ऊपर के पन्नों में हमने इस बात की एक झलक भर देखी है कि कैसे बराबरी और आजादी के लिए लड़ते हुए महिलाओं ने एक नया इतिहास रच दिया, और कैसे नारी स्वतंत्रता की यह जद्दोजहद आज भी जारी है. महिलाओं की आजादी के हमारे संघर्ष में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की परंपरा की शुरुआत करने वाली इतिहास की उन बहादुर महिला मजदूरों व समाजवादी और कम्युनिस्ट नेताओं से हम क्या सीख ले सकते हैं?
क्लारा ज़ेटकिन, अलक्सांद्रा कलंताय, और बहुत से देशों की उन महिला मजदूरों, जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को संघर्ष के दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत की, का मानना था कि महिलाओं को उत्पीड़न से पूर्ण मुक्ति ऐसी दुनिया में ही मिल सकती है जहां मनुष्य द्वारा मनुष्य का उत्पीड़न न होता हो – अर्थात् एक कम्युनिस्ट दुनिया. साथ ही उनका यह भी मानना था कि महिलाओं को सम्पूर्ण बराबरी और आजादी के बगैर कोई भी दुनिया सही मायनों में मुक्त नहीं कही जा सकती. इसीलिए उन्होंने कहा कि महिला मुक्ति का संघर्ष और समाजवाद व कम्युनिज्म का संघर्ष एक साथ चलेंगे और इस जंग में उत्पीड़ित वर्ग की महिलायें संघर्ष की सबसे अगली कतार में होंगीं. महिला आंदोलन के हमारे अनुभव अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के प्रणेताओं के इसी विश्वास की पुष्टि कर रहे हैं.
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का मार्ग प्रशस्त करने वाली उन प्रणेताओं के संघर्ष को आगे बढ़ाने का हमारा दृढ़ संकल्प ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है !
महिला मुक्ति के लिए आगे बढ़ो,
समाजवाद और साम्यवाद की ओर चलो,
उत्पीड़न और गैरबराबरी से मुक्त दुनिया का निर्माण करो !