बथानी टोला के बाद रणवीर सेना को प्रतिबंधित कर दिया गया था, लेकिन मौत का तांडव बारम्बार होता रहा और पुलिस व प्रशासन इसके मूक दर्शक बने रहे. 26 मार्च 1997 को हैबसपुर (बिक्रम थाना, पटना जिला) में 10 लोग मारे गये. किंतु सबसे भयानक जनसंहार लक्ष्मणपुर-बाथे की दलित बस्ती बितन बिगहा में रचाया गया. 1 दिसम्बर 1997 की रात में रणवीर सेना के हथियारबंद दरिंदे सोन नदी (जो भोजपुर और जहानाबाद – अब अरवल – को पृथक करती है) को पार करके लक्ष्मणपुर बाथे गांव में पहुंचे. तलवारों और बंदूकों के सहारे उन्होंने 61 लोगों को मौत के घाट उतार दिया, जिनमें 27 महिलाएं, 16 बच्चे और 1 नवजात शिशु शामिल थे. तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन ने इसे ‘राष्ट्रीय शर्म’ कहा, लेकिन लालू सरकार को तनिक भी शर्म नहीं आई, उसने रणवीर सेना को अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन देना जारी रखा.
जनता दल के तत्कालीन सांसद चन्द्रदेव वर्मा ने रणवीर सेना पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग की. और 25 जनवरी 1999 को रणवीर सेना ने अरवल के शंकर बिगहा में 23 लोगों की हत्या कर दी. 10 फरवरी को नारायणपुर (जहानाबाद) में 12 व्यक्तियों को मार डाला गया तथा 16 जून 2000 को मियांपुर में 23 ग्रामीणों का कत्ल किया गया -- मियांपुर के अधिकांश मृतक यादव जाति के थे, जो लालू यादव का परंपरागत जातीय आधार हुआ करते थे.