(25 अप्रैल 1997 को जेएनयू सिटी सेन्टर, दिल्ली में आयोजित सेमिनार में दिया गया भाषण; समकालीन लोकयुद्ध, 1-15 मई 1997 से)
अपने तीस वर्षों के राजनीतिक जीवन में मैंने अपने बहुतेरे करीबी साथियों को शहीद होते देखा है, उन अनगिनन साथियों की शहादत झेलते-झेलते आंखों के आंसू भी सूख चुके थे. फिर भी उस दिन जब मैं सीवान पहुंचा, चंद्रशेखर की मृत देह के सामने रोती-बिलखती मां ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा – “मिश्रा जी, मेरा चंदू चला गया,” तो मैं अपने आंसू रोक नहीं पाया. हमारे आंदोलन में एक ओर समाज के हाशिये पर खड़े दलितों-गरीब किसान के घरों के नौजवान अगुआ की भूमिका निभा रहे हैं तो दूसरी ओर देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से छात्रों का क्रीम हिस्सा अपने कैरियर का त्याग करते हुए आगे बढ़ता रहा है, समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों के साथ एकरूप होता रहा है. चंद्रशेखर उसी परंपरा की कड़ी है और शायद जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटि (जेएनयू) से निकला हुआ पहला वामपंथी छात्र नेता है, जिसने दिल्ली की चकाचौंध में डूब जाने के बजाय सीवान की जिस धरती पर वो जन्मा था, उसी में मिट जाना पसंद किया.
जेएनयू में ऐसे भी वामपंथी अध्यक्ष हुए हैं, जिन्होंने शायद ही कभी गरीब किसान-मजदूरों की झोपडियों में एक रात भी गुजारी हो, फिर भी वे किसी पार्टी के पॉलित ब्यूरो की शोभा बढ़ाते हैं, सत्ता के गलियारे में घूमते हुए दूरदर्शन के पर्दा पर अक्सरहा नजर आते हैं. चंद्रशेखर इन सबसे अलग था जिसने सीवान और दिल्ली के बीच की दीवार तोड़ दी.
30 मार्च के बाद जो राजनीतिक संकट जन्मा था उसमें बिहार बंद की प्रासंगिकता शहर के लोगों के बीच ले जाने के लिए प्रखर वक्ता की आवश्यकता थी. यही वह परिप्रेक्ष था जिसमें चंद्रशेखर 31 मार्च को सीवान की सड़कों पर नुक्कड़ सभाएं करने के लिए उतरे. अंधेरा होने के पहले ही लौट आने का निर्देश था. हम ये नहीं सोच पाए थे कि दिन के उजाले में, शहर के व्यस्ततम चौराहे पर, इस तरह से हमला होगा. जिन दरिंदों के खिलाफ हमारी लड़ाई थी, उनके बारे में यही नहीं सोच पाना जरूर हमारी कमजोरी थी.
बिहार में आज हम देख रहे हैं कि प्रशासन व पुलिस की ताकत अपराधी-माफिया गिरोहों को खुलेआम संरक्षण दे रही है. तथाकथित रणवीर सेना जब वीभत्सतम जनसंहार करती है तब पुलिस उन्हीं के साथ खड़ी नजर आती है. लेकिन अभी कुछ दिन पहले जब पार्टी यूनिटी के लोगों ने प्रतिशोध में हमला किया तो सरकारी मशीनरी तत्काल सक्रिय हो गई और 15 से 20 साल की उम्र के छः नौजवानों को मौत के घाट उतार दिया गया.
मैं, निकम्मा शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहता, क्योंकि इस शब्द के एक इस्तेमाल ने ऐसे ही काफी बवंडर खड़ा कर रखा है, लेकिन फिर भी ऐसे गृहमंत्री जी के बारे में क्या कहा जाए; चंद्रशेखर के हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए कोई विशेष निर्देश देने के बजाय वे प्रधानमंत्री से कहकर चंदू की मां को एक लाख रुपए भिजवा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं.
शहाबुद्दीन से हमारी सीधी लड़ाई नहीं थी और न ही उससे लड़ना हमारी प्राथमिकता थी, क्योंकि यह हम भी जानते हैं कि चाहे जिन कारणों से हो, उसे मुस्लिम जनसमुदाय का समर्थन प्राप्त है. सीवान के दूसरे हिस्सों में हम सवर्ण सामंती ताकतों से लड़ रहे थे. ये ताकतें जब पस्त हो गईं तो शहाबुद्दीन खुद ही उनके संरक्षक के बतौर हमारे खिलाफ लड़ाई में उतर पड़ा. हम किसी से बेवजह लड़ाई मोल लेना नहीं चाहते लेकिन हम ये भी बता देना चाहते हैं कि हम पर अगर कोई लड़ाई थोप ही दी जाएगी तो हम उससे पीछे हटनेवालों में से भी नहीं हैं. हमारे कई साथियों ने शहादत दी है, चंदू ने शहादत दी है और मैं जानता हूं कि हमारे और बहुत से साथियों को शहादत देनी होगी, लेकिन जब तक सीवान की धरती से शहाबुद्दीन का आतंक राज खत्म नहीं हो जाता हमारी चुनौती जारी रहेगी.
शहाबुद्दीन के खिलाफ संघर्ष में चंदू की शहादत दो व्यक्तियों के बीच का मसला भर नहीं है. आज जिसे राजनीति का अपराधीकरण करते हैं, शहाबुद्दीन उसका मूर्त प्रतीक है जिसे सत्ता के शिखर पर बैठे लोगों का वरदहस्त प्राप्त है. दूसरी ओर चंद्रशेखर समाज के उन तमाम स्वच्छ और ईमानदार लोगों का प्रतीक है जो देश की राजनीति को एक प्रगतिशील दिशा देना चाहते हैं. चंद्रशेखर की इस चुनौती को जिंदा रखना इसीलिए आप-हम-सब का सम्मिलित कर्तव्य है. साझा लड़ाई के साझे मंच से इस लड़ाई को आगे नहीं बढ़ा पाने से कितने ही चंद्रशेखरों की मौत को हम नहीं रोक पाएंगे.
चंद्रशेखर अपराधी राजनीतिज्ञ के हाथों मारा गया, लेकिन उसे दूसरी बार मारने की साजिशें चल रही हैं. चंद्रशेखर की याद में स्मारक बनें, छात्रवृत्तियां चालू हों, ट्रस्ट बने इस सब पर भला किसे एतराज हो सकता है, लेकिन उसके आदर्शों को धुंधला करके, उनके हत्यारों और उनकी राजनीति पर पर्दा डालने की कीमत पर अगर यह सब किया जाए तो यह क्या चंद्रशेखर को दूसरी बार मारना न होगा? सीवान के लोगों ने आक्रोश में अब तक शहाबुद्दीन गिरोह के कई हत्यारों को सजा दे दी है. आप से और देश से हमारी पार्टी का वादा है कि हम संघर्ष के तमाम आयामों को जोड़ते हुए चंद्रशेखर की हत्या का प्रतिशोध अवश्य ही लेंगे. आप से मेरी इतनी ही अपील है कि आप चंद्रशेखर को दुबारा मारने की साजिशों को सफल न होने दें.