(समकालीन लोकयुद्ध, 30 नवम्बर 1993 से, प्रमुख अंश)

साथियो,

इन्हीं पन्नों पर कुछ महीने पहले हमने कठिन चुनौतियों का मुकाबला करने की बात कही थी. दो विधायकों के दलत्याग, आईपीएफ में तथाकथित विभाजन व खिसकते जनाधार की खबरों से अखबार रंगे जा रहे थे. एक ही समय जनता दल सरकार के दो दलालों – एमसीसी और सीपीएम – की तरफ से हमारे खिलाफ हमले तेज कर दिए गए थे. पुलिस-प्रशासन व सामंतों का हमला तो जारी ही था. इस चौतरफा हमले के सामने, जिसका लक्ष्य था बिहार से हमारी पार्टी और हमारे आंदोलन का सफाया कर देना, हम निस्संदेह एक कठिन परिस्थिति का मुकाबला कर रहे थे. कठिनाइयों का दौर परीक्षा का भी दौर होता है, कुछ पार्टी विरोधी तत्व जहां खुलकर सामने आ गए, वहीं पार्टी साथी आपसी मतभेदों को भुलाकर घनिष्ठ रूप से एकताबद्ध हो गए. पार्टी को तोड़ने की सरकारी साजिश का कुल मिलाकर उल्टा ही परिणाम हुआ. पार्टी एकता और भी मजबूत हो गई.

हमारे बहादुर साथियों ने महेनत और लगन के साथ दलत्यागी विधायकों के इलाकों में पार्टी कार्य को नए सिरे से सजाने व गहरे जनकार्य पर जोर दिया. नतीजे के तौर पर बाराचट्टी हो या हिलसा, जगदीशपुर हो या बिक्रमगंज – इन चारों इलाकों में पार्टी ने अपने को फिर से मजबूती से स्थापित किया है और गद्दार विधायकों के खिलाफ जनअभियान तेज कर दिया है. हमारा नारा था – गद्दार विधायकों को खाद बनाकर संघर्ष की फसल फैलाना है. हम इस दिशा में बढ़े हैं और अपने अपराधों को ढंकने के लिए पुलिस की छत्रछाया में हमारे नेताओं के खिलाफ ऊलजलूल व्यक्तिगत गालीगलौज के अलावा इन गद्दारों के पास कोई और कार्यक्रम नहीं बचा है. हमारी खबरों के मुताबिक ये गद्दार बौखलाकर हमारे उच्चस्तरीय नेताओं की हत्या करने की योजना बना रे हैं.

अराजकतावादी गुटों के हमलों का मुहंतोड़ जवाब दिया गया है और अब वे तिलमिलाकर सीपीआई(एमएल) लिबरेशन को उखाड़ फेंकने, उसे नेस्तनाबूद कर देने की धमकियां देते फिर रहे हैं. हम अराजकतावाद को बिहार की परिस्थितियों में एक सामाजिक-राजनीतिक परिघटना मानते हैं. हम यह भी मानते हैं कि यहां लंबे समय से इन गुटों का अस्तित्व है और रहेगा भी. राजनीतिक संघर्षों के एक दौर के बाद ही, जुझारू जन आंदलनों का निर्माण करके ही इनका खात्मा किया जा सकता है. इसलिए किसी सशस्त्र टकराव के जरिए इन्हें उखाड़ फेंकने या नेस्तनाबूद कर देने की बात न हम सोचते हैं और न इसपर यकीन ही करते हैं. हमारा प्रतिरोध सिर्फ आत्मरक्षात्मक है. वरना हम चाहते हैं कि जो भी समस्याएं हैं उनका निपटारा बातचीत के जरिए किया जाए. और चूंकि अर्द्ध सामंती समाज में अराजकतावादी संगठन भी एक हद तक सामंतवाद विरोधी कार्यवाहियों में शामिल रहते हैं, इसलिए स्थानीय स्तरों पर इनके साथ संयुक्त कार्यवाहियों से भी हमें परहेज नहीं है. लेकिन फिलहाल बिहार में ये संगठन हमें सशस्त्र तरीकों से खत्म कर देने पर तुले हुए हैं. इसलिए यह जरूरी हो गया है कि हम इनके हमलों का मुंहतोड़ जवाब दें. हमें याद रखना होगा कि अराजकतावादी संगठन अंततः क्रांति में तोड़-फोड़ मचानेवाले और कम्युनिस्ट नेताओं व कार्यकर्ताओं की राजनीतिक हत्याओं को अंजाम देनेवाले सिरफिरे आतंकवादी गिरोहों में और पुलिस के दलालों में बदल जाते हैं. दुनिया का इतिहास यही बतलाता है. बेशक इस प्रक्रिया में इसके अंदर के अर्धराजनीतिक व राजनीतिक ईमानदार तत्व अलग होते जाते हैं और क्रांतिकारी जन आंदोलनों से जुड़ते जाते हैं.

सीपीएम ने हमारे खिलाफ कुस्तापूर्ण प्रचार अभियान में आरोप लगाया है कि हमने अचानक जमीन के राष्ट्रीयकरण का नारा देकर संयुक्त भूमि संघर्ष से अपने पांव खींच लिए हैं. भारी हैरतअंगेज बात है! राष्ट्रीयकरण के सवाल पर हम लंबे अरसे से चर्चा कर रहे हैं, वर्कशाप कर रहे हैं, पार्टी सम्मेलनों में प्रस्ताव ले रहे हैं. इसमें अचानकवाली कोई बात ही नहीं है. इससे भी बड़ी बात तो यह है कि इस नारे के साथ निचले स्तरों पर चलनेवाले भूमि संघर्षों को रोक देने का सवाल भी आखिर कहां से पैदा हो सकता है. हकीकत भी यही है कि तमाम जिलों में हमारे साथी खून की कीमत पर बहादुरी के साथ भूमि संघर्षों में हमेशा डटे रहे हैं. झूठ की पराकाष्ठा पर जाकर उन्होंने हम पर आरोप लगाया कि दरभंगा में हम भूपतियों के पक्ष में खड़े होकर भूमिहीन-गरीब किसानों के भूमि संघर्ष का विरोध कर रहे हैं. यह एक सामान्य ज्ञान की बात है कि दरभंगा व अन्य सब जगह हमारा सारा का सारा जनाधार भूमिहीन-गरीबों में ही है. भूपति भला हमारी पार्टी के साथ आएंगे ही क्यों? सीपीएम सत्ता की पार्टी है, बिहार में सरकार का दलाल संगठन है, इसलिए एक आम आदमी भी समझ सकता है कि भूपतियों के लिए सीपीएम के साथ रहना ही तो ज्यादा मुनासिब है. जमीनी सच्चाइयों को सफेद झूठ में बदलते हुए सीपीएम के बड़े-बड़े नेता भी लगातार यही झूठ बोले जा रहे हैं और एक सामंती लंपट तत्व की हत्या का बहाना बनाकर, जिसे वे अपना पार्टी सदस्य बताते हैं – सच भी है, अब ऐसे लोग तो उनके पार्टी सदस्य होंगे ही – उन्होंने दरभंगा पुलिस की मुखबिरी करते हुए हमारी पार्टी के नेताओं को जेल भिजवा दिया. सीपीएम की इन खेत मजदूर-गरीब किसान विरोधी नीतियों को राम-राम कर हम जो राजनीतिक-विचारधारात्मक संघर्ष चला रहे हैं, उसकी वजह से रांची, दरभंगा, नवादा जैसे जिलों में उसका पुराना जनाधार क्रमशः हमारी ओर आकर्षित हो रहा है.

सबसे बढ़कर हमारे छात्रों-नौजवानों ने रोजगार के सवाल पर एक राज्यव्यापी जुझारू आंदोलन की शुरूआत की. पटना में मुख्यमंत्री को घेरने का अभियान व अरसे बाद बिहार बंद में मिली सफलता ने फिर से 1974 के आंदोलन की याद ताजा कर दी है. इसी के बाद किसान सभा ने पटना में दसियों हजार किसानों की जुझारू गोलबंदी करके भूमि सुधार के सवाल को राजनीतिक एजेंडे में ला खड़ा किया है. आज से बीस वर्ष पहले के 1974 के जनउभार से अगर हम अलगाव में थे तो आज दावे के साथ यह बात कही जा सकती है कि बिहार के आर्थिक-सामाजिक विकास व राजनीतिक व्यवस्था के लोकतंत्रीकरण के लिए होने वाले किसी राज्यव्यापी आंदोलन का नेतृत्व हमारी पार्टी ही करेगी.

तकरीबन 20,000 लोगों की भागीदारी के साथ रांची में झारखंड के लिए समानांतर विधानसभा पर हमारी पहलकदमी भी नए स्तर के 1974 आंदोलन में एक नया आयाम जोडेगी. क्योंकि झारखंडी जनता की लोकतांत्रिक मांग को अपने में समाहित किए बगैर बिहार की राजनीतिक व्यवस्था का लोकतांत्रीकरण अधूरा ही रह जाएगा.

भूमि सुधार व झारखंडी जनता की स्वायत्तता लंबे समय से बिहार के लोकतांत्रिक आंदोलन के प्रमुख मुद्दे रहे हैं. 1974 की संपूर्ण क्रांति की धारणा में इन मुद्दे को गौण कर दिया गया था. पर क्रांति तभी संपूर्ण कही जा सकती है जब ये बुनियादी मुद्दे उसकी धुरी बनें, जब सबसे दलित-पीड़ित समुदाय उसके केंद्र में हो. इन्हीं धारणाओं के तहत हम आज वामपंथी नेतृत्व व संपूर्ण क्रांति की बातें कह रहे हैं और इसी के साथ वास्तविक कार्यवाहियों में भी उतर रहे हैं.

मुस्लिम जनता में वामपंथ के प्रति बढ़ते रुझान को संस्थाबद्ध रूप देने की कोशिश में इंकलाबी मुस्लिम कांफ्रेंस का गठन किया गया है. बिहार सामंतवाद विरोधी संघर्षों का केंद्र है. इन संघर्षों का असर मुस्लिम जनसमुदाय पर भी पड़ रहा है. इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि मुस्लिम समुदाय में सबसे प्रगतिशील धारा की आधारभूमि बिहार ही बने.

हमारी यह तमाम कोशिशें, ये चौतरफा पहलकदमियां तभी कारगर हो सकती हैं, जबकि साथ ही साथ पार्टी को उन्नत विचारधारा से लैस किया जाए और एकीकृत व अनुशासित पार्टी संगठन का निर्माण किया जाए. इसके अभाव में सारी की सारी कोशिशें बेकार, यहां तक कि नुकसानदेह साबित हो सकती हैं तथा अलग-अलग जन संगठनों, तबकों के अपने-अपने संकीर्ण स्वार्थ में पार्टी ताकतों को टुकड़ों-टुकड़ों में बिखेर दे सकती हैं. बिहार राज्य कमेटी ने इसीलिए एक शुद्धीकरण अभियान की शुरूआत की है और मैं तमाम पार्टी कतारों का आह्वान करता हूं कि वे इसके तात्पर्य को गहराई से समझें, इसमें सक्रियता से हिस्सा लें और पार्टी के अंदर मौजूद तमाम गैरसर्वहारा प्रवृत्तियों व आदतों के खिलाफ जोरदार संघर्ष चलाएं. आज अगर विचारधारात्मक तौर से एक मजबूत और एकीकृत पार्टी हमारे पास होगी तो कल अवश्य ही हमारा होगा.