इस जनसंहार में जान बचा पाने वाले प्रमुख गवाह नईमुद्दीन अंसारी, जिनके परिवार की छह महिलाएं और बच्चे इस हत्याकांड की बलि चढ़ गये, पूछते हैं कि, “जिन लोगों के नाम हमने एफआईआर में दर्ज करवाए थे, अगर उन्होंने यह जनसंहार नहीं किया तो उस दोपहरी में 21 लोगों को किसने मारा?” नईमुद्दीन एवं अन्य जीवित बचे लोगों -- श्रीकिशुन चौधरी, राधिका देवी, मारवाड़ी चौधरी, लालचंद चौधरी -- ने पूछा: “जिन लोगों के खिलाफ हमने गवाही दी थी, वे सब छूट जायेंगे तो हमलोगों की जिंदगी की जिम्मेवारी कौन लेगा?”
इन सवालों का जवाब तो सिर्फ यह है कि सामंती-साम्प्रदायिक ताकतें और उनके राजनीतिक संरक्षक उनका दमन कर देना और उन्हें इतिहास से मिटा देना चाहते हैं, लेकिन बथानी टोला के बचे हुए लोग सिर्फ पीड़ित नहीं हैं -- वे योद्धा थे और योद्धा हैं, जो हार मानना या खामोश हो जाना नहीं जानते. बथानी टोला का शहीद स्मारक उन 21 निर्दोषों को विस्मृत नहीं होने देगा -- और उन 21 मृतकों के लिये न्याय का संघर्ष जारी रहेगा.