मुनाफे की औसत दर के गिरने की प्रवृत्ति -- जिसे मार्कस ने “हर लिहाज से आधुनिक अर्थनीति का सबसे महत्वपूर्ण नियम और सबसे कठिन सम्बंधों को समझने के लिये अत्यंत आवश्यक” माना था (ग्रुंड्रिस, पृ. 748) -- पर हमारे जोर देने के चलते किसी को यह नहीं समझ लेना चाहिये कि आर्थिक चक्र और व्यापार चक्र एकपक्षीय होते हैं यानी बस इसी एक कारण से संचालित होते हैं. उसके अन्य कई महत्वपूर्ण कारण होते हैं, जैसे पूंजीवादी उत्पादन पद्धति की अराजकता, जो अन्य चीजों के अलावा पूंजीवादी अर्थतंत्र के दो प्रमुख परिक्षेत्रों- एक में पूंजीगत मालों का उत्पादन होता है और दूसरे में उपभोक्ता मालों का, के बीच संतुलन की स्थितियों को समय-समय पर पटरी से उतार देता है. मार्कस ने कई ऐसे सहायक कारकों का भी जिक्र किया था जो किसी खास संकट के विशिष्ट गतिपथ और चारित्रिक गुणों को प्रभावित करते हैं. उनमें से ज्यादा महत्वपूर्ण कारक हैं वेतनमानों का घटना-बढ़ना, पूंजीवादी संस्थाओं के बीच प्रतियोगिता, कच्चे मालों के दामों में उतार-चढ़ाव, उम्मीदें (या अपेक्षाकृत आधुनिक शब्द का प्रयोग किया जाय तो “भरोसा”), सूद की दरों में घट-बढ़ और वित्तीय उथल-पुथल, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के रुझान, इत्यादि-इत्यादि.
“इस नियम के अंदरूनी अंतर्विरोधों” की व्याख्या मार्कस को चंद ऐसी “अंतर्विरोधी प्रवृत्तियों और परिघटनाओं” की चर्चा की तरफ ले जाती है, जो “एक ही साथ एक-दूसरे का प्रतिकार करती हैं”. उन्होंने ऐसी कई अंतर्विरोधी विशिष्टताओं का उल्लेख किया है- जैसे पूंजी की मात्रा बढ़ते जाने के साथ-साथ मुनाफे की दर का गिरते जाना, पूंजी की उच्च दैहिक संरचना के साथ-साथ बढ़ती उत्पादकता, और घोषणा की है कि:
“ये भिन्न-भिन्न प्रभाव किसी एक समय में किसी स्थान में मुख्य रूप से साथ-साथ कार्यरत हो सकते हैं और किसी दूसरे समय में वे एक के पीछे एक कर प्रकट हो सकते हैं. समय-समय पर परस्पर शत्रुतापूर्ण कारकों के बीच का संघात संकटों में खुद को जाहिर करता है. लेकिन ये संकट हमेशा केवल क्षणिक होते हैं और इनसे मौजूदा अंतर्विरोधों का बलपूर्वक समाधान होता है. ये ऐसे उग्र विस्फोट होते हैं जो एक समय के लिये बिगड़े संतुलन को वापस पटरी पर लाते हैं.” (वही, पृ. 249, जोर हमारा)
यहां हमारे सामने पूंजीवाद की अंतर्निहित कार्यप्रणाली के बतौर संकटों की महत्वपूर्ण भूमिका का सबसे सारगर्भित, संक्षिप्त विवरण पेश किया गया है, जो एक सीमा तक एक नए सुधार का रास्ता भी तैयार करता है, ठीक जैसे कोई जंगल की आग वनभूमि को वृद्धि के एक नये दौर के लिये प्रस्तुत करती है. ऐसा कैसे होता है, इसका वर्णन करने के लिये मार्कस अपनी व्याख्या में एक और कदम आगे बढ़ाते हैं.