शुरू में जनता ने समझा कि ‘नोटबंदी तो बुरी चीज नहीं है, लेकिन इसे लागू करने में गड़बड़ी हुई’. अब तथ्यों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि नोटबंदी के पीछे इरादे कुछ और ही थे.
क्या नोटबंदी अपने तुगलक और हिटलर जैसे अहं को संतुष्ट करने के लिए एक अति अहंकारी उन्मत्त व्यक्ति की पागलपन भरी सनक का परिणाम भर थी? या इस सनक में भी एक सोची समझी रणनीति छिपी है? आगे देखते हैंः