(17-18 फरवरी 1994 को दिल्ली में हुए आइसा के द्वितीय राष्ट्रीय सम्मेलन में दिया गया भाषण. समकालीन लोकयुद्ध, 15 मार्च 1994 से)

हाल के वर्षों में छात्र-राजनीति के क्षितिज पर जो सितारा तेजी से उभरा है उसी का नाम आइसा है. इस ऐतिहासिक मौके पर मैं इस लाल सितारे को सलाम करता हूं.

बीसवीं सदी के अंतिम छोर पर आज हम एक अजीब नजारा देख रहे हैं. इतिहास की घड़ी का कांटा पीछे की ओर लौट रहा है. मानो इतिहास खुद दो कदम पीछे जा रहा हो – समाजवाद पूंजीवाद की ओर और तीसरी दुनिया औपनिवेशीकरण की ओर. पुरानी परिभाषाएं भी बदल रही हैं. कल के कंजरवेटिव आज के सुधारक कहे जा रहे हैं और कल के रैडिकल आज के कंजरवेटिव.

इतिहास-ग्रहण की इस वेला में आप छात्रों की उस जमात के प्रतिनिधि हैं जिन्हें बहाव के खिलाफ तैरना है, जिन्हें सामने की ओर इतिहास के अगले कदम के लिए जमीन तैयार करनी है.

जिम्मेदारी कठिन है और इसीलिए चुनौती भरी भी. आपको इस रास्ते में कभी बहुतेरे दोस्त मिलेंगे तो कभी-कभी आपको अकेले भी यह राह तय करनी पड़ सकती है. जीत उन्हीं की होती है जो कठिन स्थितियों में अकेले भी चलते की हिम्मत रखते हैं.

’70 के दशक के शुरूआती वर्षों में हमने छात्रों का महान उभार देखा है. क्रांतिकारी आदर्श से लैस और क्रांतिकारी जोश-खरोश से भरपूर – रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में ‘जीवन-मृत्यु के पायरे भृत्य बानिए’, हजारों-हजार छात्रों को हमने राजसत्ता की क्रूर ताकत से टकराते देखा है. शौर्य व बलिदान की यह अमिट गाथा आपकी धरोहर है, आपकी परंपरा है.

बाद के अरसे में, परिस्थितियों ने हमें समाज की वर्तमान संस्थाओं के साथ तालमेल करने के लिए और उनके अंदर से ही सामाजिक परिवर्तन की गति को तेज करने के लिए मजबूर कर दिया. आप समग्र क्रांतिकारी आंदोलन के इसी दूसरे चरण की उपज है. इस दौर में भारत के विभिन्न हिस्सों में तमाम विफल कोशिशों की सरजमीन पर आपकी सफलता की कहानी रची गई है.

’70 के दशक की क्रांतिकारी भावना और आपकी टैक्टिकल दक्षता का सम्मिश्रण ही आपके आगे बढ़ने की कुंजी है. इसे आपको कभी नहीं भूलना चाहिए.

आज के संदर्भों में आपको हमारे देश में बढ़ते साम्राज्यवादी हस्तक्षेप के खिलाफ व्यापक भारतीय जनता के संयुक्त मोर्चा के लिए काम करना है. सामाजिक परिवर्तन के लिए आपको मेहनतकश जनसमुदाय के साथ संघर्षों की अगली-कतार में खड़ा होना है और बेहतर शिक्षा व रोजगार की गारंटी के लिए आपको छात्र समुदाय का नेतृत्व करना है.

क्या ये सारे कार्य एक दूसरे का निषेध करते हैं? क्या इसका सहज अंकगणितीय योगफल एकल समग्र का निर्माण करेगा?

मेरी राय में दोनों ही बातें गलत हैं. व्यवहार के दौरान ही आप तमाम कार्यभारों में समन्वय स्थापित करने की समस्या का हल निकाल पाएंगे. लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि सामाजिक परिवर्तन के लिए संघर्षों में हिस्सेदारी ही समस्या के सर्वांगीण समाधान की कुंजी है, हो सकती है.

जैसे एक छात्र-युवा का क्रांतिकारी चरित्र मेहनतकश जनसमुदाय से उसकी समरूपता द्वारा निर्धारित होता है उसी तरह एक छात्र-युवा संगठन का क्रांतिकारी चरित्र भी सामाजिक परिवर्तन के संघर्षों में उसकी सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करता है.

ऐसे तमाम सर्वेक्षण व विचार, जो छात्र समुदाय की क्रांतिकारी ऊर्जा पर संदेह पैदा करते हैं, गलत हैं, सरासर गलत हैं. छात्र समुदाय समाज से अलग-थलग या समाज पर बाहर से थोपा हुआ कोई समुदाय नहीं होता. बल्कि छात्र समुदाय तो वो आईना है जिसमें समाज की अंदरूनी सतह पर चल रही सामाजिक हलचल साफ दिखाई पड़ती है. उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश (यूपी) के विश्वविद्यालयों में उसकी जीत सांप्रदायिकता के जुनून के उतरने की पहली निशानी थी.

तमाम उपभोक्तावादी प्रयत्नों के बावजूद, गहराते सामाजिक-राष्ट्रीय अंतरविरोधों की पृष्ठभूमि में, छात्र सबसे पहले व सबसे आसानी से इन तमाम प्रभावों से मुक्त हो सकते हैं. आपको छात्रों की क्रांतिकारी ऊर्जा पर भरोसा रखना चाहिए, भरोसा रखना चाहिए भारत के मेहनतकश जनसमुदाय पर.

हमारी पार्टी छात्र-युवा आंदोलन की आम दिशा तय कर देने में विश्वास रखती है. अपनी विशिष्टताओं के चलते, अपनी गतिमयता के चलते, छात्र-युवा इस दिशा पर अपने विशिष्ट तरीकों से ही बढ़ेंगे. पहले से सारे कदम ठीक कर देना न तो संभव ही है न उचित ही.

आपने अपनी लंबी कूच में कई किलों को ढहाया है, कई मठों को तोड़ा है. किंतु आज भी बहुतेरे किले ढहाने बाकी हैं, बहुतेरे मठ तोड़े जाने बाकी हैं.
आपकी नई-नई जीतों की उम्मीद के साथ मैं  पार्टी की केंद्रीय कमेटी की ओर से आपके सम्मेलन का अभिनंदन करता हूं.