ फेंकीं और वहां गड़े झंडे को फाड़-फोड़ कर उसे जला दिया. इसके खिलाफ स्थानीय थाने में प्राथमिक दर्ज कराई गई और मुकदमा किया गया. अभी इसी 23 जुलाई 1996 को यानी बथानी टोला जनसंहार के ठीक 13 दिन बाद अदालत से इस केस का फैसला हुआ. फैसले में कहा गया है कि तथ्यों से पता नहीं चलता कि यहां कोई इमामबाड़ा था.
वहां कब्रिस्तान की जमीन पर भी नाजायज ढंग से अतिक्रमण कर लिया गया है. इसको लेकर मो. नईमुद्दीन ने 1993 में 14 लोगों के खिलाफ मुकदमा दायर किया था और कब्रिस्तान की घेरेबंदी की मांग की थी. पैसे के अभाव में मुकदमे की पैरवी नहीं हो पाई और मुकदमा खारिज हो गया. परन्तु अतिक्रमण बदस्तूर बरकरार है.
रणवीर सेना के लोगों ने कनपहरी(सहार) एवं नवाजीह(तरारी) में कर्बला एवं कब्रिस्तान की जमीन पर कब्जा जमा रखा है जिसकी मुक्ति के लिए 10 जनवरी 1996 को ‘कर्बला मुक्ति जनजागरण मार्च’ का आयोजन किया गया था. सभा से लौट रही जनता पर कनपहरी (खड़ांव के निकट का गांव) में रणवीर सेना के लोगों ने हमला किया जिसका प्रतिरोध किया गया. वहीं से तनाव बढ़ा. गौर कीजिए, इस कर्बला व कब्रिस्तान को मुक्त कराने का कोई सरकारी प्रयास नहीं है. जबकि लालूजी ने घोषणा की है कि सभी कब्रगाहों की घेराबंदी की जाएगी. बहरहाल, रमजान के महीने में 25 अप्रैल को मो. सुल्तान की हत्या कर दी गई. उनकी लाश को रणवीर सेना के गुंडों ने खड़ांव के कब्रिस्तान में दफनाने नहीं दिया. वे वहां भी हत्याकांड के लिए गिरोहबंदी किए हुए थे. आखिर वहां से हटकर बगल के गांव छतरपुरा में लाश दफनाई गई. फिर भी गुंडों को सब्र नहीं हुआ. उसके बाद भी उनके द्वारा खड़ांव के मुस्लिम टोले तथा अन्य माले समर्थकों के घरों पर हमले किए गए और लूटपाट मचाई गई. इसमें 50 परिवार विस्थापित हो गए. उनमें 18 परिवार मुस्लिम थे. मो. नईमुद्दीन के परिवार सहित बहुतेरे लोग बथानी टोला पर जाकर बस गए. मगर ईद की नमाज पढ़ना उनके लिए मुश्किल हो गया क्योंकि मस्जिद रणवीर सेना के इलाके में पड़ती है. बहरहाल, पुलिस बंदोबस्ती में नमाज पढ़ी गई.
लेकिन मामला तब भी खत्म नहीं हुआ. अब बथानी टोला निशाना बन गया और मई से लेकर 11 जुलाई की घटना तक कोई सात बार भीषण हमले किए गए. पुलिस हर बार निष्क्रिय रही. मगर जनता प्रतिरोध कर गुंडों को भगाती रही. आखिर 11 जुलाई को गुंडे सफल हुए और मो. नईमुद्दीन के परिवार के पांच लोगों को कत्ल कर दिया तथा एक बच्चे को घायल कर दिया जिसने हाल ही में अस्पताल में दम तोड़ दिया. मो. नईमुद्दीन और उनकी पत्नी बाहर गए हुए थे, इसलिए बच गए.
कुछ लोग कहते हैं कि घटना की पृष्ठभूमि जमीन और मजदूरी संबंधी लड़ाई है. मगर सच्चाई यह है कि जमीन और मजदूरी का विवाद एक वर्ष पहले ही हल हो चुका था और उस गांव में कोई आर्थिक नाकेबंदी नहीं थी. लोकपक्ष के शंकर शरण जांच टीम की रिपोर्ट बताती है कि वहां जमीन और मजदूरी के झगड़े पहले हल किए जा चुके हैं. लड़ाई का सिलसिला उसके बाद शुरू हुआ है. इसलिए तथ्यगत तौर पर जमीन और मजदूरी का सवाल जनसंहार की पृष्ठभूमि नहीं है. दूसरी बात, हत्या के स्वरूप से जाहिर होती है कि इस तरह की हत्याएं साम्प्रदायिक उन्माद से होती हैं. तथ्यगत एवं तार्किक तौर पर स्पष्ट है कि बथानी टोला जनसंहार की पृष्ठभूमि एवं स्वरूप साम्प्रदायिक है.
हम हमेशा ही शांति व्यवस्था स्थापित करने के पक्षधर रहे हैं. इसीलिए शांतिकामी लोगों की आकांक्षाओं के मद्देनजर हमने शांति की पहल शुरू की. बिहटा (पटना) में स्वामी सहजानन्द सरस्वती किसान महासभा द्वारा आयोजित स्वामीजी के जयंती समारोह के अवसर पर बातचीत की शुरूआत हुई. इस बातचीत में श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा व श्री ललितेश्वर प्रसाद शाही के साथ-साथ भोजपुर के भूमिहास जाति के कुछ मानिन्द लोग थे. हमारी तरफ से केन्द्रीय कमेटी सदस्य व पूर्व राज्य सचिव का. पवन शर्मा थे. बातचीत काफी सकारात्मक थी. इस वार्ता के ठीक दो दिन बाद ही हमारे पार्टी महासचिव ने आरा में एक पत्रकार सम्मेलन में शांति की अपील जारी की. समाचार पत्रों में यह अपील छपी. तमाम शांतिकामी लोगों ने इसका स्वागत किया. हमें भी उम्मीद थी कि अपील का सकारात्मक जवाब रणवीर सेना की ओर से मिलेगा. मध्यस्थता की भूमिका निभा रहे एक मित्र के माध्यम से हमने संदेश भी भेजा कि उधर से बयान जारी करने को कहिए ताकि अगला कदम उठाया जा सके. उस मित्र ने संदेश चहुंचाया भी, पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी. इस प्रकार शांति प्रयास की हमारी कोशिश विफल हो गई.
विकास संबंधी कार्यों को हाथ में लेने के लिए शांति व्यवस्था हमारी सख्त जरूरत थी. लिहाजा, हमने शांति प्रयास नहीं छोड़ा. हमारी कोशिश पुनः शुरू हुई. लेकिन इसबार दूसरी तरह से. हमने सोचा कि शांति के लिए जनमत संगठित किया जाए और दबाव पैदा किया जाए. इस कार्य में हमने प्रशासन से भी मदद की उम्मीद की थी. इस कार्य को करने के लिए हमने जून 1996 में शांति अभियान संगठित किया और दर्जनों बाजार व चट्टियों पर आम सभाएं कीं तथा लोगों को बताया कि शांति व्यवस्था क्यों जरूरी है और इसे कायम करने के लिए आप आगे आएं. इस दौरान पांच गांवों में रणवीर सेना से जुड़े आम किसानों के साथ समझौता वार्ता करके झगड़े निपटा लिए गए. इस शांति अभियान के तहत हमने विकास के मुद्दे को भी गंभीरता से उठाया और तरारी प्रखंड में हमने (घेरा डालो, डेरा डालो) आंदोलन चलाया. इस आंदोलन में भारी तादाद में लोगों की गोलबंदी हुई और आंदोलन सफल रहा.
हमने शांति स्थापना के सवाल को केन्द्र कर आरा में सेमिनार का आयोजन किया जिसमें गण्यमान्य बुद्धिजीबियों व शांतिकामी लोगों के अलावा आम लोगों की अच्छी भागीदारी थी.
मगर इसे विडंबना ही कहिए कि रणवीर सेना के लोगों ने शांतिकारी लोगों की आकांक्षाओं का निरादर किया और हमारे शांति अभियान का जवाब हिंसा से दिया. शांति अभियान के दरम्यान भी उन्होंने हिंसा की कार्यवाही जारी रखी. रणवीर सेना के लोगों ने अपने एक पर्चे में शांतिकारी लोगों को शांति आलाप छोड़ने तथा युद्ध में शामिल होने की नसीहत दी थी. शायद इसीलिए उन्होंने शांतिकामी लोगों के प्रयास का जवाब बथानी टोला जनसंहार से दिया.
बथानी टोला जनसंहार और सरकारी प्रतिक्रिया इस बात का जीता-जागता सबूत है कि लोकतांत्रिक आंदोलनों की कर्मभूमि बिहार को लोकतंत्र की कब्रगाह में बदलने की साजिश चल रही है. इस साजिश में समाज की वे सारी अंधकार की काली ताकतें एक साथ खड़ी हैं जिनका माफियातंत्र व घोटालों में निहित स्वार्थ जुड़ा हुआ है.
हम तमाम प्रगतिशील क्रांतिकारी, लोकतांत्रिक, समाजवादी व वामपंथी संगठनों एवं व्यक्तियों से अपील करते हैं कि हम एक साथ मिलकर लोकतंत्र की इस लड़ाई को आगे बढ़ाएं.
हमने बथानी टोला जनसंहार के लिए जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों को दंडित करने की मांग उठाई है. इस लड़ाई को हम जीत न पाए तो हमारे चारों ओर कासवान जैसे हत्यारे अधिकारी नजर आएंगे और आम जनता के हर संघर्ष को पुलिस व निजी सेनाओं की गोलियों से भून दिया जाएगा.
हमारी आपसे अपील है कि आप जिस तरह से हो, इस आंदोलन में शामिल हों. दोषी अधिकारियों को दंडित करने की मांग पर बुद्धिजीवियों की बैठक में प्रस्ताव पास करें, मार्च आयोजित करें, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री को टेलीग्राम भेजें, अखबारों में वक्तव्य दें.