(13 नवंबर 1995 को जहानाबाद में आयोजित मजदूर-किसान एकता रैली में दिया गया भाषण;
समकालीन लोकयुद्ध, 30 मवंबर 1995 से, प्रमुख अंश)
लालू प्रसाद दुबारा सत्तासीन होने के बाद बड़े-बड़े पूंजीपतियों के साथ और भी ज्यादा मधुर संबंध स्थापित करते जा रहे हैं. बिहार के विकास पर सम्मेलन में कांग्रेसी राज्यपाल बलिराम भगत भी इनकी पीठ थपथपाने लगे हैं. इनकी तो कांग्रेस के साथ भी गाढ़ी दोस्ती बनती जा रही है. वे सिंगापुर, न्यूयार्क गए. अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ इनकी खूब छन रही है. वे कभी अमरीका जाते हैं तो कभी अमरीकी राजदूत उनके पास आकर मीठी-मीठी बातें करते हैं. हमें यह तय करना है कि बिहार का विकास हो या बिहार की कीमत पर अमरीका का विकास हो. बिहार की गरीब जनता का क्या होगा? क्या तमाम ट्रेड यूनियनों से, किसान संगठनों से, खेत-मजदूर संगठनों से, गरीब जनता के पक्ष में आंदोलन कर रही क्रांतिकारी पार्टियों से यह पूछा गया कि बिहार का विकास कैसे हो? बिहार के विकास का नक्शा क्या न्यूयार्क में बनेगा. टाटा-बिड़लाओं से ही सलाह-मशविरा करके क्या नक्शा तैयार किया जाएगा? नए सिरे से ढकोसलेबाजी की जा रही है. गरीबों को धोखा देकर अमीरों की राजनीति की जा रही है. हमारी पार्टी ने बिहार के कोने-कोने से आवाज उठानी शुरू कर दी हैं. अब तुम्हें और भी ढकोसलेबाजी नहीं करने दी जाएगी. जहानाबाद की रैली हमारी पार्टी के आह्वान का मॉडल है. बिहार की जनता, बिहार के गरीब आवाज उठा रहे हैं. तुम्हें अपने वायदों को तुरंत पूरा करना होगा.
यहां सीपीआई के एक बुजुर्ग नेता ने वामपंथी एकता को लेकर अपनी चिंता हमसे जाहिर की. मैं उनसे कहना चाहता हूं कि एकता की दो ही शर्तें हो सकती हैं. या तो आप बदलें. या हम बदलें, क्या आप यह चाहते हैं कि हम आंदोलन छोड़ दें और लालू का पिछलग्गू बन जाएं? ऐसी वामपंथी एकता से बिहार का क्या भला होगा? सीपीआई-सीपीएम के ईमानदार कार्यकर्ता अपने बेईमान नेतृत्व के खिलाफ बगावत क्यों नहीं करते? पिछले पांच सालों के जनता दल के शासन में हमारे सैकड़ों साथियों की हत्याएं हुईं, मगर आप सब चुपचाप रहे. इतना ही नहीं, उनका मोहरा बनकर इसमें कहीं-न-कहीं से सहभागी ही बने रहे. रुकावट सिर्फ यहीं पर है. हमारी पार्टी सच्ची वामपंथी एकता की हिमायती है.
हमने पार्टी यूनिटी के जनसंगठन एमकेएसपी के पास नए सिरे से दोस्ताना संबंध स्थापित करने के लिए आमंत्रण भेजा है. हमारी उनसे यह गुजारिश है कि पुरानी बातों को भूल जाया जाए, पुराने मसलों को हल करने के लिए सबसे जरूरी है कि हम पहले दोस्ताना संबंध हासिल करें. बहुत से मुद्दे हैं जिन पर एक साथ संघर्ष किया जा सकता है. ये मसले लंबे समय के समागम और विचार-विमर्श के जरिए भविष्य में ही हल होंगे.
जहानाबाद का संघर्ष देश भर में चर्चित रहा है. यह चर्चा काफी सरगर्म रहा करती थी कि क्रांति का रास्ता जहानाबाद से होकर गुजरना है. इधर बीच में यहां पार्टी के अंदर कुछ भटकाव आए. कैरियरवाद, एमएलए बनने की आकांक्षा, गुटबाजी इत्यादि दुर्गुणों ने पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया. इधर हमने इन सबको दुरुस्त कर लिया है. यहाँ सैकड़ों साथियों ने अपना खून बहाकर जहानाबाद की क्रांतिकारी जमीन को सींचा है. हमारे यहां कैरियरवाद का कोई स्थान नहीं है. संसदीय भटकावों की तमाम कोशिशों को ध्वस्त किया जाएगा. जहानाबाद में तेजी के साथ नया उत्साह पैदा हुआ है.
हमें यह पूरा विश्वास है कि जहानाबाद से होकर भारतीय क्रांति का रास्ता अवश्य ही बनेगा.