बथानी टोला एक दलित टोला है जो बड़की खड़ांव गांव से सटा हुआ है. जनसंहार से पहले वहां मजदूरी का संघर्ष या आर्थिक नाकेबंदी नहीं चली थी. बथानी टोला के खेत मजदूरों ने 1988 में न्यूनतम मजदूरी के लिए हड़ताल की थी. यह लम्बी चली थी और तबके जिलाधिकारी के हस्तक्षेप से हुए मजदूरों व भू-स्वामियों की बीच एक समझौते के बाद खत्म हुई थी.
मुहम्मद यूनुस नाम के एक युवा केमिकल इन्जीनियर ने 1978 में दलितों, मुसलमानों और आम गरीबों की व्यापक एकता के बल पर दबंग सामंती चरित्र के मुखिया को हरा कर बड़की खड़ांव के मुखिया चुनाव में जीत हासिल की थी. तब से ही बड़की खड़ांव के जमीन्दार और सामंती ताकतें दलित व अल्पसंख्यक समुदायों को सबक सिखाने की ताक में रहती थीं. तब से ही जमीन्दारों ने कर्बला की जमीन पर कब्जा करना शुरू कर दिया और बिहार सरकार की 1 डिसमिल जमीन पर बने एक इमामबाड़े को ध्वस्त कर दिया. कनपहरी और नवाडीह गांवों में जमीन्दारों द्वारा कब्जा की गई करबला की जमीन को वापस पाने के लिए दलितों और अल्पसंख्यकों ने सालों तक अदालती लड़ाइयां लड़ीं.
1995 में सहार और संदेश विधनसभा सीटों पर भाकपा(माले) की जीत सामंती ताकतों के लिए असहनीय थी. कर्बला मुक्ति जनजागरण मंच, भाकपा(माले) के नेतृत्व में कर्बला की जमीनों को वापस पाने के लिए जनवरी 1996 से आन्दोलन चला रहा था. इसी आन्दोलन के दौरान एक विरोध् मार्च से वापस लौट रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर रणवीर सेना ने हमला किया- इनमें अधिकांश हमलावर वही थे जिन्होंने बथानी टोला जनसंहार किया.
अप्रैल 1996 में रणवीर सेना के गुण्डों ने मुहम्मद सुल्तान की हत्या कर दी और बड़की खड़ांव में उन्हें दफनाये जाने से इंकार कर दिया. कर्बला की भूमि पर सुल्तान को दफनाने के लिए हुए संघर्ष की अगली कतार में बड़की खडांव के नईमुद्दीन अंसारी भी थे. रणवीर सेना द्वारा हो रहे लगातार हमलों के कारण नईमुद्दीन और करीब 58 अन्य गरीब मुस्लिम परिवार मजबूरी में मुख्य गांव छोड़ कर दलित बस्ती, बथानी टोला में बस गये.
इसके बाद बथानी टोला को निशाना बना कर साम्प्रदायिक जहर फैलाने का अभियान शुरू हो गया. 29 अप्रैल को रणवीर सेना ने ऐलान कर दिया कि बकरीद के दिन बथानी के मुसलमानों को नमाज नहीं पढ़ने दी जायेगी.बी.डी.ओ. और पुलिस की मौजूदगी में हालांकि नमाज तो पढ़ी गयी, लेकिन उसके बाद रणवीर सेना ने मुस्लिम घरों पर हमला और लूट-पाट की, और ये हमले फिर रोज ही होने लगे. पुलिस ने एफ.आई.आर. तक दर्ज करने से मना कर दिया. 7 जून को गांव के मुसलमानों ने मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के ‘जनता दरबार’ में जाकर सुरक्षा की गुहार लगाई, लेकिन हमले बदस्तूर जारी रहे. रणवीर सेना के गिरोहों ने 13 जून, 3, 8, और 9 जुलाई को बथानी के ग्रामीणों पर गोलियां चलायीं. पुलिस थाना और नजदीक के पुलिस कैम्पों को, साथ ही डी.एम. और एस.पी. को, प्रत्येक हमले की जानकारी जाकर दी गयी, लेकिन हमला करने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुयी.
भाकपा(माले) नेताओं के प्रतिनिधिमण्डल बार-बार जिलाधिकारी व एस.पी. से मिले और उन्हें रणवीर सेना द्वारा शीघ्र ही किसी बड़े नरसंहार की आशंका से अवगत कराया. अधिकारियों को इस बात की जानकारी थी कि बड़की खड़ांव में रणवीर सेना का विशाल जमावड़ा हुआ है और उन्होंने बड़े पैमाने पर हथियार भी जमा किये हैं. फिर भी अधिकारी चुप बैठे रहे और जनसंहार को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. यहां तक कि जब इस जघन्य जनसंहार को अंजाम दिया जा रहा था, तब भी पुलिस ने कुछ नहीं किया. पुलिस के तीन लोग, जिनमें बड़की खड़ांव पुलिस कैम्प का आॅफिसर इनचार्ज और दो चैकीदार हैं, नरसंहार को होते हुए चुपचाप देखते रहे. यह बात गौर करने लायक है कि ये तीनों अदालत में बचाव पक्ष के गवाह बन कर पेश हुए. लालू राज में रणवीर सेना पर किसी भी तरह की रोक न लगाने के निर्देश पुलिस व प्रशासन को थे, इसका ही यह सबूत ही तो है.