(8 मार्च 1996 को दिल्ली में भाकपा(माले) द्वारा आयोजित ‘अधिकार रैली’ में दिया गया भाषण,
समकालीन लोकयुद्ध, 15 अप्रैल 1996 से)
नजर जितनी दूर जाती है सिर्फ लाल झंडे ही नजर आ रहे हैं. कहते हैं जनता इतिहास बनाती है. आज इस लाल किले के मैदान में आपने एक नया इतिहास कायम किया है. हमने यह कहा था कि हमारी रैली इस दशक में हुई तमाम रैलियों का रिकार्ड तोड़ेगी. हमने यह दावा किया था कि वामपंथ की यह सबसे बड़ी रैली होगी और इस सच्चाई को आपने साबित किया है. रैलियों के तमाम पुराने रिकार्ड को तोड़ते हुए आपने एक नया इतिहास यहां कायम किया.
दोस्तो, आज की इस रैली का रिकार्ड जरूर एक-न-एक दिन टुटेगा और मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि दूसरा और कोई नहीं, एक बार फिर सीपीआई(एमएल) इसी दिल्ली में इस रिकार्ड को तोड़ेगी.
हमने आपसे यह अपील की थी कि आप रास्ते की तमाम दिक्कतों को दूर करते हुए दिल्ली पहुंचें. और हमने देखा, हमारे साथी, और यहां तक कि तमाम दूसरी वामपंथी पार्टियों की कतारों के भी तमाम लोग हमारे इस आह्वान पर यहां पहुंचे. इस रैली के लिए हमने तमाम वामपंथी बुद्धिजीवियों से बातें कीं, तमाम लोकतंत्र पसंद लोगों से सहयोग मांगा और मैंने देखा कि बहुत बड़ी संख्या में वामपंथी और लोकतांत्रिक बुद्धिजीवियों ने भी हमें इस रैली में तमाम किस्म से सहयोग दिए. यह आप सबके सहयोग का नतीजा है कि आज की यह विशाल रैली संभव हुई है. आज हम समझते हैं कि हमारा देश एक खास मुकाम पर खड़ा है, एक खास चौराहे पर खड़ा है जहां से वह एक रास्ते की तलाश कर रहा है. आज ही के दिन शायद इस लोकसभा के आखिरी सत्र का आखिरी दिन होगा और आज ही के दिन इस दिल्ली की सड़कों पर लाखों की तादाद में सारे हिंदुस्तान से किसान-मजदूर आए हुए हैं. इस संसद के सामने उनका यह सवाल है कि पिछले पांच वर्षों में इस संसद में क्या हुआ? यह एक सवाल है जिसका जवाब इस संसद के पास नहीं है. हमने यह देखा कि पिछले पांच वर्षों में एक माइनॉरिटी सरकार ने दूसरे दलों के सांसदों को पैसे देकर खरीदकर अपनी नाजायज सरकार चलाई. हमने यह देखा कि इस सरकार के मंत्रियों का बहुत बड़ा हिस्सा हवाला कांड में फंसा हुआ है, चार्जशीटेड है. कुछ तो जेल की भी हवा खा रहे हैं. तो दोस्तो, यह सवाल पैदा होता है कि ऐसा एक प्रधानमंत्री जिसका पूरा का पूरा काबीना ही भ्रष्टाचार में, घोटाले में डूबा हुआ हो, भला वह प्रधानमंत्री कितना ईमानदार हो सकता है? इसलिए सवाल उठा, हमारी पार्टी ने यह मांग उठाई कि सीबीआइ की जो जांच हो रही है वह जांच असली सरगनों के खिलाफ होनी चाहिए. तमाम दूसरों के खिलाफ तो हो रही है, लेकिन इन सभी भ्रष्टाचारियों का जो सरगना था उसे क्यों छोड़ दिया गया है? यह मांग हमारी पार्टी ने उठाई है. यही मांग इस रैली में भी उठाई गई है.
हां, जरूर राव साहब को मैं एक बात के लिए बधाई देता हूं कि उन्होंने जब देखा कि उनका सितारा गर्दिश में है तो उन्होंने कहा – इस तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे, और दिखा पड़ा कि सारी की सारी जो स्थापित राजनीतिक पार्टियां कहां हैं, आज कहा जा रहा है कि हम्माम में तो सब नंगे हैं. देश के सामने एक नई चुनौती आ खड़ी हुई है कि ऐसे हालात में हमारा देश किन रास्तों की ओर बढ़ेगा. मैं समझता हूं कि आज हमारे देश को नई राह की जरूरत है. देश को नई ताकतों की जरूरत है. यह जो पुरानी ताकतों का बोझ है, इस बोझ को सर से उठाकर फेंक देना है. इस पूरे बोझ को कूड़ेदान में फेंक देना है. नयी ताकतों को आज हिंदुस्तान में अपनी पहलकदमी बढ़ाते हुए देश की बागजोर को अपने हाथों में लेना है और इसीलिए हमारी पार्टी ने इस रैली को किया. इस रैली के प्रति हमने जितने बड़े पैमाने पर समर्थन देखा वह बात को साबित करता है कि हमारा देश एक नए रास्ते की ओर जाना चाहता है. और हमारी जिम्मेदारी है, वामपंथ की जिम्मेदारी है कि वह देश की जनता को नेतृत्व प्रदान करे.
तो साथियो, बहुत सारी बातें आ रही हैं. इस चुनौती के मुकाबले के लिए बहुत तरह के विकल्पों की बातें की जा रही हैं. पिछले कुछ दिनों में हमने देखा कि ये बातें आ रही थीं कि कुछेक ईमानदार नौकरशाह शायद हिंदुस्तान में क्रांति ला दें. लेकिन आपने देखा कि यह संभव नहीं है. दुनिया के किसी भी देश के इतिहास में नौकरशाहों ने क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं लाया है. क्रांतिकारी परिवर्तन हमेशा इन नौकरशाहों को हटाकर ही लाया गया है. फिर, यह कहा जाने लगा, अब शायद हिंदुस्तान में परिवर्तन सुप्रीम कोर्ट लाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने अगर हवाला कांड में या भ्रष्टाचार के दूसरे मामलों में कोई पहलकदमी ली है तो हम जरूर उसका स्वागत करते हैं. लेकिन कई सवाल रह जाते हैं. हमने पिछले दिनों देखा, इसी सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व के मामले में एक फैसला लिया. हमने देखा कि महाराष्ट्र के चीफ मिनिस्टर ने अपने चुनाव में खुलेआम यह घोषणा की थी कि उनकी सरकार बनेगी तो महाराष्ट्र में पहला हिंदू राज्य होगा. मुकदमें की जब सुनवाई चल रही थी तब हर आदमी ने यह सोच रखा था कि मनोहर जोशी का चुनाव खारिज होनेवाला ही है. शिवसेना-बीजेपी वाले वहां पर नए मुख्यमंत्री का चुनाव कर रहे थे. लेकिन सारे देश ने बड़े अचरज के साथ देखा कि सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व की नई-नई परिभाषाएं दीं और उनके चुनाव को खारिज नहीं किया. और मैं कहना चाहूंगा टेलिकॉम के घोटाले पर. सरकार की नई इकॉनमिक पालिसी से जुड़े एक और बहुत बड़े घोटाले का बात आई थी. बात जब सुप्रीम कोर्ट में गई तब हमने बड़े अचरज से देखा कि कितनी तेजी से उस मामले में फैसला हुआ. हम देखते हैं, आमतौर पर मुकदमों के फैसले बड़े लंबे चलते हैं. लेकिन हमने देखा कि बहुत तेजी से वहां फैसले हुए और सुखराम जी को पूरी तरह से बरी कर दिया गया. यहां तक कि सरकार की टेलीकॉम पालिसी के पक्ष में भी, निजीकरण के पक्ष में भी बहुत सारे तर्क जुट गए. इसलिए मैं यह कहना चाहता था कि अगर कोई यह समझता हो कि देश में क्रांतिकारी परिवर्तन सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए आएंगे, तो मैं मसझता हूं कि वह एक मध्यवर्गी सपना हो सकता है, वह जमीनी सच्चाई नहीं हो सकती. देश में अगर क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की ताकतें हैं, तो वे ताकतें इन मजदूर-किसानों की हैं, इन लाखों लोगों की हैं जिन्होंने आज दिल्ली की सड़कों पर मार्च किया है. यही वह ताकत है जो देश में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है.
हम यह कहना चाहेंगे कि आज हमारा शासक वर्ग एक बहुत बड़े संकट में फंसा हुआ है. इस संकट से निकलने के लिए तमाम किस्म के मुद्दे उछाले जा रहै हैं. भारतीय जनता पार्टी वालों ने फिर से फैसला लिया है कि हमें हिंदुत्व का मुद्दा बड़े जोर-शोर से उछालना है. नए सिरे से पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की बातें भी की जा रही हैं. तनाव भड़काए जा रहे हैं. हम भारतीय जनता पार्टी वालों को यह कहना चाहते हैं कि देशप्रेम का ठेका तुमने नहीं लिया हुआ है. देश के साथ हम मोहब्बत करते हैं. देश की आजादी के लिए, देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए संघर्ष में सबसे आगे कम्युनिस्ट पार्टी के लोग रहेंगे, सबसे आगे कम्युनिस्ट पार्टी लड़ेगी, सबसे आगे हम कुर्बानी देंगे. इन जनसंघियों को शुरू से ही हम जानते थे. शुरू से आम लोग भी यह जानते थे कि ये अमरीकी दलाल हैं. आप देखें हाल के दिनों में ही सीआइए की एक स्टडी, उनका एक शोध निकला था जिसमें उन्होंने यह कहा था कि हिंदुस्तान बहुत दल्दी टूट जाएगा. ये अमरीकियों के सपने हैं, ये सीआइए वालों के सपने हैं और हम समझते हैं कि भारत को तोड़ने की साजिश कोई यहां अगर कर रहा है तो वे भारतीय जनता पार्टी जैसा पार्टियां कर रही हैं. हिंदुत्व के नारे के साथ वे जिस तरह से हिंदुस्तानियों के दिलों को बांट रहे हैं वह एक न एक दिन फिर हमारे देश को विभाजन की ओर ले जाएगा. इसलिए मैं यह बात कहना चाहता हूं कि असल में उग्र देशप्रेम के नाम पर भारतीय जनता पार्टी जैसी ये ताकतें सीआइए के इशारे पर फिर एक बार भारत को विभाजित करने की कोशिशें कर रही हैं और हमें इन कोशिशों को जरूर नाकाम करना होगा.
विकल्प के सवाल पर तीसरे मोर्चे की बातें उठी हैं. हम तमाम लोकतांत्रिक-वामपंथी ताकतों के साथ अवश्य ही दोस्ती करना चाहते हैं. लेकिन मैं एक बात कह देना चाहूंगा कि मंडल और सामाजिक न्याय की जो ताकतें थी उनकी प्रगतिशीलता की सीमा समाप्त हो चुकी है. उत्तरप्रदेश में पिछले दिनों जब मुलायम सिंह यादव का राज था तो हमने यह देखा कि मुजफ्फरनगर में उत्तराखंड के प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलायी गई. वहां महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया. इस सिलसिले में मुलायम सिंह जी का पहला बयान था कि यह सब झूठ है. पुलिस का मनोबल गिराने के लिए यह सब कुछ प्रचार किया जा रहा है. हमारे देश में पुलिस का मनोबल बनाए रखना जरूरी होता है और पुलिस का मनोबल बनाए रखने के लिए बलात्कार करने की छूट देना ही शासक वर्गों की राजनीति है. फिर बाद में जब इस पर दबाव बढ़ा तो उन्होंने कहा कि अगर यह साबित हो जाए तो हम राष्ट्र के सामने माफी मांगेंगे. यह बात साबित हो चुकी है लेकिन उन्होंने राष्ट्र के सामने माफी नहीं मांगी, माफी उन्होंने उत्तराखंड के लोगों के सामने मांगी है. दोस्ती के कदम बढ़ाने के पहले हमारी यह मांग है कि मुजफ्फरनगर कांड में जो कुछ हुआ उसके लिए सारे राष्ट्र के सामने माफी मांगनी चाहिए.
साथियो, इस तीसरे मोर्चे की ताकत के रूप में दूसरी जिस सबसे बड़ी ताकत का नाम आता है वह लालू यादव और उनका जनता दल है. प्रेस के जरिए हो या तमाम मीडिया के जरिए, उनकी जो तस्वीर सारे देश में रखी गई है, हम समझते हैं, वह बिहार की असलियत नहीं है. बिहार के अंदर जाकर आप देखें, वहां पर सामाजिक न्याय और उसके नाम पर जो कुछ हुआ है वह सिर्फ इतना ही हुआ है कि लूट-खसोट के मामले में सवर्णों का जो मलाईदार तबका था उसमें पिछड़ों का भी एक मलाईदार तबका शामिल हो गया है. आज जिस पशुपालन घोटाले की बात हो रही है उसमें जिन दो शख्सियतों का नाम आ रहा है वे हैं जगन्नाथ मिश्र और लालू यादव. और, ये दोनों एक दूसरे को जी जान से बचाने की कोशिशें कर रहे हैं. पहले मुझे बड़ा अचरज होता था जब मैं देखता था कि लालू जी का एक ही कार्यक्रम था. वे बार-बार घोषणा करते थे कि हम गरीबों के लिए मकान बनवा देंगे. मकान बनवाने के सिवा दूसरी कोई बात वे नहीं करते थे. मुझे लगता था इतनी सारी बातें हैं, इतनी मांगे हैं, उनकी नजर में सिर्फ मकान ही क्यों घूमता रहता है. बाद में मुझे पता लगा कि असल में पशुपालन घोटाले के पैसे के बल पर पटना में बड़े-बड़े मकान बन रहे हैं – बड़े-बड़े महल बन रहे है. इसलिए मकान के सिवा दूसरा कुछ उन्हें नजर ही नहीं आ रहा. आपको हम बताना चाहते हैं कि बिहार के अंदर हमारी पार्टी के एक विधायक को, जनता के लोकप्रिय नेता को पिछले छह महीनों से जेल में बंद कर दिया गया है. वहां हमारे हजारों साथियों के खिलाफ तमाम मुकदमे चल रहे हैं. हमारे ये तमाम लोग वहां जनांदोलन कर रहे हैं, सामंती ताकतों के खिलाफ लड़ रहे हैं. हम पाते हैं कि सरकारी प्रशासन उन्हीं सामंतों के साथ गठजोड़ किए रहता है. वहां लगातार जनसंहार हो रहे हैं, बड़ी-बड़ी घटनाएं घट रही हैं. लेकिन प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती और हमारे हजारों हजार साथियों को या तो जेलों में बंद करके रखा गया है या उनके ऊपर वारंट जारी कर दिया गया है. उन्हें उम्मीद है कि इस दमन के जरिए वे बिहार से भाकपा(माले) को उखाड़ फेंकेंगे. लेकिन आप यह सच्चाई देखें, मैंने कई बार इस बात को कहा भी है, मैं फिर यह कहना चाहूंगा कि आज तक ऐसी किसी बंदूक की गोली नहीं बनी है, ऐसी किसी बंदूक का आविष्कार नहीं हुआ है जो भाकपा(माले) को उखाड़ फेंक सके, आज तक ऐसे नोट नहीं छपे हैं जो भाकपा(माले) के नेताओं को खरीद सकें. साथियो, हम जिंदा हैं, हम आगे बढ़ रहे हैं, हमारे कितने साथियों को मारा गया है, हमारे हजारों लोगों को जेलों में बंद करके रखा गया है, हमारे हजारों लोगों के खिलाफ मुकदमे हैं, इसके बावजूद, हमारा जनांदोलन, हमारी ताकत लगातार बढ़ती चली जा रही है. जो लोग यह समझते थे कि लालू यादव के पिछलग्गू बने रहने से उनकी पार्टी की ताकत बढ़ेगी उनकी पार्टी का आज बिहार से, बिहार की जमीन से सफाया हो चुका है.
हम जरूर चाहते हैं कि तीसरा मोर्चा बने. हम चाहते हैं कि तमाम प्रगतिशील लोकतांत्रिक ताकतें एक साथ हाथ मिलावें. लेकिन उसके लिए सबसे पहले जनता की ओर देखना चाहिए. किसी मुलायम-लालू-जयललिता में ताकत नहीं हुआ करती. ताकत होती है आम जनता में, मजदूरों-किसानों में. सबसे पहले हमें उस ताकत के बल पर आगे बढ़ने की हिम्मत होनी चाहिए. इस हिम्मत के बल पर ही हम अपने दोस्त तलाश सकते हैं, हमें मित्र मिल सकते हैं – जिन मित्रों को हम नेतृत्व दे सकते हैं. तब हम उनके पीछे- पीछे घिसटने नहीं.
हम कहना चाहते हैं कि राजनीति में किस्म-किस्म के समझौते करने पड़ते हैं. हम इस या उस लोकतांत्रिक ताकत के साथ, इस या उस मुद्दे पर थोड़े समय के लिए, यहां-वहां दोस्ती कर भी सकते हैं, थोडे समय के लिए राष्ट्रीय पैमाने पर भी दूसरी लोकतांत्रिक शक्तियों के साथ कुछ मोर्चे बन सकते हैं. लेकिन मैं यह ऐलान करना चाहता हूं कि हम इस किस्म के किसी स्थायी मोर्चे में विश्वास नहीं करते. तमाम तथाकथित धर्मनिरपेक्ष विकल्प की जो धारणा है – ऐसी धारणा, जो कहती है कि हमेशा के लिए एक स्थायी किस्म का कोई तीसरा मोर्चा बनेगा और नेशनल फ्रंट जैसी ताकतें उसको नेतृत्व देंगी – हम इस किस्म के किसी स्थायी मोर्चे के पक्ष में नहीं हैं. वामपंथ की ताकतों को आगे बढ़ाने के लिए, लोकतांत्रिक आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए हम जरूर इससे या उससे दोस्ती कर करते हैं – सामयिक तौर पर, कुछ समय के लिए, लेकिन हम किसी भी स्थायी मोर्चे में अपने आपको कभी बांध नहीं सकते, क्योंकि यही क्रांतिकारी राजनीति हुआ करती है.
आज हमारे सामने बहुत बड़ी-बड़ी चुनौतियां हैं. हमने बार-बार अपने वामपंथी दोस्तों से अपील की है कि आइए, हमारे बीच तमाम फर्क रहते हुए भी हम एक साथ चलने की कोशिश करें. हम यह बात साफ कर देना चाहेंगे कि सीपीआई(एमएल) का जन्म ही हुआ था वामपंथ पर छाए अवसरवाद को खत्म करने के लिए. और इस सवाल पर भाकपा(माले) कभी समझौता नहीं कर सकती. यह बुनीयादी सवाल है. भाकपा(माले) अगर इस सवाल पर समझौता कर ले, अवसरवाद से समझौता कर ले, आंदोलन से समझौता कर ले तो उसके अस्तित्व की जरूरत ही खत्म हो जाती है. मैं यह बात साफ कर देना चाहूंगा कि भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का जन्म ही हुआ था तमाम किस्म के अवसरवाद के सफाए के लिए और हमारा वह संघर्ष अवश्य ही जारी रहेगा. कोई भी अगर किसी भी दबाव के बल पर, किसी भी दादागीरी के बल पर, किसी भी वामपंथी एकता के नाम पर यह समझता हो कि हमारी पार्टी को क्रांतिकारी उद्देश्यों से, क्रांतिकारी लक्ष्यों से दूर हटा सकता है तो मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि वह मूर्खों के स्वर्ग में वास कर रहा है. हां, इन बुनियादी फर्कों के रहते हुए भी देश के सामने जो संकट हैं, जो समान मुद्दे हैं उन मुद्दों पर और आज देश की जरूरत पर हम एक साथ काम कर सकते हैं. जन संगठनों के मंचों पर हम पिछले पांच बरसों से एक साथ काम कर रहे हैं और तमाम मतभेदों के बावजूद सारे देश में राजनीतिक मुद्दों को उठाते हुए एक साथ चल सकते हैं. इसके लिए हमारी पार्टी हमेशा कोशिश करती रहेगी. हमारी यह कोशिश वर्षों से जारी है, हमारी यह कोशिश अगले पांच वर्षों तक भी जारी रहेगी, हमारी यह कोशिश अगले दस वर्षों तक भी जारी रहेगी. हमने वामपंथ की विभिन्न धाराओं से, चाहे वे सीपीआई-सीपीएम हों, चाहे नक्सलबाड़ी धारा से उपजे हुए तमाम दूसरे ग्रुप हों, सबके साथ दोस्ती की बात कही है. जो सामूहिक मुद्दे हैं, सबके साथ मिलकर एक साथ लड़ने की बात कही है. इस मामले में हमारी पार्टी कभी कोई संकीर्णता नहीं करती जैसा कि जन संगठन के मंचों पर यह साबित भी हो चुका है. हमारे बुनियादी फर्क हैं और रहेंगे. कहा जाता है कि आप वाम मोर्चा सरकार की आलोचना मत करें. हम आपके सामने यह कहना चाहते हैं कि बंगाल में सिद्धार्थ शंकर राय के जमाने में (कांग्रेसी जमाने में) हजारों जवानों का खून कर दिया गया था, एनकाउंटरों में हजारों नौजवानों को ठंडे दिमाग से मार दिया गया था, हमारी पार्टी के नेता सरोज दत्त और चारु मजुमदार जैसे लोगों की भी हत्या की गई. वाम मोर्चा सरकार वहां 18 वर्षों से शासन में है, गर्व के साथ कहते हैं कि हम 18 वर्षों से शासन में हूं. ठिक है, आप 18 वर्षों क्यों, 88 वर्ष शासन कीजिए. हमें इसमें कोई गम नहीं है. लेकिन हमारा यह सवाल था – 1970 के पूरे दशक में सिद्धार्थ शंकर राय के जमाने में जो कत्लेआम हुए और आप ही ने खुद स्वीकार किया कि यहां ये कत्लेआम हुए थे, फासीवाद चला था – मैं यह जानना चाहता हूं कि अठारह वर्षों के शासन में उन अपराधियों में एक को भी क्या एक दिन की भी सजा वाम मोर्चा सरकार के जमाने में हुई है? कामरेड सरोज दत्त सिर्फ हमारी पार्टी के नेता नहीं थे. वे पूरे बंगाल के एक विशिष्ट बुद्धिजीवी थे, वामपंथी बुद्धिजीवी थे. उनकी मौत की जांच का सवाल आज भी वहां अनसुलझा पड़ा है. बंगाल के दस हजार विशिष्ट बुद्धिजीवियों ने दस्तखत करके भी ज्योति बसु के पास दिया कि आप इसकी जांच करायें. लेकिन आज तक इस सिलसिले में कुछ भी नहीं किया गया. हम इन सवालों को उठाते हैं जो सीपीएम के विरोध में नहीं हैं. ये सवाल पूरे लोकतांत्रिक आंदोलन के भविष्य के सवाल हैं क्योंकि कांग्रेस की वे काली ताकतें फिर एक बार बंगाल में अपना सर उठा रही हैं. बंगाल में सिद्धार्थ शंकर राय एक बार फिर वापस आ रहा है. उनकी ममता बनर्जी फिर एक बार लोगों में लोकप्रिय हो रही हैं. इसलिये हम यह कहते हैं कि आपने 18 वर्षों के शासन में इनमें से किसी को भी कोई सजा न दी उसी का नतीजा है कि आज ये तमाम काली ताकतें फिर एक बार वापस आने की कोशिशें कर रही हैं.
इसलिए दोस्तो, हम ये मांगें उठाते रहेंगे क्योंकि ये मांगें वामपंथी आंदोलन के स्वार्थ में हैं, क्योंकि ये मांगें लोकतांत्रिक आंदोलन के स्वार्थ में हैं. ये मांगें किसी इस या उस पार्टी के विरोध के लिए नहीं हैं, इस या उस सरकार के विरोध के लिए नहीं हैं; लोकतंत्र के लिए हैं. हम लोकतांत्रिक क्रांति की बातें करते हैं. लोकतंत्र की यह भी मांग होगी, लोकतंत्र समकालीन मांगों पर आगे बढ़ेगा. उसमें से एक भी मांग, एक भी मुद्दे को भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) कभी नहीं छोड़ेगी. उससे चुनाव में हमें सीटें मिलेंगी या नहीं मिलेंगी, हमारे लोग जीतेंगे या हारेंगे इसकी हम कभी परवाह नहीं करते.
आप यहां आएं हैं इस लालकिले के सामने, इस लालकिले पर लाल झंडा फहराने का सपना इस मुल्क के कम्युनिस्टों का बहुत पुराना सपना है. यह लालकिला वह ऐतिहासिक स्थान है, जहां 1857 में आजादी की लड़ाई का बिगुल बजा था. आज हमारे देश को एक ओर बाहर की बहुराष्ट्रीय निगमों के हाथों, दूसरी ओर हमारे देश के अंदर तमाम ये जो हवाला किस्म की ताकतें हैं, थैलीशाह हैं, माफिया हैं, इनके हाथों बेच दिया गया है. पहले हम सुना करते थे टाटा-बिड़ला की बात, टाटा-बिड़ला के हाथों एमपी-एमएलए बिका करते थे. लेकिन आज हम देखते हैं, किसी भी ऐरा-गैरा नत्थू-खैरा के हाथों हमारे देश के ये सांसद बिकते चले जा रहे हैं. कहां एसके जैन, जिसके बारे में पहले कोई भी कुछ भी नहीं जानता था, आज उसी के हाथों हमारे देश के ये सांसद बिकते चले जा रहे हैं.
इसीलिए एक बार फिर देश की आजादी की लड़ाई हमें लड़नी है. देशप्रेम का झंडा एक बार फिर हम कम्युनिस्टों को बुलंद करना है. यह हमारी जिम्मेवारी है. 1857 से जो लड़ाई शुरू हुई थी वह लड़ाई अभी भी पूरी खत्म नहीं हुई है, यह लड़ाई जारी रहेगी. देशप्रेम के झंडे को हमें आगे बढ़ाना है. यह हमारा फर्ज है और इस सिलसिले में ये जो तमाम प्रगतिशील बुद्धिजीवी हैं जो तमाम किस्म के आंदोलनों में लगे हुए लोग हैं, मैं उन सबसे यह अपील करूंगा कि देश के आज के संकट के समय में आप सिर्फ अलग-अलग आंदोलनों में अलग-अलग किस्म के मुद्दों में ही सिमटे मत रहिए. आप में से बहुत ही अच्छे, बहुत योग्य लोग हैं. आज समय की मांग है कि देश के सारे ईमानदार लोग, सारे ईमानदार बुद्धिजीवी, हम सब इकट्ठा हों, हम सब नजदीक आएं और यह एलान करें कि यह देश तुम्हारा नहीं है, यह देश इन थैलीशाहों का नहीं है, यह देश इन माफियाओं का नहीं है, यह देश इन पूंजीपतियों का नहीं है, यह देश भ्रष्ट नेताओं का नहीं है. यह देश मजदूरों का है, यह देश किसानों का है, यह देश नौजवानों का है, यह देश बुद्धिजीवीयों का है, यह देश हमारा है और इस देश पर हमारा हक होगा, इस देश की बागडोर हमारे हाथों में होगी.
तो साथियो, आपको यह लड़ाई लड़नी है. आप संघर्षों के खेत-खलिहानों से आए हैं, कारखानों से आए हैं. लौटने के बाद आपकी फिर एक बार वहां संघर्षों में जुटना पड़ेगा. खासकर, भोजपुर के साथियों से मैं ये कहना चाहूंगा. वहां के साथी बड़ी दिलेरी के साथ मुकाबला करते हुए आए हैं. उनके ऊपर वहां ग्रेनेड फेंके गए थे. यहां जो सामंती ताकतें हैं वे जनसंहार संगठित कर रही हैं. आप लौटेंगे और लौटकर आपकी फिर संघर्षों में उलझना है, संघर्षों को आगे बढ़ाना है. लेकिन आपको यहां से, रैली से यह सबक लेकर जाना है कि आपकी लौटकर वहां इन सामंती सेनाओं के, रणवीर सेना के छक्के छुड़ा देने हैं, इनका सफाया कर देना है. इस रैली के ऊपर कलंक हैं, जो समाज के विकास के रास्ते में रुकावट बनी हुई हैं, जो आम गरीब, निरीह, निर्दोष लोगों की हत्याएं कर रही हैं, हिम्मत के साथ इनके मुकाबले में आपको खड़ा होना है.
मैं आपसे कहना चाहूंगा कि सामने चुनाव आनेवाले हैं. ये चुनाव शायद एक दो दिनों में ही घोषित हो जाएं. इन चुनावों में आपके सामने एक बहुत बड़ा मौका है. आज तमाम राजनीतिक पार्टियों का चेहरा खुल गया है, उनकी नकाब खुल गई है. इसलिए आपके सामने यह मौका है कि आप जनता के पास जाएं, जनता को बताएं – इस पूरी व्यवस्था के बारे में बताएं, तमाम राजनीतिक पार्टियों के चेहरे के बारे में बताएं और उन्हें यह बताएं कि आज हमें और हमारे देश को एक नई राह पर चलना है, और वह नई राह कोई दूसरी ताकत नहीं सिर्फ भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ही दे सकती है. मुझे पूरा यकीन है, मेरा यह पूरा विश्वास है और फिर मैं अपनी पहली बात दुहराते हुए कहूंगा कि आज से कुछ वर्षों बाद फिर हम दिल्ली के इस लालकिले के मैदान में मिलेंगे, आज की इस रैली के रिकार्ड को फिर एक बार तोड़ देने के लिए.
इंक्लाब जिंदाबाद!