घायलों का इलाज कराने से लेकर एफआईआर दर्ज करवाने तक हर काम के लिए शुरू से ही लड़ाई लड़नी पड़ी. भाकपा(माले) ने जनसंहार में डी.एम. और एस.पी. की मिलीभगत के लिए उन्हें दण्डित करने की मांग उठायी. जनता की गोलबंदी बढ़ती गयी और हजारों लोगों ने 17 जुलाई को बथानी टोला में आयोजित संकल्प सभा में भाग लिया. इस सभा को तब भाकपा(माले) के महासचिव विनोद मिश्र और भोजपुर के संघर्षों के नायक विधायक रामनरेश राम ने संबोधित किया.
22 जुलाई 1996 को भाकपा(माले) के हजारों कार्यकर्ताओं ने भारी बारिश और पुलिस की धमकियों और हिंसा को धता बताते हुए बिहार विधानसभा का घेराव किया. विधानसभा के अन्दर उपस्थित भाकपा(माले) विधायकों को बथानी जनसंहार के खिलाफ आवाज उठाने के कारण मार्शलों के माध्यम से बाहर करवा दिया गया. मुख्यमंत्री आवास के करीब आर-ब्लाॅक पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच घण्टों भिड़ंत होती रही. आंसू गैस, वाटर कैनन और लाठी चार्ज के बावजूद लोग वहां से हटे नहीं. पटना शहर की डी.एम. राजबाला वर्मा और ए.डी.एम. दीप्ति गौड़ भी प्रदर्शनकारियों पर पथराव में शामिल हो गयीं. वहां आये लोग कैसे भूल सकते थे कि जब बथानी में महिलाओं और बच्चों का कत्लेआम चल रहा था तब कुछ पुलिसकर्मी मूक दर्शक बने उसे चुपचाप देख रहे थे! आंदोलनकारियों के जुझारू तेवरों के आगे अंततः पुलिस भाग खड़ी हुई और वे बैरिकेड तोड़ कर आगे बढ़ गये. पुलिस द्वारा की गई पत्थरबाजी के दौरान भाकपा(माले) विधायक रामनरेश राम और महेन्द्र सिंह गम्भीर रूप से घायल हुए थे.
आइसा और आर.वाई.ए. के करीब पचास छात्र-नौजवानों का एक जत्था उसी दौरान विधानसभा के पोर्टिको तक पहुंच गया. वहां उन्होंने पुलिस के भारी लाठी चार्ज का सामना करते हुए नारे लगाये.
भाकपा(माले) के कई वरिष्ठ नेता डी.एम. और एस.पी. के विरुद्ध कार्यवाही करने की मांग पर आमरण अनशन पर बैठे. कामरेड रामेश्वर प्रसाद ने 3 अगस्त को अपना अनशन प्रारम्भ किया. उन्हें तीसरे दिन ही जेल में डाल दिया गया. जेल के अन्दर भी उनका अनशन पूरे एक महीने चला. शांतिपूर्ण अनशन का तरीका भी शासन-प्रशासन से बर्दाश्त नहीं हुआ. उसने कुटिलता के साथ का. रामेश्वर प्रसाद पर आत्महत्या का इल्जाम लगाया, जिसका केस आज भी चल रहा है. 22 अगस्त से कामरेड केडी यादव भी अनशन पर बैठ गये. वयोवृृद्ध कामरेड तकी रहीम ने भी 7 दिन तक अनशन किया. उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया. लालू यादव द्वारा भोजपुर के डी.एम. और एस.पी. के स्थानान्तरण की घोषणा के बाद अनशन 3 सितम्बर को समाप्त किया गया. भाजपा, कांग्रेस, समता पार्टी और राजद के स्थानीय नेताओं ने डी.एम. और एस.पी. के स्थानान्तरण का विरोध करते हुए रेल रोको, रास्ता रोको, बंद आदि का आह्नान किया, लेकिन जनसमर्थन के अभाव में इन प्रतिक्रियावादी कोशिशों को तो फेल होना ही था.
शासकवर्गों की हमेशा कोशिश रही कि बथानी टोला के दोषी बच जाएं और इस जनसंहार को हमेशा के लिए भुला दिया जाए. लेकिन भाकपा-माले इस नृशंस कत्लेआम में शहीद हुए लोगों को एक पल के लिए भी नहीं भूली. वर्ष 2010 में आरा सेशन्स कोर्ट द्वारा फैसला सुनाये जाने के बाद बथानी शहीद दिवस (11 जुलाई) पर यहां जनसंहार के शहीदों की याद में एक शहीद स्मारक की स्थापना की गई. मूर्तिकार मनोज पंकज द्वारा बनाए गए स्मारक की प्रतिमा में अनगढ़ पत्थरों में से महिलाओं और बच्चों को निकलते हुए दर्शाया गया है, जिसके बीच में खड़े एक छोटे बच्चे के हाथ में तितली है, जिसके पंखों पर हशिया और हथौड़ा बना है. गरीब-मेहनतकश जनता की कुर्बानियों और अनवरत संघर्ष को ही यह स्मारक प्रतिबिंबित करता है. इस शहीद स्मारक का उद्घाटन कामरेड रामनरेश राम ने किया था.