ज्यादातर गांवों में इण्टरनेट की तो बात ही मत कीजिये, ठीक से बिजली भी नहीं आती. वे कैशलेस कैसे बनेंगे? वैसे बड़े शहरों में भी कैशलेस बनना आसान बात नहीं है, क्योंकि चाहे जब मोबाइल सिग्नल गायब हो जाते हैं. कश्मीर और मणिपुर जैसे राज्यों में इण्टरनेट और मोबाइल फोन सेवायें सुरक्षा के नाम पर आये दिन बन्द कर दी जाती हैं. बंगलुरू जैसे शहरों में भी नस्लीय व साम्प्रदायिक हिंसा रोकने के नाम में इन सेवाओं को बंद किया गया था. ऐसे हालात में लोग बिना कैश के जिन्दा कैसे रह पायेंगे? फिर कितने लोगों के पास चालू बैंक खाता, क्रेडिट/डेबिट कार्ड होते हैं? सरकार के अपने ही सामाजिक-आर्थिक सर्वे के अनुसार देश के 75% ग्रामीण परिवारों में महीने में रु. 5000 से ज्यादा कमाने वाला एक भी सदस्य नहीं होता. रोज दिहाड़ी करने वाले की जेब में कैश नहीं रहेगा तो वह शाम का आटा-दाल भी कैसे खा पायेगा?