वर्ष 2010-11 अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस का शताब्दी वर्ष है. हर वर्ष 8 मार्च को भारत की केन्द्रीय और राज्य सरकारें और दुनिया भर में तमाम सरकारें महिलाओं के पक्ष में बहुत सी घोषणाएं करती हैं. बाजार और मीडिया इसे एक ऐसे दिन के बतौर पेश करता है जब पुरुष, औरतों के लिये ‘उपहार’ खरीदते है – और इस तरह अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस को एक निरर्थक और व्यर्थ बाजारू तमाशे में बदल देने की कोशिश होती है. सरकारें अपनी कथनी में महिला ‘सशक्तीकरण’ के दावे करती हैं. जबकि उनकी करनी हमेशा उन तमाम सामाजिक-आर्थिक ढांचों को मजबूूत करती है जो महिलाओं को कमजोर और कमतर बनाते हैं. अखबार और टीवी चैनल और तमाम राज्याध्यक्षों की लफ्फाजियाँ अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के वास्तविक इतिहास का कोई आभास तक नहीं होने देते.
क्या संयुक्त राष्ट्र ने अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की परम्परा की शुरुआत की थी? या कि किसी सरकार ने? या पिफर वे आम-मेहनतकश महिलायें ही थीं जिन्होंने समानता और स्वतंत्रता की अपनी आकांक्षा और माँगों के प्रतीक के रूप में इस दिन को चुनते हुए इतिहास रच दिया था? जब हम अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सौ सालों का जश्न मना रहे हैं तो सचमुच किस बात को याद कर रहे हैं? क्या हम जानते हैं कि किस बात के लिए यह जश्न मनाया जा रहा है?
सरकारें और कारपोरेट मीडिया घराने महिला दिवस की सच्ची विरासत को सामने न आने देने की भरसक कोशिश करती हैं क्यों कि उन्हें इसके पीछे की सच्चाई से बहुत उलझन होती है, कि दरअसल एक शताब्दी पहले सड़कों पर निकल कर प्रदर्शन करने वाली वे कम्युनिस्ट महिलायें ही थीं जिन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत की. 1909 से 2010 के बीच इस बात की लगातार कोशिशें होती रही हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस को उसकी क्रांतिकारी कम्युनिस्ट विरासत और राजनीतिक महत्व के सच्चे संदर्भों से काट दिया जाय.
मगर इन तमाम सालों में, महिला कामगारों और महिला आन्दोलनों ने अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के वास्तविक महत्व और इतिहास को धूमिल करने के प्रयासों का प्रतिरोध करते हुए महिला दिवस को गैर-बराबरी से मुक्त दुनिया के लिये संघर्ष और प्रतिरोध दिवस के रूप में जिन्दा रखा है. चाहे वह अमेरिका, ब्रिटेन जैसे विकसित पूँजीवादी देश हों, या भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देश या पिफर अफ्रीकी और लातीनी अमेरिकी देश हों – महिला आन्दोलन, कम्युनिस्ट आन्दोलन, ट्रेड यूनियन और तमाम जन आन्दोलन हर साल अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस को बराबरी और अधिकारों के लिये महिलाओं के संघर्ष की याद और उसे अग्रगति प्रदान करने वाले दिन के रूप में मनाते हैं.
अगर महिलाओं ने अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास रचा है, तो महिला आन्दोलन को ही इस इतिहास को मिटाने और भुलाने की हर साजिश का मुकाबला भी करना होगा. यह पुस्तिका अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सच्चे इतिहास को समझने, याद करने और सलाम करने का एक प्रयास है और साथ ही महिला आन्दोलन के कुछ खास मील के पत्थरों को याद और सलाम करने का भी. कहने की जरूरत नहीं कि ऐसी छोटी सी पुस्तिका में भारत और समूची दुनिया के महिला आन्दोलन के शानदार इतिहास को समेटना मुमकिन नहीं है. हमने महज कुछ बेहद खास संघर्षों एवम् उपलब्धियों को याद करने की कोशिश की है – और बहुत सारी छूट गयी उपलब्धियों और संघर्षों की चर्चा नहीं कर पाने के लिये माफी के तलबगार हैं, इस उम्मीद के साथ की पाठिकाओं को संघर्षशील महिलाओं द्वारा रचे गये शानदार इतिहास के और भी पड़ावों की खुद पड़ताल के लिये यह पुस्तिका प्रेरित करेगी.
हमने भारतीय महिला आन्दोलन के आज के दौर की कुछ खास चुनौतियों को भी संक्षेप में रखने का प्रयास किया है और साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस और महिलाओं के संघर्षों के शताब्दियों के इतिहास की उस अन्तर्दृष्टि को भी जो हमारे आज के संघर्षों को प्रेरणा दे सकती है.
भारतीय महिला आंदोलन के कुछ दस्तावेज और तस्वीरों के लिए हम ‘द हिस्ट्री आॅफ डूइंगः एन इल्लस्ट्रेटिड एकाउण्ट आॅफ मूवमेण्ट्स फाॅर वीमेन्स राइट्स एण्ड फेमिनिज्म इन इण्डिया 1800-1990’, राधा कुमार, वर्सो, 1993 और ‘भारतीय महिला आंदोलन में कम्युनिस्टों की भूमिका’, रेणु चक्रवर्ती, पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, 1983 के प्रति आभार व्यक्त करते हैं.