यूपीए सरकार द्वारा जारी विज्ञापनों में नरेगा कार्यस्थल पर कार्यरत मुस्कुराती महिलाओं की फोटो है और यह नारा भी कि सरकार की बदौलत महिलाओं को सम्मानपूर्ण कार्य मिला. लेकिन सच्चाई इस खूबसूरत प्रचार से काफी दूर है. एक उदाहरण लें मिर्जापुर में मार्च 2010 में नरेगा में कार्यरत एक महिला का पांच साल का बच्चा तालाब में डूब गया, क्योंकि वहां नरेगा नियमों का उल्लंघन हो रहा था. नरेगा कानून के तहत हर कार्यक्षेत्र में बच्चों की देखभाल के लिये क्रेश का प्रावधान है. शायद ही किसी नरेगा कार्यस्थल पर क्रेश होंगे. अधिकांश जगहों पर महिलाओं को काम मिलता ही नहीं, जबकि नरेगा में 33 प्रतिशत रोजगार महिलाओं के लिये आरक्षित हैं. कई बार काम की प्रकृति महिलाओं के लिये न्यायपूर्ण नहीं होती और उन्हें पुरुषों से कम मजदूरी मिलती है. नरेगा का अनुभव कोई अपवाद नहीं है – रोजगार के प्रत्येक क्षेत्र मे महिलायें समान अधिकार और अवसर से वंचित हैं.
शोषण और भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष में भारतीय महिला श्रमिकों के हाथों में प्रतिरोध का वही परचम होगा जिसे उनकी जुझारु बहनों ने एक शताब्दी पूर्व लहराया था!
- आठ घंटे के कार्य दिवस, जिसे महिलाओं ने एक शताब्दी पूर्व हासिल किया था, का आज व्यापक रूप से उल्लंघन हो रहा है. असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिला श्रमिकों को कई घंटे अधिक काम करना पड़ता है.
- भारत में महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी 36 प्रतिशत है, जो कि पुरुषों की भागीदारी 85 प्रतिशत के आधे से भी कम है.
- महिलाओं की वार्षिक आय पुरुषों की आय का एक तिहाई है.
- जबकि वयस्क महिलाओं का श्रम शक्ति में प्रतिनिधित्व कम है, वहीं बालिकाओं का बाल श्रम में प्रतिनिधित्व अधिक है: एनएसएसओ के 2004-2005 के आंकड़ों के अनुसार 15 वर्ष से अधिक आयु की महिलायें भारत में कुल रोजगार प्राप्त आबादी का 27 प्रतिशत हैं, जबकि बालिकाएं बाल श्रमिकों का 42 प्रतिशत हैं.
- रोजगार के हर स्तर पर समान काम के लिये महिलाओं को पुरुषों से कम वेतन मिलता है और उन्हें लैंगिक भेदभाव के अन्य रूपों एवं यौन उत्पीड़न का भी शिकार होना पड़ता है.
- वर्ष 2009 की महिलाओं के रोजगार का वैश्विक रुझान पर रिपोर्ट में दिखाया गया है कि वैश्विक आर्थिक संकट का महिलाओं पर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा प्रतिकूल असर पड़ा जिसमें महिलायें सबसे पहले काम से निकाली गईं और सबसे बाद में रखी गईं। यह बात खास तौर पर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर लागू है.
- कृषि क्षेत्र में महिलाओं की श्रम शक्ति का अधिक प्रतिनिधित्व है. कुछ अधिक औद्योगीकृत क्षेत्रों को छोड़ दिया जाये तो वैश्विक स्तर पर महिलाओं के रोजगार का करीब आधा हिस्सा कृषि क्षेत्र में कार्यरत है. वैश्विक स्तर पर कृषि आधारित रोजगार में महिलाओं का हिस्सा 1999 में 40.8 प्रतिशत से घटकर 2009 में 33.5 प्रतिशत हो गया. इस गिरावट का प्रतिकूल असर महिलाओं के रोजगार पर पड़ा है.
- भारत में शहरी महिला श्रमिकों का एक तिहाई हिस्सा उन उद्योगों में कार्यरत है जहां मंदी का सबसे अधिक असर पड़ा, मसलन टैक्सटाइल, कपड़ा एवं चमड़ा उद्योग.
- अर्थव्यवस्था के सबसे कम वेतन और असुरक्षित क्षेत्रों में महिलाओं का अधिक अनुपात है.
- आशा और आंगनबाड़ी जैसे स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यरत ग्रामीण श्रमिक महिलाओं के मामले से साफ है कि खुद सरकार ही कम वेतन देकर महिलाओं के श्रम का शोषण कर उसी पित्तृसत्तात्मक धारणा को बढ़ावा दे रही है जिसमें महिला श्रम को समाज की ‘स्वैच्छिक’ सेवा माना जाता है.