- अगर मण्डी समितियां (एपीएमसी) केवल आॅनलाइन पेमेण्ट से ही लेन-देन करने लगें तो छोटे किसानों के लिए धनी किसानों के आगे टिकना मुश्किल हो जायेगा, क्योंकि पैसे वालों के लिए डिजिटल होना आसान है.
- गांवों में बिजली बहुत कम पहुंचती है. हालत इतने बदतर हैं कि राजस्थान, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के कई आदिवासी इलाकों में लोगों को अपने फोन चार्ज करने के लिए आस-पास के कस्बों/तहसील में आना पड़ता है. मोबाइल नेटवर्क कवरेज इतना कमजोर होता है कि कभी-कभी तो फोन करने के लिए ऊंची छत या पास की किसी पहाड़ी पर चढ़ना पड़ता है. ऐसे में डिजिटल लेन-देन की सोचना भी मूर्खता है.
- उन साप्ताहिक बाजारों का क्या होगा, जो शनि बाजार/बुध बाजार/मंगल बाजार जैसे नामों से सभी शहरों व गांवों में लगते हैं? क्या वे डिजिटल बन सकते हैं? या कैशलेस की दौड़ उन्हें पीछे धकेल देगी?
- सरकार खेतों में सिंचाई के लिए तो इतने सालों में बिजली नहीं पहुंचा पायी. अब हम उम्मीद करें कि कैशलेस हेतु बिजली और इण्टरनेट रातों-रात दिलवा देगी?
गरीब अपना राशन कैसे लेंगे?
राशन की दुकानों में स्वाइप मशीनें लग गईं तो सभी बीपीएल/एपीएल कार्ड धरकों के लिए डेबिट कार्ड रखना जरूरी हो जायेगा. उसके बाद भी अगर बिजली नहीं आयी, स्वाइप मशीन खराब हो गई या सिग्नल कमजोर हुआ तो खाने का राशन कैसे मिलेगा? स्वाइप मशीन लगाने का खर्च/किराया अतिरिक्त बोझ होगा. गरीबों के लिए कैश देकर सामान लेना ज्यादा आसान है, यहां तक कि वे पेटीएम भी नहीं चाहते.