विश्व बैंक, यूएसएआईडी, वित्तीय पूँजी की अन्य एजेंसियों और संस्थाओं की तरह ही वर्ल्ड इकॉनामिक फ़ोरम भी डिज़िटलीकरण को बढ़ावा देने में पूरी तरह लगा हुआ है. यह 'प्रमोटिंग ग्लोबल फाइनेंशियल इनक़्लूजन' नाम की एक परियोजना चलाता है जिसका मकसद "सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के संश्रय के जरिए राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर वित्तीय समावेशन की गति को बढ़ाना है." इससे भी भारत का रिश्ता बहुत मजबूत है- टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के मुख्य कार्यकारी और प्रबंध निदेशक नटराजन चंद्रशेखरन, जोकि रिजर्व बैंक के बोर्ड में भी हैं, दावोस में हुई वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम के आईटी इंडस्ट्री के अध्यक्ष थे.
आई टी और दूर संचार क्षेत्र में काम करने वाले इस फोरम के "रणनीतिक साझेदार" (बड़े अन्तर्राष्ट्रीय कारपोरेशन) लेन-देन और वित्त के डिज़िटलीकरण के अभियान को बहुत आक्रामक ढंग से चलाते हैं. 'पे-पाल' के मुख्य कार्यकारी डान शुलमैन ने 2015 के वित्तीय समावेशन सम्मेलन में इनका रूख बहुत साफ तरीके से रखा: "जब तक पूरी दुनिया पूरी तरह डिजिटल लेन-देन नहीं अपना लेती, तब तक पैसे को डिजिटल रूप से नकदी के रूप में बदलने की जरूरत बनी रहेगी." चूँकि यह उनकी निगाह में महँगा सरदर्द है, इसलिए उसने आगे कहा कि "हमारा सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी नकदी है. अभी पूरी दुनिया का 85 फीसदी लेन-देन नकदी में होता है. अभी हम इसी पर हमला करने की कोशिश कर रहे हैं." नकदी के प्रति इसी वैमनस्य का प्रदर्शन करते हुए अफ़्रीका की बड़ी मोबाईल कम्पनी इकोनेट के संस्थापक चेयरमैन स्ट्राइव मासीईवा ने कहा कि "हम नकदी का सफाया करना चाहते हैं."