इस प्रकार, अंतर्राष्ट्रीय अर्थतंत्र में वित्तीय परिक्षेत्र का आपेक्षिक वजन इस पूरे दौर में लगातार बढ़ता ही गया, लेकिन 1980 के दशक के बाद यह वृद्धि अनुपात से बहुत ज्यादा हो गई, जिसे नवउदारवादी विनियमन और संचार क्रांति ने आसान बनाया. इस परिक्षेत्र का सबसे बड़ा और सबसे तेज गति से वृद्धि करने वाला घटक सट्टेबाजी एवं अन्य अविवेकी ढंग से की गई गतिविधियां थीं -- डेरिवेटिव्स का व्यापार, हेज फंड की गतिविधियां, सब-प्राइम (अधिक जोखिम वाला) कर्ज, इत्यादि. फिनांशियल टाइम्स के मार्टिन वुल्फ ने सही ढंग से कहा था कि “खुद अमरीका ही एक विशाल हेज फंड के रूप में प्रतीत होता है. वित्तीय कम्पनियों का मुनाफा, वर्ष 1982 में टैक्स काटने के बाद बचे कुल कारपोरेट मुनाफे के 5 प्रतिशत से भी कम हिस्से से छलांग लगाकर वर्ष 2007 में 41 प्रतिशत पर जा पहुंचा है.” बैंक आॅफ इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के अनुसार दिसम्बर 2007 में डेरिवेटिव्स के व्यापार का कुल मूल्य 5,16,000 अरब डाॅलर तक जा पहुंचा था, जो वर्ष 2002 में केवल 1,00,000 अरब डाॅलर था. दूसरे शब्दों में, यह छाया अर्थतंत्र वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (ग्लोबल जीडीपी) यानी 50,000 अरब डाॅलर की तुलना में दस गुणा अधिक था, और दुनिया के शेयर बाजारों में वास्तविक शेयर व्यापार के कुल मूल्य (1,00,000 अरब डाॅलर) के पांच गुणे से ज्यादा अधिक था.
डेरिवेटिव्स के व्यापार में, और आम तौर पर शेयरों एवं मुद्राओं के व्यापार में मौद्रिक पूंजी का आत्म-विस्तार होता है. जैसा कि मार्कस ने बताया है, उत्पादन की कष्टदायक प्रक्रिया में लगे बिना सीधे मुद्रा से मुद्रा कमाना बहुत पहले से पूंजीपति वर्ग का आकांक्षित आदर्श रहा है. हाल के दशकों में उस आदर्श को “प्रतिभाशाली ढंग से” अमल में लाया गया है.
वर्तमान संदर्भ में, सट्टेबाजी का मतलब है फटाफट पैसा कमाने के लक्ष्य से वित्तीय उपकरणों का व्यापार, यानी ज्यादा सटीक ढंग से कहा जाय तो जोखिमों की खरीद-बिक्री. वाणिज्यिक बैंक, निवेश बैंक और बीमा कम्पनियां उद्योगों को वित्तपोषण और सट्टेबाजी, दोनों कारोबार करते हैं. इस प्रकार वास्तविक जीवन में इन दोनों कोटियों का परस्पर सम्मिश्रण कर दिया जाता है. लेकिन उनके द्वारा निभाई जाने वाली विशिष्ट आर्थिक भूमिका के संदर्भ में दोनों भिन्न हैं. परम्परागत ऋण और उत्पादन-मुखी वित्तीय पूंजी वास्तविक अर्थतंत्र -- कृषि, उद्योग, सेवा क्षेत्र, जहां सम्पत्ति का उत्पादन होता है और लोगों को रोजगार मिलता है, के काम आती है, जबकि सट्टेबाज पूंजी कोई वास्तविक सम्पदा का सृजन नहीं करती.
जैसा कि हम देख चुके हैं, उन्नीसवीं सदी के मध्य के शीर्षस्थ बैंकरों ने “अतिविस्तारित कल्पित साख” के बारे में सावधान किया था और मार्कस ने “अति-सट्टेबाजी” की बात कही थी. 1930 के दशक के मध्य में जाॅन मेनार्ड कीन्स ने चेतावनी दी थी, “हो सकता है कि उद्यम के निरंतर प्रवाह की सतह पर पैदा हुए बुलबुले के रूप में सट्टेबाज कोई हानि न पहुंचायें. लेकिन जब उद्यम ही सट्टेबाजी की भंवर में फंसा बुलबुला हो जाय तो स्थिति गंभीर हो जाती है. जब किसी देश में पूंजी का विकास किसी कासीनो की गतिविधियों का उप फल बन जाये, तो संभावना यही होती है कि काम बिगड़ेगा.” (द जनरल थ्योरी आॅफ इंप्लायमेंट, इन्कम एंड मनी)
इन चेतावनियों के बावजूद, और उसका चाहे जो भी सामाजिक मूल्य चुकाना पड़े इसके बावजूद, राज्य एवं पूंजीपति वर्ग की अन्य संस्थाएं सट्टेबाजी को ऊंचा पुरस्कार देती रही हैं. लेकिन क्यों? कारण यह कि क्षयमान पूंजीवाद अथवा साम्राज्यवाद को इसमें 1970 के दशक के बाद से पुनः उभरे अति-उत्पादन/अति-संचय के संकट से बचने का अगर सर्वोत्तम नहीं तो एक सबसे लाभदायक उपाय जरूर नजर आया. वर्ष 1997 में आर्थिक विज्ञान में नोबेल मेमोरियल पुरस्कार अमरीका के राॅबर्ट मर्टन और मायरन स्कोल्स को दिया गया था, जिन्होंने हाल ही में स्टाॅक आॅप्शन जैसे “डेरिवेटिव्स” की कीमत तय करने का एक माॅडल विकसित किया था. ऐसी उम्मीद की जाती थी कि यह माॅडल अथवा टेक्नीक “वैज्ञानिक ढंग से” सट्टेबाजी करने और सुरक्षित ढंग से भारी मुनाफा बटोरने में मददगार साबित होगी. मगर व्यवहार में इसके परिणाम उत्साहवर्धक नहीं रहे. लांग टर्म कैपिटल मैनेजमेंट -- एक हेज फंड जिसमें मर्टन और स्कोल्स साझीदार थे, और जिसने इस पुरस्कृत टेक्नीक के अनुसार काम किया -- उस फंड ने पुरस्कार हासिल करने के एक साल के अंदर ही खुद को पतन की कगार पर खड़ा पाया, और उसको न्यूयार्क फेडरल रिजर्व ने मदद देकर उबारा.
ऐसा नहीं कि किसी ने इस मामले में विवेकपूर्ण सलाह न दी हो. 2000 के दशक की शुरूआत में अरबपति निवेशक वारेन ई. बफेट ने डेरिवेटिव्स को “बड़े पैमाने पर विनाश के वित्तीय हथियार” बताया था और मार्च 2007 में बेन बर्नान्के ने अलान ग्रीनस्पान का उद्धरण देकर चेतावनी दी थी कि सरकार द्वारा प्रायोजित उद्यम (जीएसई) फैनी मे और फ्रेंडी मैक “प्रणालीगत खतरे” का स्रोत हैं और उन्होंने संभावित संकट को रोकने के लिये एक कानून बनाने का सुझाव पेश किया था. इसके बाद वर्ष 2008 के अंतिम भाग में जाॅर्ज सोरोस ने लिखा:
“मौजूदा संकट इससे पहले आये विभिन्न किस्मों के वित्तीय संकटों से भिन्न है ... अमरीका के आवास बुलबुले ने एक अपेक्षाकृत बड़े “महा बुलबुले” के विस्फोट में पलीता लगाने का काम किया, जो 1980 के दशक से ही विकसित हो रहा था. इस महा बुलबुले में साख और लीवरेज के सर्वदा बढ़ते जा रहे इस्तेमाल की प्रवृत्ति निहित थी. साख चाहे वह उपभोक्ताओं को दिया गया कर्ज हो या फिर सट्टेबाजों अथवा बैंकों को, द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने के बाद से अब तक जीडीपी की तुलना में बहुत तेज दर से बढ़ता रहा है. लेकिन यह वृद्धि की दर तेज हुई और जब 1980 के दशक में, जब अमरीका में रोनाल्ड रीगन राष्ट्रपति बने और ब्रिटेन में मार्गरेट थैचर प्रधानमंत्री बनीं, तो उस समय एक गलत धारणा को प्रधानता मिली जिसकी वजह से इस तेजी को बल मिला और उसने बुलबुले का चरित्र ग्रहण कर लिया...
“परिधीय क्षेत्रों के देशों की तुलना में संयुक्त राज्य अमरीका की आपेक्षिक सुरक्षा और स्थिरता ने अमरीका को बाकी दुनिया की बचत को चूस लेने दिया है और चालू खाते का इतना बड़ा घाटा बरकरार रखने की अनुमति दी है जो वर्ष 2006 की पहली तिमाही में अपने शिखर पर -- सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी) के लगभग 7 प्रतिशत पर -- पहुंच गया था ...” जार्ज सोरोस ने बताया था कि यह अनिवार्य रूप से विध्वंस की ओर ले जायेगा. (द क्राइसिस एंड ह्नाट टु डू अबाउट इट, द न्यूयार्क रिव्यू आॅफ बुक्स, 4 दिसम्बर, 2008)
इस प्रकार खुद सबसे बड़े सट्टेबाज ने अत्यधिक मात्रा में विनियमन और ऋण एवं घाटे पर निर्भरता को दोषी ठहराया है.
उन्होंने सतह पर पैदा झाग का तो सही वर्णन किया है, मगर वे तले में परस्पर टकराती लहरों के साथ उसका सम्बंध दिखलाने में नाकाम रहे हैं, जिनकी वजह से यह झाग पैदा हुआ. अगर हमें ऐसा करना हो तो हमें पूंजी के रचयिता का सहारा लेना होगा.