(10 मार्च 1989 को पटना में आयोजित आईपीएफ रैली के नाम लिखित संदेश)
साथियो,
हम आप सबका अभिनन्दन करते हैं!
बीसियों हजार की संख्या में पटना के राजपथ पर आपके बढ़ते कदम एहसास दिलाते हैं कि बिहार में क्रांतिकारी बदलाव लाने की लड़ाई शुरू हो गई है.
आज जिस बिहार में हम रह रहे हैं वहां जंगल राज चल रहा है. पुलिस जुल्म की वारदातों ने यहां सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं. सामंती गुंडों की बंदूकें गरजती रहती हैं. आम आदमी की जान की कीमत नहीं. महिलाओं की अस्मत पर सबसे बड़ा खतरा जहां पुलिस और शासक दल के गुंडों से आता है, लूट-खसोट और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करना जहां जुर्म बन गया है, चुनाव की प्रक्रिया हो या ‘जन प्रतिनिधियों’ के असली चेहरे, सरकारें बनने-बिगड़ने का खेल हो या विधानसभा की बहसें, संसदीय जनवाद जहां अपने सबसे घिनौने रूप में नजर आता है, यह वही बिहार है. सचमुच ही बिहार क्रांतिकारी बदलाव की मांग कर रहा है. लाजिमी तौर पर क्रांतिकारी जनवाद की लड़ाई बिहार में ही अपने सबसे तीखेपन के साथ मौजूद है. पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि आनेवाले दिनों में जो क्रांतिकारी भूचाल सारे देश को पलट कर रख देगा, उसका केन्द्र बिहार ही है.
इस क्रांतिकारी संभावना को साकार करने के लिए जरूरी है कि हम मेहनतकश किसानों के जुझारू संघर्षों में डटे रहें. गरीब किसानों और खेत मजदूरों की किसी भी लड़ाई को कमजोर करने का मतलब है क्रांतिकारी जनवाद के उसूलों पर ही समझौता कर लेना. ऐसा करने पर हमारे और संसदीय बौनेपन की शिकार दूसरी वामपंथी पार्टियों के बीच कोई फर्क नहीं रह जाएगा. लंबे समय का अनुभव दिखाता है कि यही वह तबका है जो क्रांतिकारी जनवाद की लड़ाई में सबसे अधिक मजबूती के साथ और अंत तक डटा रह सकता है. सामंती जुल्म और राजसत्ता की क्रूरता के जवाब में जो बंदूकें गांव के गरीबों ने उठा ली हैं उन्हें झुकाना कत्तई मुमकिन नहीं. हमारी पार्टी का ऐलान है कि हम बिहार में तेलंगाना दुहराने नहीं देंगे. यहां हम जरूर स्पष्ट कर देना चाहेंगे कि सशस्त्र संघर्ष के नाम पर लूटपाट, जातीय दंगों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं व निर्दोष लोगों की हत्याओं के हम सख्त विरोधी हैं.
क्रांतिकारी संभावनाओं को साकार करने के लिए यह जरूरी है कि क्रांतिकारी जनवाद की सारी ताकतें एकजुट हो जाएं. आईपीएफ वह मंच है जो इस एकजुटता को अंजाम दे रहा है. पिछले कुछ वर्षों में इसका तेजी से हुआ विकास यह साबित करता है कि बिहार में जनवाद की अगली लड़ाई इसी के झंडे तले लड़ी जाएगी. बिहार के तमाम जनवादपसंद ताकतों और खासकर नौजवानों से हमारी अपील है कि वे बड़ी तादाद में इस फ्रंट में शामिल हों, इसे मजबूत बनाएं. आईपीएफ बिहार का गौरव है. चारों तरफ छाए अंधेरे के बीच प्रकाश की जगमगाती किरण है. हमें याद रखना चाहिए कि हमारे दुश्मन जब किसी क्रांतिकारी आंदोलन को सीधे दमन के जरिए कुचलने में नाकामयाब रहते हैं, तब उनकी कोशिश रहती है क्रांतिकारी मोर्चे में टूट-फूट पैदा करना. हाल के समय में हमने देखा कि कुछ लोगों ने मार्क्सवाद-लेनिनवाद और कम्युनिस्ट पार्टी के औचित्य पर ही सवाल खड़ा किया. उन्हें जनवादी मूल्यों और जनवादी मोर्चे के खिलाफ बताते हुए आईपीएफ को हमारी पार्टी के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की और इसकेलिए उन्होंने हर तरह की तिकड़मों का सहारा लिया. हमें फखर् है कि आईपीएफ के नेताओं ने ऐसी सारी साजिशों पर पानी फेर दिया और वे क्रांतिकारी जनवाद की दिशा में सख्ती से डटे रहे. सरकारी शह पर ऐसी साजिशें बार-बार होंगी और हमें हमेशा सतर्क रहना होगा.
क्रांतिकारी संभावनाओं को साकार बनाने के लिए यह जरूरी है कि सारी क्रांतिकारी, वामपंथी और प्रगतिशील ताकतें एकताबद्ध हो जाएं. हमें अफसोस है कि हाल के महीनों में कुछ बिरादराना क्रांतिकारी संगठनों से हमारे रिश्ते खराब हो गए हैं. हमारी दिली ख्वाहिश है कि स्वस्थ राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में उतरने के साथ-साथ हम आपस में बातचीत के जरिए समस्याओं का हल निकालें, एक साथ कामकाज करने के तौर-तरीके खोजें और मुश्तरका दुश्मन के खिलाफ अपनी एकता का इजहार करें.
हम महसूस करते हैं कि आईपीएफ, सीपीआई और सीपीएम के बीच कोई भी एकता बिहार में वामपंथियों के एक स्वतंत्र और मजबूत ताकत के रूप में उभरने में काफी मददगार साबित होगी और इसका असर पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश पर भी पड़ेगा. हमें विश्वास है कि तीनों संगठनों की कतारें भी ऐसा चाहती हैं. यह सच है कि हमारे बीच गहरे मतभेद हैं और लंबे समय से चले आ रहे तनाव मौजूद हैं. लेकिन आज की राजनीतिक परिस्थितियों में ऐसे कुछ पुल जरूर बनते दिख रहे हैं जो हमें एक हद तक ही सही, नजदीक ला सकते हैं. हम एक वाम-जनवादी महासंघ के हिमायती हैं. हम सब अगर अपने अतीत से शिक्षा लें, राजनीतिक दुरदर्शिता का परिचय दें और धीरज से काम लें, तो आज असंभव सा दिखनेवाला यह लक्ष्य कल संभव हो सकता है. राजीव गांधी की कांग्रेसी सरकार को हटाने के लिए, साम्प्रदायिक ताकतों के बढ़ते हुए खतरे के खिलाफ और खासकर हिंदी भाषी क्षेत्र में विपक्ष के मुकाबले वामपंथी शक्तियों के स्वतंत्र उभार के लिए, ऐसी एकता निहायत जरूरी है और संभव भी. हमें विश्वास है कि सीपीआई के नेतृत्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा और उसकी व्यापक कतारें कांग्रेस और विपक्ष के मुकाबले वामपंथी ताकत के स्वतंत्र इजहार के पक्ष में है और वे हमारे साथ एकताबद्ध आंदोलन के हिमायती भी हैं. बिहार में सीपीआई के नेतृत्व ने एक नई सोच की पहल की थी. लेकिन पिछले कुछ महीनों से वे फिर पुरानी लकीर पर चलना चाह रहे हैं. हम नहीं जानते कि उनकी मजबूरियां क्या हैं. लेकिन कारण जो भी हो उनका यह कदम वामपंथी कतारों की भावनाओं के खिलाफ है, व्यावहारिक राजनीति में एक प्रतिगामी कदम है. सीपीआई(एम) के नेतृत्व से हम यही कहना चाहेंगे कि आईपीएफ बिहार में एक राजनीतिक असलियत है. कोरे सिद्धांतों के सहारे इस असलियत को नकारने की कोशिश शुतुरमुर्गीय आचरण है. अपना नेतृत्व, अपनी धारणाएं, अपना मॉडल हर किसी पर थोपने की कोशिश, खासकर महत्वपूर्ण हिंदी क्षेत्र में जहां आप भी एक कमजोर ताकत हैं, वामपंथी एकता की राह में गहरी रुकावटें ही पैदा करेगी. सात पार्टियों की हाल में बनी राष्ट्रीय अभियान समिति को अगर कागजी संगठन में नहीं तब्दील होना है तो जरूरी है कि आईपीएफ जैसी ताकतों को उसमें शामिल किया जाए और अमूर्त घोषणाओं के बजाए ठोस मुद्दों पर आंदोलन छेड़ने की पहल ली जाए.
क्रांतिकारी संभावनाओं को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है कि हम अगले चुनाव में कांग्रेस को शिकस्त दे. बिहार में एकताबद्ध विपक्ष के साथ लोकसभा व विधानसभा चुनावों में सहयोग की हर संभावना को तलाशने के लिए हम तैयार हैं. झारखंड आंदोलन बिहार में एक अहम मुद्दा है. हम इस आंदोलन के हमेशा से समर्थक रहे हैं. लेकिन इस आंदोलन में कुछ संदिग्ध किस्म की राजनीतिक ताकतें सक्रिय हैं. अपना लक्ष्य हासिल करने के बजाए, जनवाद के लिए संघर्ष में अग्रिम चौकी पर तैनात आईपीएफ जैसी ताकतों को अलगाव में डालना जिनका पहला मकसद लगता है. इसके अतिरिक्त हाल में वनांचल की मांग लेकर बीजेपी ने इस इलाके में अपनी घुसपैठ बढ़ाई है. इन परिस्थितियों में झारखंड आंदोलन के अंदर प्रगतिशील ताकतों का समर्थन करते हुए, आदिवासी जनता के लिए स्वायत्त इलाकों की मांग करना, झारखंडी जनता को वर्गीय संगठनों में संगठित करना और उन्हें क्रांतिकारी जनवाद के लिए राजनीतिक आंदोलनों में गोलबंद करना हम अपना फर्ज समझते हैं. इन आधारभूत कर्तव्यों के बिना झारखंड आंदोलन को सही दिशा नहीं दी जा सकती.
साथियों, अठारह साल पहले हमने बिहार के भोजपुर जिला के समतलों में एक लड़ाई की नींव डाली थी. एक नई किस्म की लड़ाई – गांव के सबसे गरीब तबकों – गरीब-भूमिहीन किसानों की लड़ाई. ग्रामीण गरीबों ने सामंती सत्ता को सीधी चुनौति दी. दलित-पीड़ित जनता ने हजारों साल पुराने ब्राह्मणवादी ढांचे पर हल्ला बोल दिया. सशस्त्र किसान योद्धाओं ने राजसत्ता के क्रूर दमन-यंत्र से टकराने की हिम्मत दिखाई. पिछले आट्ठारह सालों में हमने उसी नींव पर आज की यह इमारत खड़ी की है. इस दौरान बिहार में कितनी सरकारें आई, कितने मुख्यमंत्री बने. हरएक ने आते ही हमारे आंदोलन को अपना पहला निशाना बनाया. सरकारें चली गई. चेहरे पर कालिख लेपटे मुख्य़मंत्री चले गए. मगर हम आज भी जिन्दा हैं और जिन्दा रहेंगे. हम जिन्दा रहेंगे क्योंकि हमारी ताकत का बुनियादी स्रोत बुनियादी जनता है और क्रूर-से-क्रूर तानाशाह भी जनता को खत्म नहीं कर सकता.
हम जिन्दा रहेंगे, क्योंकि हमारे संघर्ष के बगीचों को अनगिनत शहीदों ने अपने खून से सींचा है और जहां मौत एक नई जिन्दगी का पैगाम बन गई हो, वहां जान की बाजी लगाने वालों की कतार कभी खत्म नहीं होगी.
हम जिन्दा रहेंगे, क्योंकि हमने बिहार के किसानों की लड़ाई को भारत की दूसरी आजादी की लड़ाई से जोड़ दिया है.
बिहार को बदलने की, भारत को बदलने की लड़ाई शुरू हो चुकी है. आपके नारों की गूंज उस जंग का ऐलान है. आइए, दृढ़ संकल्प लिए हम बढ़ते चलें अपनी मंजिल की ओर!