सरकार का कहना है कि नोटबंदी एक ऐसा काम है जो हमारी अर्थव्यवस्था से पुराने खराब खून को निकाल कर उसकी जगह नया, ताजा खून भरेगा. 86% खून बाहर निकाल लिया- बाद में बताया कि नया खून तैयार नहीं है अतः इन्तजार में बैठे रहिए! जितने खून (कैश) की जरूरत थी उसके 14% पर ही जिन्दा रहने पर जनता को मजबूर कर दिया.
एक और उदाहरण से नोटबंदी को समझते हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि तालाब का पानी (कैश) गंदा हो गया है और मगरमच्छ (काला धन) भी बहुत हैं, इसलिए पानी निकाल कर नया पानी डालेंगे और मगरमच्छ भी पकड़ में आ जायेंगे. पानी निकाल दिया लेकिन नया साफ पानी डालने के लिए था ही नहीं. मगरमच्छ तो बिना पानी के भी सांस ले सकते थे सो वे बच गये, और छोटी मछलियां (अर्थव्यवस्था और आम जनता) बिना पानी के मरने लगीं!
सरकार और रिजर्व बैंक बार-बार नोट-बदली के नियमों में बदलाव क्यों करते रहे? सरकार का कहना है कि 6 महीनों से इसकी तैयारियां चल रही थीं, नोटबंदी करते समय क्या दिक्कतें आती हैं इसकी जानकारी विशेषज्ञों के पास होती है. तब नियम एक बार में पहले ही बन कर तैयार होने चाहिए थे?
लेकिन:
प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री और रिजर्व बैंक ने आश्वस्त किया था कि नोट बदलने के लिए पर्याप्त समय है इसलिए अफरातफरी की जरूरत नहीं है, 30 दिसम्बर तक लाइनें छोटी हो जायेंगी. लेकिन 19 दिसम्बर को रिजर्व बैंक ने एक नया नियम जारी कर दिया कि 5000 से ज्यादा के पुराने नोट केवल एक बार में ही जमा किये जायेंगे और नोट जमा करने में हुई देरी का स्पष्टीकरण भी देना होगा! भारतीय रिजर्व बैंक ने जल्दी-जल्दी नियमों में इतने बदलाव किये हैं कि अब इसे भारतीय रिवर्स (उल्टा) बैंक कह लेना ही उपयुक्त है. फिर एक और नये नियम की चर्चा आयी कि 30 दिसम्बर के बाद जिसके पास 500 और 1000 के पुराने नोट पाये जायेंगे उसे जुर्माना देना होगा. यह बिल्कुल ही हास्यास्पद बात है कि जो नोट रद्दी बना दिये गये, तो रद्दी कागजों को रखना अपराध कैसे हो जायेगा?
धीरे-धीरे यह स्पष्ट हो गया कि उचित संख्या में नये नोट छापने में अभी काफी वक्त लगेगा. इसका मतलब है अनिश्चित काल तक लोग अपने बैंक खातों से अपनी जरूरत के अनुसार खुद का पैसा निकाल नहीं पायेंगे. प्रधानमंत्री का वायदा कि 50 दिनों के बाद मुश्किलें समाप्त हो जायेंगी, झूठ साबित हो चुका है. वित्तमंत्री ने तो कह भी दिया है कि मामला 50 दिनों का नहीं है, हो सकता है 3 महीने लगे या 6 महीने भी लग जायें.
बार-बार नियमों में बदलाव और बार-बार वायदे टूटने के बाद जनता अब समझ गयी है कि सरकार के वायदों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.