हमने देखा कि कैसे शिक्षा व काम के अधिकार के लिए, बाल विवाह, दहेज, सती और अन्य तमाम सामंती कुप्रथाओं आदि सवालों पर महिला आंदोलन ने सामंती ताकतों को कैसे टक्कर दी है. यह जंग विभिन्न रूपों में आज भी जारी है. भले ही महिलाओं ने कानूनी तौर पर बराबरी व अन्य अधिकार हासिल कर लिये हैं, सामंती संस्कृति की जड़ें अभी भी बहुत गहरी हैं और महिलाओं की आजादी पर लगातार हमले हो रहे हैं, कन्या भ्रूण व बालिका हत्या धड़ल्ले से जारी है और भारत का लिंग अनुपात शर्मनाक स्थिति में पहुंच चुका है. जाति/गोत्र/समुदाय की मान्यताओं के खिलाफ अपना साथी चुनने वाले जोड़ों को खाप पंचायतें, सामंती परिवार और संघ परिवार के संगठन उत्पीड़ित कर रहे हैं, कैदी बना रहे हैं और यहां तक कि उनकी हत्यायें भी कर रहे हैं. बजरंग दल और श्रीराम सेने जैसे हिन्दूवादी संगठन और मुस्लिम कठमुल्लावादी संगठन महिलाओं पर ‘ड्रेस कोड’ और तरह तरह की नैतिक बंदिशें थोप रहे हैं और इन बंदिशों को तोड़ने वाली महिलाओं पर हमले कर रहे हैं. जातिवाद और पितृसत्ता के बीच का अंतर्संबंध काफी गहरा है – अपना साथी चुनने के महिलाओं के अधिकार को नियंत्रित करना दमनकारी और भेदभावपूर्ण जाति संस्था को बनाये रखने का एक तरीका है.
साम्प्रदायिक और जातीय हमलों में भी महिलाओं को निशाना बनाया जाता है. गुजरात में 2002 में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं को बलात्कार का निशाना बनाया गया. गुजरात पुलिस द्वारा काॅलेज की एक युुुवा लड़की इशरत जहां को ठण्डे दिमाग से मार कर ‘आतंकवादी’ करार दे दिया गया. खैरलांजी जैसी घटनायें – जहां एक दलित महिला और उसकी बेटी का सामूहिक बलात्कार किया गया और फिर बर्बरता से पूरे पविार के साथ उनकी हत्या कर दी गई – कोई अपवाद नहीं हैं. हाल ही में हरियाणा में मिर्चपुर गांव में ऊंची जाति के लोगों द्वारा एक दलित युवती और उसके पिता को जिन्दा जला दिया गया.
महिलाओं की आजादी पर सभी तरह के सामंती रूढ़िवादी हमलों और हर तरह के साम्प्रदायिक व जातीय भेदभाव और हिंसा का महिला आंदोलन हमेशा प्रतिरोध करता रहेगा.