रणवीर सेना का सरगना और बथानी व बाथे का मुख्य हत्यारा ब्रह्मेश्वर सिंह ‘मुखिया’ इतने वर्षों तक कैसे छुट्टा घूमता रहा, यह एक शर्मनाक कहानी है, जिसमें दो मुख्यमंत्रियों की संलिप्तता रही है.
बथानी टोला जनसंहार के बाद पुलिस ने ब्रह्मेश्वर और उसके तीन सिपहसालारों भोला सिंह, साधू राय और भोदा भट्ट के नाम एफआइआर से हटा दिये थे. पुलिस अधीक्षक के पास भेजे गये प्रतिवादों के बावजूद एफआइआर में उनका नाम फिर से नहीं जोड़ा गया. बाथे से सम्बंधित एफआइआर में भी ब्रह्मेश्वर का नाम गायब था. इस प्रतिबंधित गिरोह द्वारा किये गये इन दो नृशंसतम जनसंहारों से सम्बंधित दोनों एफआइआर में से रणवीर सेना के सरगना का नाम हटा देने का फैसला तो सरकार के प्रमुख की ओर से ही लिया जा सकता है. ब्रह्मेश्वर सिंह इन मामलों में ‘गैर-नामजद अभियुक्त’ बना रहा.
और सचमुच, नीतीश सरकार ने ब्रह्मेश्वर को बचाने के लिये क्या कुछ नहीं किया! जब आरा सेशन कोर्ट ने मई 2010 में बथानी टोला के मामले में 23 लोगों को सजा दी तो उस समय ब्रह्मेश्वर को ‘भगोड़ा’ बताया गया था. आश्चर्य की बात है कि पुलिस जिस ‘भगोड़े’ को पकड़ पाने में खुद को असफल बता रही थी, उसे वर्ष 2002 में ही गिरफ्तार कर लिया गया था और वह उस वक्त आरा जेल के अंदर ही मौजूद था! एक विशेष लोक अभियोजक ने ‘द हिंदू’ से कहा था, “यह समझना काफी मुश्किल है कि जो अपराधी वर्ष 2002 से ही आरा जेल में बंद है, उसे सजा दिलाने में कौन-सी चीज पुलिस और सरकार को रोक रही है. यह साफ दिखता है कि पुलिस और सरकार, कोई भी न्याय सुनिश्चित कराने के लिये इच्छुक नहीं है.”
बथानी टोला मामले में आरा सेशन कोर्ट द्वारा न्यायादेश जारी किये जाने के बाद ही पटना के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने लक्ष्मणपुर-बाथे जनसंहार के मामले में रणवीर सेना के 16 लोगों को मौत की सजा और 10 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. लेकिन ब्रह्मेश्वर सिंह को किसी भी मामले में सजा नहीं हो सकी, और बथानी मामले में जो कुछ हुआ, वह दिखाता है कि आगे बाथे के मामले का भी क्या हश्र होने वाला है.
बथानी जनसंहार के मामले में उच्च न्यायालय के न्यायादेश पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए ब्रह्मेश्वर सिंह ने जद(यू)-भाजपा शासन को शाबाशी देते हुए कहा था कि अगर ‘कानून-व्यवस्था’ की गारंटी करने के लिये नीतीश सरकार जैसा कोई शासन होता तो रणवीर सेना बनाने की कोई जरूरत ही नहीं पैदा होती.
जुलाई 2011 में ब्रह्मेश्वर ‘मुखिया’ इसलिए आजाद हो पाया, क्योंकि बिहार सरकार ने उसकी जमानत की याचिका का अदालत में विरोध ही नहीं किया!