1996 की जुलाई की दोपहर थी और हत्यारों की भीड़ को 21 लोगों का संहार करने में दो घंटे से कम ही समय लगा। मृतकों में 11 महिलाएं, 6 बच्चे और 3 नवजात शिशु थे.
‘हमने उनकी चीखें सुनीं लेकिन बाहर निकलने का साहस नहीं जुटा सके’- इस नरमेध में परिवार के 6 लोगों को खो चुके नईमुद्दीन अंसारी याद करते हैं जो एक प्रमुख गवाह भी हैं. ‘सेना के लोगों ने हमारी झोपड़ियों को घेर लिया, लोगों को बाहर निकाला और उन्हें काट डाला’- श्री किशुन चैधरी बताते हैं, जिन्होंने संहार के दूसरे दिन 33 लोगों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज कराया था.
उच्च न्यायालय द्वारा उन्हीं लोगों को बरी किया जाना बथानी के निवासियों को धक्के की तरह महसूस हुआ. ‘यह सरकार (नितीश कुमार की एनडीए) धनी मानी लोगों के हाथ बिक चुकी है, अब तो अगली कार्यवाही के बारे में पार्टी (भाकपा माले) को तय करना है.’ बरसों तक मुकदमा लड़ने से थके और जले हुए श्री किशुन चैधरी कहते हैं.
नईमुद्दीन भी उदास और हारे हुए नजर आते हैं. संहार के समय वे चूड़ी बेचते थे और उनकी तीन महीने की बच्ची हत्यारों के हाथ मारी गई. जब वह मारी गई तो उसका नाम भी नहीं रखा गया था. ‘बेबी’ को उन्होंने हवा में उछाला और गिरते हुए तलवार से काट डाला’- नइमुद्दीन बताते हैं.
‘मेरे सात बरस के लड़के सद्दाम ने देखा था. उन सबने यह देखा’ - नईमुद्दीन रोते हुए कहते हैं. जब सेना के लोग चले गए तो अंततः नईमुद्दीन ने पहुंचकर देखा कि सद्दाम का आध चेहरा तलवार से कटा हुआ था.
‘‘जब मैंने उसे उठाया तो उसने (सद्दाम ने) कहा - ‘अब्बा मुझे बचा लो’, तब मुझे पता चला कि हत्यारों ने उसकी रीढ़ काट डाली थी. पीएमसीएच में हफ्ते भर में बच्चा मर गया.’’
इस संवाददाता से सेना के एक आदमी ने बात की और ‘उन नक्सलों’ के खिलाफ ऊंची जातियों की ‘प्रतिक्रियावादी गोलबंदी’ को जायज ठहराया. ‘जमीन हमारी है. फसल हमारी है. वे (मजदूर) काम नहीं करना चाहते थे और तो और मशीनें जलाकर तथा आर्थिक नाकेबंदी करके हमारी कोशिशों पर पानी फेर देते थे. इसीलिए ये हुआ था.’ आश्चर्य नहीं कि सेना के लोगों के बरी होने से बथानी के लोगों में खौफ है. ...
आने वालों से नईमुद्दीन और अन्य लोगों का एक ही सवाल है कि अगर एपफ.आई.आर. में दर्ज लोग हत्यारे नहीं हैं तो बथानी टोला के 21 निवासियों का कत्ल किसने किया ?