2012 में अमेरिका की पहल पर 'कैशलेस' के विचार को ठोस रूप और जबरदस्त गति हासिल हुई. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने खास निर्देश देते हुए यूएसएआईडी में "प्रेसीडेंट्स ग्लोबल डेवलपमेंट काउंसिल" बनाई, जिसका कार्यभार था -- विकास नीतियों के जरिए अमेरिका की ताकत को बढ़ाने के लिए उन्हें मशविरा देना. इस काउंसिल के दस्तावेज में उसका उद्देश्य साफ जाहिर है:
इसका मकसद "राष्ट्रीय सुरक्षा और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना व दुनिया में अमेरिकी रणनीतिक हितों की रक्षा करना है. अमेरिकी सरकार की इस नीति का उद्देश्य विकास को अमेरिकी शक्ति के स्तम्भ के रूप में स्थापित करना तथा विकास, कूटनीति और रक्षा के ऐसे मार्ग का निर्माण करना है जिससे वे एक-दूसरे को मजबूती प्रदान करें. जैसा कि राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति 2010 और वैश्विक विकास के बारे में राष्ट्रपति के नीति-निर्देशों में कहा गया है कि विकास का लक्ष्य हासिल करना हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है."
प्रेसीडेंट्स ग्लोबल डेवलपमेंट काउंसिल ने इसके लिए क्या तरीका सुझाया ? इसने 'वित्तीय समावेशन' पर जोर देने का रास्ता सुझाया. राष्ट्रपति को सलाह दी गयी कि वे अमेरिकी विकास कार्य को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानें और सहायता-राशियों को वित्तीय समावेशन के प्रयासों को बढ़ाने के लिए खर्च करें. यह समावेशन निजी क्षेत्रों के साथ साझेदारी में औरज्यादातर निजी क्षेत्रों द्वारा ही किया जाना चाहिए. इसने यह भी प्रस्तावित किया कि अमेरिकी सरकार को विश्व बैंक और जी-20 पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल इस रूप में करना चाहिए कि ये सभी वित्तीय समावेशन के रास्ते पर आगे बढ़ें.
उसी साल एक अन्य महत्वपूर्ण पहलकदमी के तहत वैश्विक स्तर पर नकदी को पीछे धकेलने के मकसद से “बेटर दैन कैश अलायंस” (बीटीसीए) का गठन किया गया. यह संयुक्त राष्ट्र में स्थित "सरकारों, कम्पनियों और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का साझा उपक्रम है जिसका मकसद गरीबी समाप्त करने और समावेशी विकास के लिए डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देना है." इसके संस्थापक सदस्यों में बिल और मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन, वीजा, मास्टरकार्ड, सिटीग्रुप, ओमिडयार नेटवर्क, फ़ोर्ड फाउंडेशन और अमेरिकी सरकार की संस्था यूएसएआईडी शामिल हैं. यह समझना एकदम आसान है कि इन 'विश्व नेताओं' (मतलब आज के राजाओं) के हित सीधे तौर पर डिजिटल लेन-देन के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. याज्यादा फ़ैशन वाले शब्दों में कहें तो ये उभरती हुई तकनीकी और इस क्षेत्र में बदलाव लाने वाले उद्यमों यानि वित्तीय-तकनीकी की पारिस्थितिकी बनाते हैं.
भारत ने 01 सितम्बर 2015 को इस संगठन की सदस्यता ली. तब तक वित्तीय समावेशन के लिए मोदी की प्रधानमंत्री जन-धन योजना की शुरुआत हुए एक साल हो चुका था और साढ़े सत्रह करोड़ नए बैंक खाते खोले जा चुके थे. बीटीसीए के मुताबिक भारत के साथ उनकी साझेदारी "अर्थव्यवस्था में नकदी घटाने की भारत सरकार की प्रतिबद्धता का बढ़ाव मात्र" है.
14 अप्रैल 2014 को विश्व बैंक के समूहों जिनमें सीजीपीए और आईएमएफ भी शामिल थे, की बैठक में एक सत्र डिजिटल फाइनेंस पर रखा गया था. इसका उद्घाटन अंतर्रराष्ट्रीय वित्त कारपोरेशन के मुख्य कार्यकारी द्वारा किया गया और इसमें भाग लेने वालों में मास्टरकार्ड सेंटर फ़ॉर इनक्लूसिव ग्रोथ के अध्यक्ष वाल्ट मैकनी जैसे बड़े नाम शामिल थे. इस मौके पर बोलते हुए आन्ध्र प्रदेश की पोस्टमास्टर जनरल संध्या रानी ने ग्रामीण विकास में डिजिटल फाइनेंस की व्यापक सम्भावनाओं पर बल दिया और प्रस्तावित किया कि भारत केज्यादातर ग्रामीण इलाक़ों में मौजूद एक लाख पचपन हजार डाक घर इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. यहाँ रेखांकित किए जाने की जरूरत है कि वित्तीयकरण की वैश्विक पहलकदमियों में भारत की ऐसी भागीदारी मोदी सरकार आने के पहले ही शुरू हो चुकी थी.