संकट के मूल उद्गम वाले देश में संघीय (अमरीकी) सरकार और फेडरल रिजर्व (केन्द्रीय बैंक) ने बैंकों को संकट से राहत दिलाई और उन्हें “प्रोत्साहन” देने वाला एक कानून पास किया जिसने अर्थतंत्र के असहाय भाव से पतन पर रोक लगाई. पूरे यूरोप में सरकारों ने इसी रास्ते का अनुसरण किया. मगर देश की 99 प्रतिशत जनता की समस्याओं को -- ऊंचे दर्जे की बेरोजगारी, निम्न स्तर की मजदूरी, कर्ज अदा करने में लाचारी, आवासहीनता और डूब चुकी बंधकी जैसी समस्याओं को हल करने के लिये कुछ भी नहीं किया गया. आज कारपोरेशनों के पास धनराशि की भरमार है मगर वे निवेश करने में हिचकिचा रहे हैं क्योंकि उपभोक्ताओं के पैसे से लाचार अथवा बेरोजगार होने के कारण मांग में तो कोई इजाफा हो नहीं रहा. अमरीकी हाउस आॅफ रिप्रेजेन्टेटिव्स (प्रतिनिधि सभा) द्वारा वर्ष 2011 में पारित “कमखर्ची का फैसला” के तहत अमरीकी सरकार अपने खर्चों में कटौती कर रही है जिसके फलस्वरूप बाजारों में और भी मंदी छा गई है. आवासीय परिक्षेत्र को पांच वर्ष पहले जो झटका लगा था उससे आज भी वह नहीं संभल सका है.
“रोजगार संकट की समस्या को हल कर पाने तथा सरकारी (सॉवरेन) ऋण विपदा को रोकने तथा वित्तीय क्षेत्र की दुर्बलता को बढ़ने से रोकने में नीति-निर्माताओं, खासकर यूरोप और अमरीका के नीति निर्माताओं की नाकामी ही वर्ष 2012-13 की संभावनाओं में विश्व अर्थतंत्र के समाने सबसे तीखा चोखिम बन गई है. नये सिरे से वैश्विक मंदी (रिसेशन) आने को तैयार खड़ी है. विकसित अर्थतंत्र चार कमजोरियों के कारण चक्रीय गति में पतन के कगार पर पहुंच गये हैं, और ये कमजोरियों आपस में एक-दूसरे को बल पहुंचा रही हैं – सरकारी ऋण विपदा, बैंकिंग परिक्षेत्र की दुर्बलता, कमजोर सकल मांग (जिसके साथ ऊंचे दर्जे की बेरोजगारी और वित्तीय कमखर्ची के कदम जुड़े हुए हैं) और राजनीतिक जाम तथा संस्थानिक त्रुटियों के चलते नीति के मामलों में लकवे का शिकार होना.”
वर्ल्ड इकनॉमिक सिचुएशन एंड प्रास्पेक्ट्स 2012 (संयुक्त राष्ट्रसंघ प्रकाशन) की एक्जीक्यूटिव समरी से
कुल मिलाकर, व्यापार चक्र की रोग-निवृत्ति (रिकवरी) होने के दौर के आरंभ होने के तीन वर्षों बाद, जून 2009 में जब अमरीका में महामंदी (ग्रेट रिसेशन) सरकारी तौर पर समाप्त घोषित हुई, तब भी अमरीकी अर्थतंत्र में ठहराव बरकरार है -- चाहे आप इसे पाॅल क्रुगमान के शब्दों में “तीसरी मंदी” (थर्ड डिप्रेशन) कहिये या फिर अमेरिकन इकनाॅमिक एशोसियेशन (एईए) के तत्कालीन अध्यक्ष राॅबर्ट ई. हाॅल द्वारा जनवरी 2011 में एईए के अधिवेशन में दिये गये भाषण के दौरान व्यवहृत शब्द “लम्बी गिरावट” (द लांग स्लम्प) कहिये. अपने बेस्टसेलर (सबसे ज्यादा बिकनेवाली किताब) ‘द ग्रेट स्टैग्नेशन’ में टायलर कोवेन ने दिखलाया है कि “बहु-दशकीय ठहराव” (ए मल्टी-डिकेड स्टैग्नेशन) अमरीकी अर्थतंत्र की एक चारित्रिक विशिष्टता बन गई है, जिसका आरंभ देश में आर्थिक संकट के आगमन के काफी पहले हो चुकी थी. वर्तमान ठहराव की प्रमुख विशेषता उसकी लड़खड़ाते हुए, रुक-रुक कर होने वाली रोग-निवृत्ति है, जिसके बीच-बीच में फिर से रोग के लक्षण प्रकट हो जाते हैं. अमरीका में 1930 के दशक में ऐसा ही हुआ था और ब्रिटेन में तो उससे भी पहले हो चुका था. ब्रिटेन के अनुभव के बारे में एंगेल्स ने 19वीं सदी के मध्य में लिखा था: “स्थायी रूप से ठहराव की स्थिति बने रहना ... जिसमें न तो पूरी तरह से विध्वंस (क्रैश) आयेगा; न ही बहुआकांक्षित समृद्धि का दौर आयेगा ... यह एक नीरस मंदी (डिप्रेशन) है -- सारे बाजारों और व्यापारों की स्थायी रूप से दिखने वाली अनचाही प्रचुरता -- जिसमें हम लगभग दस साल से जीते आ रहे हैं.” (इंगलैंड में मजदूर वर्ग की स्थिति)
यूरोप और जापान में भी स्थिति कोई बेहतर नहीं है. जापान में वृद्धि की दर इस वर्ष के मध्य में धीमी होकर 0.3 प्रतिशत पर आ गई है. 1 अगस्त 2012 को जारी किये गये सर्वेक्षणों ने दिखाया है कि परिधीय देशों में शुरू हुई गिरावट ने केन्द्र में भी गहरी जड़ें जमा ली हैं, जिसके फलस्वरूप 17-राष्ट्रों के यूरो जोन (इन देशों की साझी मुद्रा को यूरो कहते हैं) में मैन्युफैक्चरिंग गतिविधि लगातार ग्यारहवें महीने में भी संकुचित होती जा रही है, और चमत्कारपूर्ण प्रदर्शन करने वाले देश -- जर्मनी या इस अंचल के दूसरे सर्ववृहत् अर्थतंत्र फ्रांस -- भी इसके चंगुल से नहीं बच पाए. (यहां याद दिला दें कि जून 2012 में भारत की औद्योगिक उत्पादन 1.8 प्रतिशत संकुचित हो गया था). यूरोप के मुख्य भूभाग से पृथक इंगलैंड का क्रय-सम्बंधी प्रबंधक सूचकांक (परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स, पीएमआई, जिसकी गणना निजी क्षेत्र के प्रबंधकों द्वारा मालों के नये आर्डरों, पैदावार, रोजगार, आपूर्तिकर्ता द्वारा डिलीवरी में लिये गये समय, और खरीदे माल के भंडार जैसे विषयों को शामिल करते हुए भेजी गई मासिक सांख्यिकीय रिपोर्टों के आधार पर की जाती है) तीन वर्षों से ज्यादा अवधि में अपनी सबसे तेज दर से संकुचित होकर, त्रिवर्षीय अवधि के न्यूनतम बिंदु से नीचे गिर गया. आर्गनाइजेशन फाॅर इकनाॅमिक कोआॅपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के सचिवालय के अनुसार, यूरोपीय संघ के 27 देशों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि 2011 की पहली तिमाही में 2.4 प्रतिशत से गिरकर अंतिम तिमाही में महज 0.8 प्रतिशत रह गया है. गिरावट कितनी तीखी है, इसे रोजगार के आंकड़ों से भी देखा जा सकता है.