(बिहार विधानसभा चुनाव 1990 के अवसर पर जारी)

दोस्तो!

फिर एक बार चुनाव का नगाड़ा बज चुका हैं. वही जानी-मानी पार्टियां, जाने-माने झंडे, जाने-माने चेहरे फिर एक बार नए-पुराने नारों के साथ चुनावी दंगल में उतर चुके हैं.

राम से लेकर रोटी तक के शोरगुल माइकों की टकराती चीखों के बीच एक आम मतदाता के लिए कुछ तय कर पाना ही मुश्किल लगता है. मगर थोड़ी देर इत्मीनान से बैठिए और ठंडे दिमाग से सोचिए कि इस सारे शोरगुल का मतलब क्या है, कौन क्या कह रहा है और क्यों कह रहा है. अपना वोट किसी को देने से पहले अच्छी तरह सोच लेने में भला हर्ज ही क्या है!

एक आम मतदाता वैसे तो एक अकेला आदमी लगता है; लेकिन वह किसी-न-किसी वर्ग, जाति या धार्मिक समुदाय का हिस्सा होता है. आप शहरी या देहाती मजदूर हैं, गरीब या मंझोल किसान हैं, किसी पेशे से जुड़ गए मध्यमवर्गी हैं या व्यापारी हैं – अर्थात् किसी-न-किसी वर्ग से आते हैं. आप ब्राह्मण, कायस्थ, राजपूत, भूमिहार, यादव, कुर्मी, कोइरी, हरिजन – यानी किसी-न-किसी जाति के हैं. आप हिंदू, मुसलमान, या और किसी धार्मिक समुदाय के हैं. सारी-की-सारी राजनीतिक पार्टियां आपकी इसी वर्ग, जाति धर्म की चेतना पर अपील कर रही हैं और आपका वोट हासिल करने की जीतोड़ कोशिश कर रही हैं. सारे शोरगुल का, राम से लेकर रोटी तक के नारों का यही असली रहस्य है.

बिहार में चूंकि लोगों के सामाजिक जीवन और सोच में जाति-चेतना ही हावी है; इसलिए किसी राजपूत के प्रधानमंत्री बनने, किसी जाट के उपप्रधानमंत्री बनने, किसी यादव के मुख्यमंत्री बनने का सब्जबाग दिखाकर जातियों के बीच जोड़-तोड़ बैठाकर जनता दल आपका वोट पा जाता है, आपकी हिंदू धार्मिक चेतना को भड़काकर भाजपा राम-मंदिर के नाम पर आपका वोट बटोर लेती है. सामाजिक वर्ग-चेतना के पिछड़े रहने के कारण वामपंथियों को सबसे कम वोट मिलते हैं. उल्टे, सीपीआई-सीपीएम जैसे वामपंथी ज्यादा वोट बटोरने की लालसा में जात और यहां तक कि धार्मिक भावनाओं को भी उभारने में शरीक हो जाते हैं. इस तरह, हर चुनाव बिहार के पिछड़ेपन और पिछड़ी मानसिकता पर ही मुहर लगाता है – प्रगति और विकास के तमाम वायदों के बावजूद, हर चुनाव बिहार को पीछे धकेलता जाता है. धार्मिक विभाजन चुनावी हथकंडों की बदौलत धार्मिक उन्माद में बदल जाते हैं; और जातीय विभाजन और भी कट्टर होते जाते हैं. नए-पुराने सामंती सरगनों, माफिया गिरोहों, भ्रष्ट राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों, गुंडे-बदमाश-रंगदारों और दलालों की जो पूरी जमात बिहार के सामाजिक जीवन पर छाई हुई है वही जमात जाति-धर्म  का ठेकेदार बनकर चुनावों में सरेआम नंगा नाचने लगती है. आम जनता से जैसे वे हर चीज छीन लेते हैं, उसी तरह चुनावों में झांसेबाजी करके, और नहीं हुआ तो बंदूक के बल पर वे आपका वोट भी आपसे छीन लिया करते हैं. आम मतदाता कांग्रेस, फिर जनता दल, फिर कांग्रेस, फिर जनता दल, फिर ... इसी गोरखधंधे में फंसकर रह जाता है. उसके लिए कहीं कुछ नहीं बदलता.

हमारी पार्टी इंडियन पीपुल्स फ्रंट की चुनावों में शिरकत मतदाताओं को इसी गोरखधंधे से निकालने के लिए है -- आम जनता को एक नई राह की ओर, एक नए बिहार की ओर ले जाने के लिए है.

इसी उद्देश्य से हमने पिछले लोकसभा-चुनावों में शिरकत की थी; और कांग्रेस, जनता दल, भाजपा, सीपीआई, सीपीएम आदि सभी पार्टियों के तमाम विरोधों के बावजूद अपने बलबूते पर हमने आरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीता और कुल मिलाकर 7 लाख 40 हजार मत प्राप्त किए.

विधानसभा चुनावों में फिर एक बार हम अकेले अपने बलबूते पर 86 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. हमने फिर एक बार पुरजोर कोशिश की, कि सीपीआई के साथ हमारा कोई राजनीतिक समझौता हो – कोई तालमेल बने. हमने सीपीआई के नेताओं से बार-बार कहा कि कुछ सीटों के मोह के लिए, सरकार में दो-एक मंत्री पद पाने के लिए जनता दल के पीछे-पीछे घिसटना छोड़िए. आप एक वामपंथी पार्टी हैं, अपने को कम्युनिस्ट पार्टी कहते हैं, वामपंथी राजनीति कीजिए. हम और आप मिलकर बिहार की राजनीति को नया मोड़ दे सकते हैं; वामपंथी आंदोलन को पूरे हिंदी क्षेत्र में एक नई छवि दे सकते हैं; आइए, हम दोनों मिलकर एक नई शुरूआत करें. पिछले चुनावों ने यह साबित ही कर दिया है कि जनता दल पर निर्भर रहकर भाजपा के विकास को भी रोका नहीं जा सकता. हम दोनों मिलकर सम्मानजनक संख्या में सीटें भी जीत सकते हैं और भाजपा के खिलाफ एक मजबूत दीवार भी खड़ी कर सकते हैं. आप इससे पहले लंबे अरसे तक कांग्रेस के पीछे घिसटते रहे. फायदा क्या हुआ? अब बड़ी मुश्किल से, बड़ी कीमत चुकाकर आप किसी तरह कांग्रेस से थोड़ा-बहुत पीछा छुड़ा पाए हैं. जनता दल के पीछे-पीछे घिसटने की फिर वही कीमत आपको चुकानी पड़ेगी. आइए, हम आप मिलकर विधानसभा में एक वामपंथी विपक्ष की भूमिका निभाएं; जनता दल की नई सरकार को बेशर्त समर्थन की जगह मुद्दा-दर-मुद्दा समर्थन की नीति पर चलें; और विधानसभा के बाहर, आइए, हम जनआंदोलनों को आगे बढ़ाएं.

लेकिन, सरकार में हिस्सा लेने के सपनों में मशगूल सीपीआई के नेताओं ने हमारी एक न सुनी. उल्टे, अपनी कतारों को बेवकूफ बनाने के लिए उन्होंने हमारे विचारों को तोड़-मरोड़कर पेश किया. हम जहां एक वाम विपक्ष की बात कर रहे थे, सरकार पर जनदबाव कायम करने की बात कर रहे थे; वहां उन्होंने कहना शुरू किया कि आईपीएफ कह रहा है चलो, आईपीएफ और सीपीआई मिलकर सरकार बनाएं. हमारे नाम पर यह बेवकूफी भरी बात अपने मन से उन्होंने खुद कह डाली और फिर लगे इसका मजाक उड़ाने. हमने कहा कि जनाब, मजाक उड़ाना है तो खूब उड़ाइए; लेकिन यह किसी राजनीतिक गंभीरता का परिचय नहीं है. उम्र के साथ-साथ यह आपकी बुद्धि के सठिया जाने का ही नतीजा है.

अब देखिए उनका अपना कार्यक्रम. जनता दल, सीपीआई और झारखंड मुक्ति मोर्चा की मिली-जुली सरकार वे बनाना चाहते हैं. यही उनकी नजर में सबसे व्यावहारिक और यथार्थ स्थिति है. मगर न तो यह जनता दल की मान्यता है, न झारखंड मुक्ति मोर्चा की. एक बच्चा भी यह समझ सकता है कि बिहार की किसी भी सरकार में झारखंड मुक्ति मोर्चा के शामिल होने का मतलब है अलग झारखंड प्रांत की मांग को त्यागना – और ऐसा वे निश्चय ही नहीं करने जा रहे हैं. जहां तक जनता दल की बात है, अव्वल तो वह अकेले सरकार बनाना चाहेगा या फिर केंद्रीय सरकार की तर्ज पर सीपीआई और भाजपा के समर्थन से. हर हालत में उसे समर्थन देना सीपीआई की मजबूरी है – यहां तक कि अगर वे हरियाणा की तर्ज पर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाएं, तब भी. सच्चाई यही है कि सीपीआई क्रमशः जनता दल ही क्यों, भाजपा के साथ भी घोषित-अघोषित रिश्ता बनाती जा रही है. अगर आपने ख्याल किया हो तो देखेंगे कि आडवाणी साहब कह रहे हैं, ‘सीपीआई-सीपीएम के साथ कई मुद्दों पर हमारी समानता है. पंजाब के मसले पर जनता दल के बजाए हमारी एकता सीपीआई-सीपीएम से ज्यादा है.’ अभी उस दिन राजेश्वर राव – सीपीआई के महासचिव जी ने कहा कि ‘भाजपा के साथ कई सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर हमारी समानता है और एक हद तक हम एक साथ चल सकते है.’ एक साथ चलिए, जरूर चलिए साहब, नरक के रास्ते पर अगर कोई चलना ही चाहे, तो भला हम उसे कैसे रोक सकते हैं!

लेकिन हम वामपंथी कतारों से जरूर अपील करेंगे कि जनता दल, भाजपा और सीपीआई-सीपीएम के इस नए गठजोड़ के खतरे को पहचानिए; यह वामपंथी आंदोलन का सर्वनाश कर देगा, सांप्रदायिकता के खिलाफ हमारी लड़ाई को कमजोर कर देगा, जन संघर्षों और जन आंदोलनों की वामपंथी राजनीति का सत्यानाश कर देगा.

हमें खुशी है कि बिहार में सरकारी कर्मचारियों की लड़ाकू शक्तियों – कटिहार, दरभंगा, मुंगेर, लोहरदग्गा, गिरिडीह और नाना जगहों से सीपीएम के ईमानदार कार्यकर्ताओं और नेताओं – ने इस खतरे को पहचाना है और सैकड़ों की संख्या में सीपीएम छोड़कर हमसे आ जुड़े हैं. इसी तरह राज्य के करीब-करीब हर जिले से सीपीआई का जनाधार, उसके वामपंथी कार्यकर्ता और नेता हजारों की संख्या में हमसे जुड़े हैं. दिन-ब-दिन यह साबित होता जा रहा है कि बिहार की वामपंथी राजनीति में सीपीआई और सीपीएम अतीत की ताकतें होती जा रही हैं; वामपंथ का भविष्य अब निश्चित रूप से आईपीएफ ही है.

वामपंथी विपक्ष की हमारी धारणा और जनता दल-सीपीआई-झारखंड मुक्ति मोर्चा की मिली-जुली सरकार की सीपीआई की धारणा के बीच कौन-सी धारणा व्यावहारिक है, कौन-सी धारणा जनशक्ति के उत्थान के स्वार्थ में है इसका फैसला हम आप मतदाताओं पर छोड़ते हैं.

बहरहाल, सीपीआई के इस मौकापरस्त रवैये की वजह से हमें मजबूर कर दिया गया है कि हम अकेले चुनाव लड़ें. हमने यह चुनौती स्वीकार भी कर ली है – कारण, किसी भी सूरत में हम अपने उसूलों से समझौता नहीं कर सकते.

हमारे देश के संसदीय जनवाद को दुनिया का सबसे बड़ा जनवाद कहा जाता है और दावा किया जाता है कि यहां हर पार्टी को चुनाव लड़ने के समान अवसर दिए जाते हैं. यह सब सरासर झूठ है. आइए देखें, कि कैसे हमारी पार्टी को – दबे-कुचले लोगों की पार्टी को – एक असमान लड़ाई लड़ने को मजबूर कर दिया गया है.

हमारे एक उम्मीदवार वीरेंद्र विद्रोही को, जो कि एक संस्कृतिकर्मी हैं, दो साल से जेल में बंद करके रखा गया है. भगवत झा आजाद के मुंह पर कालिख पोतने के ‘जुर्म’ में आज तक उन्हें जमानत भी नसीब नहीं हुई. देश भर के जागरूक बुद्धिजीवियों, जनवादी अधिकार रक्षा संगठनों की सारी मांगों को ठुकराते हुए सरकार आज तक उन्हें जेल में बंद किए हुए है. आरा, सहार और हिलसा क्षेत्र के हमारे उम्मीदवारों को झूठे मुकदमों में फंसाकर जेलों में बंद करके रखा गया है. हमारे और कई उम्मीदवारों के नाम फर्जी केस लादे गए हैं और किसी भी समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया जा सकता है. हमारे एक साथी दो साल से इसीलिए जेल में हैं कि उनका नाम ‘मजदूर किसान संग्राम समिति’ के नेता ‘अरविन्द’ से मिलता है. हजारों अपील के बावजूद न पुलिस अफसरों के कान पर जूं रेंगती है और न ही जज साहबान के. आप जानते हैं कि हमारा कोई भी उम्मीदवार अपराधी चरित्र का नहीं है. जनता के संघर्षों में आगे रहकर नेतृत्व देना ही इनका गुनाह है. ये सभी राजनीतिक बंदी हैं.

इसी तरह सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) – जो हमारा बिरादराना संगठन है – उसके नेताओं, कार्यकर्ताओं और योद्धाओं पर दुनियाभर के वारंट हैं. उनका अपराध यही है कि बिहार के क्रांतिकारी बदलाव के लिए वे सबसे दृढ़ व निर्भीक राजनीतिक लाइन के सूत्रधार हैं – दो दशकों से अपनी जान की बाजी लगाकर, सैकड़ों वीरों की शहादत देकर, उन्होंने बिहार के दबे-कुचले लोगों की आवाज को देश-दुनिया में मर्यादा दिलवाई है.

दूसरी ओर समाज के सारे सड़े-गले तत्व, खूंखार माफिया व गुंडा सरदार – खून, डकैती, बलात्कार, रिकार्डतोड़ भ्रष्टाचार, लूटपाट व जनसंहार के बावजूद – छुट्टे सांड़ की तरह खुला घूम रहे हैं. वे या तो गिरफ्तार ही नहीं होते या फिर किसी ‘अलौकिक शक्ति’ की बदौलत दूसरे ही दिन जेल से बाहर आ जाते हैं.

आप जानते हैं, बिहार में चुनाव बंदूक के बल पर लड़े जाते हैं. सामंत, माफिया और गुँडा-सरदार लाइसेंसी-गैरलाइसेंसी हजारों बंदूकों से लैस हैं, जिनके बल पर गरीबों-हरिजनों का वोट लूटा जाता है. पिछले लोकसभा चुनाव में आरा क्षेत्र के बिहटा गांव में प्रतिरोध की कोशिश में 17 गरीबों को – जिनमें बूढ़े, बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं – गोलियों से भून दिया गया.राजपूती शासन का क्या नजारा पेश किया राणा प्रताप और कुंवर सिंह सरीखे वीरों का वंशज होने का दावा करनेवाले इन कायरों ने! शोकसभा में हमारे सांसद पर भी गोलियां चलाकर उनकी हत्या की साजिश की गई. सारा प्रशासन और पुलिस अफसर इन गुंडों के सरगने ज्वाला सिंह के हाथ की कठपुतली भर हैं. किसी भी राजनीतिक पार्टी ने जनसंहार के इस मसले को उठाने की जरूरत ही नहीं समझी. अपने को कम्युनिस्ट कहनेवाली सीपीएम ने तो हद ही कर दी. उसने अपने हमले का निशाना सामंती गिरोह को नहीं, बल्कि उल्टे हमें ही बना डाला.

बंदूक की गोलियों, पैसे की ताकत और पुलिसिया आतंक के जिस माहौल में आज बिहार की आम जनता जी रही है, उसी माहौल में हमें भी चुनाव लड़ना पड़ रहा है. भारतीय संसदीय जनवाद का खोखलापन दिन-ब-दिन जगजाहिर होता जा रहा है.

जनता की जुझारू चेतना और संगठित प्रतिरोध ही हमारी ताकत है, जिसके बल पर हमने चुनाव में सभी पार्टियों के सामने चुनौती खड़ी कर रखी है और, आप क्या धार्मिक जुनून की ताकतों को वोट देंगे, जो हिंदुओं-मुसलमानों को आपस में लड़ाकर आम जनता की ताकत को कमजोर करना, और इस तरह, अपना उल्लू सीधा करना चाहती हैं? आप क्या जातीय उन्माद की ताकतों को वोट देंगे, जो मेहनतकश जनता की ताकत को बांटकर अपनी-अपनी जाति के सामंतों और कुलकों का स्वार्थ पूरा करना चाहती हैं; जो बदमाशों और लंपटों को जातीय नेताओं के रूप में स्थापित करना चाहती हैं? आप क्या ऐसे मौकापरस्त वामपंथियों को वोट देंगे, जो कभी कांग्रेस, कभी जनता दल और कभी भाजपा के पीछे-पीछे चलते हैं; जो धार्मिक और जातीय भावनाओं की बाढ़ में समा जाते हैं; जिनकी ताकत जन आंदोलनों में नहीं बल्कि सरकार और प्रशासन की जी हुजूरी में है?
ठंडे दिमाग से सोचिए और फैसला कीजिए, दोस्तों!

आपका वोट आपकी शान, आपकी इज्जत, आपका अधिकार, आपका हथियार है. अपना वोट बरबाद न करें, अपना वोट किसी को छीनने न दें. अपने वोट का इस्तेमाल करें उन सारी काली ताकतों को शिकस्त देने के लिए जो बिहार के पिछड़ेपन के जिम्मेवार हैं. आपका वोट बने एक नए बिहार के लिए – एक नई राह के लिए – आपके संकल्प का प्रतीक!

क्रांतिकारी अभिनंदन और लाल सलाम के साथ.

घोषणापत्र

धीमा और विकृत औद्योगिक विकास; माफिया गिरोहों व सामंती सरदारों का सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक जीवन पर वर्चस्व; क्रूर पुलिसिया ढांचा जो न्यूनतम जनवादी अधिकारों के हनन के लिए देश भर में कुख्यात है; खेतमजदूरों, ठेका व कैजुअल मजदूरों का न्युनतम मजदूरी से भी वंचित होना तथा गरीब व मंझोल किसानों की खेती-बाड़ी की दुर्दशा; और महिलाओं का मध्ययुगीन शोषण – यह वो पांच बुनियादी समस्याएं हैं, जो बिहार की गिनती भारत के पिछड़े और असभ्य राज्य के रूम में कराती हैं. नए बिहार के लिए हमारा संघर्ष इन्हीं समस्याओं के खिलाफ केंद्रित है. संघर्ष के अन्य सारे रूपों के अलावा चुनाव भी हमारे लिए इसी संघर्ष को आगे बढ़ाने का एक साधन, अवश्य ही महत्वपूर्ण साधन है.

सरकार कोई भी बने, हम वादा करते हैं :

(1) बिहार के औद्योगिक विकास के स्वार्थ में केंद्र सरकार पर दबाव डालने, पूंजी विनियोग में स्थानीय व युवा उद्यमियों को प्राथमिकता देने, अपनी सांस्कृतिक अस्मिता बरकरार रखते हुए आदिवासी जनसमुदाय को आधुनिक विकास में हिस्सेदार बनाने के लिए हम हमेशा संघर्षरत रहेंगे.

(2) सामंती सरदारों व माफिया गिरोहों के खिलाफ कार्यवाही व तमाम सेनाओं को भंग करने व उनके हथियार जब्त करने की मांग पर संघर्ष जारी रखेंगे.

(3) जनता के जनवादी अधिकारों के लिए हमेशा संघर्षरत रहेंगे. सीपीआई(एमएल) के नेताओं, कार्यकर्ताओं और योद्धाओं के खिलाफ सारे वारंटों की वापसी, राजनीतिक बंदियों की रिहाई, जन संघर्षों में शामिल कार्यकर्ताओं के खिलाफ तमाम मुकदमों की वापसी, जनवादी संगठनों पर लगे प्रतिबंधों को हटाने, दोषी पुलिस अफसरों को कड़ी सजाएं देने और पुलिस के दमनात्मक ढांचे में जनवादी सुधारों के लिए हम संघर्ष करते रहेंगे.

(4) खेत मजदूरों को न्यायोचित मजदूरी, गरीब व मझोले किसानों, बटाईदारों को बेहतर जमीन व खेतीबाड़ी की उन्नत व्यवस्था, ठेका व कैजुअल मजदूरों की स्थाई नियुक्ति की मांगों पर हमारा संघर्ष जारी रहेगा.

(5) महिलाओं पर शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ हम हमेशा अपनी आवाज बुलंद करेंगे.