1970 के दशक के संकट के दौरान हमने रोजगार के अवसरों में कटौती, ऊंची मुद्रास्फीति के बावजूद वेतन जाम (जिसका मतलब है वास्तविक वेतन में गिरावट), तथा अन्य किस्म के हमलों के खिलाफ श्रमिकों को बहादुरी से लड़ते देखा. मगर वे राज्य के प्रत्यक्ष समर्थन के आधार पर चलाये गये संगठित पूंजीवादी हमलों के सामने लम्बे अरसे तक नहीं टिक सके. यह बात ऊपर के रेखाचित्र
हम देख सकते हैं कि 1960 के दशक के अंतिम वर्षों से जो हड़तालों का सिलसिला शुरू हुआ (जब ‘स्वर्ण युग’, जिसे द्वितीय विश्वयुद्धोत्तर समझौता भी कहते हैं, समाप्ति की ओर जा रहा था) वह 1970 के दशक के मध्य तक चला और उसके बाद 1980 के दशक में जैसे खड़े पहाड़ से नीचे गिरा. इस सुदीर्घ गिरावट के प्रतीक थीं दो देशों में हुई दो हड़तालें, जहां से नवउदारवाद ने अपने विश्व अभियान की शुरूआत की.
ये थीं अमरीकी एयर ट्रैफिक कंट्रोलर्स की हड़ताल और ब्रिटिश खान श्रमिकों की हड़ताल -- जिन्हें 1970 के दशक के बाद के अमरीकी और ब्रिटिश मजदूर आंदोलनों की निर्णायक घड़ी माना जाता है. दोनों का अंत हार में हुआ और इससे रीगन एवं थैचर की सरकारों को अपने रूढ़िवादी आर्थिक कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने की हिम्मत मिली. इन कार्यक्रमों में शामिल था पिछले कई दशकों के दौरान मजदूर वर्ग ने जो अधिकार हासिल किये थे और वेतन में वृद्धि अर्जित की थी, उन पर बड़े पैमाने पर हमला चलाना, जिसमें उन्हें अधिकांशतः सफलता मिली. अपने वर्ग-शत्रु को मनोबल तोड़ने वाली शिकस्त देने के बाद पूंजी ने रीगनाॅमिक्स और थैचरवाद को बुलंद किया -- जो नवउदारवाद के सर्वप्रथम संस्करण थे -- विश्व का नया वृद्धि का माॅडल.
प्रोफेशनल एयर ट्रैफिक कंट्रोलर्स आॅर्गनाइजेशन (पैटको) अमरीका में एक शक्तिशाली यूनियन थी. उसकी शक्ति उसके सदस्यों की तादाद में नहीं बल्कि उनकी चरम रूप से महत्वपूर्ण स्थिति में निहित थी कि वे हवाई जहाजों के यातायात और संचार के समूचे नेटवर्क का संचालन कर रहे थे. 1980 के राष्ट्रपति चुनाव में इस यूनियन ने आॅटो चालकों (टीमस्टर्स) और एयरलाइन पायलटों के संगठनों के साथ मिलकर रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार रोनाल्ड रीगन का समर्थन करने का फैसला लिया, क्योंकि रीगन ने डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर के खिलाफ अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान उनकी यूनियन और उसके संघर्ष का समर्थन किया था.
3 अगस्त 1981 को यूनियन ने बेहतर कार्य-स्थितियों, बेहतर वेतन और 32 घंटे के कार्य-सप्ताह की मांगों पर हड़ताल की घोषणा कर दी. उन्होंने सरकारी यूनियनों द्वारा हड़ताल किये जाने के खिलाफ बने संघीय (फेडरल) कानून से बचने के लिये सिक (बीमारी) का बहाना बनाया. राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने तुरंत पैटको की हड़ताल को “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा” घोषित कर दिया और उन्हें 1947 के टाफ्रट-हार्टले ऐक्ट की शर्तों के तहत काम पर लौट आने का आदेश जारी किया. इसके साथ ही प्रतिस्थापन (सुपरवाइजरों, स्टाफ कर्मचारियों, सेना समेत अन्य संस्थानों से कुछेक कंट्रोलरों आदि का स्थानांतरण करके) और परिस्थिति से निपटने के लिये आकस्मिक तौर पर अपनाये जाने वाली योजनाएं तैयार कर ली गईं.
लेकिन लगभग 13,000 कंट्रोलरों में से केवल 1300 कंट्रोलर काम पर लौटे. 5 अगस्त को रीगन ने बाकी को काम से निकाल दिया और उन्हें ताजिंदगी संघीय सेवा से बहिष्कृत कर दिया. कई हड़तालियों को जेल में डाल दिया गया. यूनियन पर जुर्माना लगाया गया और अंततः उसे दिवालिया बना दिया गया. अक्टूबर 1981 में उसका मजदूरों का प्रतिनिधित्व करने के अधिकार का प्रमाणपत्र खारिज कर दिया गया.
हड़ताल और बड़े पैमाने पर नौकरी से निकाले जाने के बाद, अधिकारियों के सामने समस्या आई निकाले गये कंट्रोलरों की जगह भरने के लिये पर्याप्त मात्रा में नए कंट्रोलरों की नियुक्तियां करने और उन्हें प्रशिक्षण देने की, जो उन दिनों काफी कठिन समस्या थी क्योंकि सामान्य स्थितियों में किसी नये कंट्रोलर को प्रशिक्षण देने में तीन साल का वक्त लगता था. शुरूआत में सरकार 50 प्रतिशत उड़ानों को ही उपलब्ध करा पा रही थी. समग्र स्तर के कर्मचारियों को सामान्य स्थिति में लौटने में लगभग दस साल लग गये.
व्यवसाइयों एवं सामान्य जनता को इतनी असुविध पहुंचाने की कीमत पर भी रीगन द्वारा हड़ताल के खिलाफ की गई कठोर कार्रवाई को उन दिनों, और बाद में भी, प्रचुर प्रशंसा मिली और उसकी कठोर आलोचना भी हुई थी. फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष अलैन ग्रीनस्पान ने 2003 में कहा था: “राष्ट्रपति ने इस नियम का सहारा लिया था कि हड़ताल करने वाले सरकारी कर्मचारियों को अपनी नौकरी से हाथ धेना होगा. इस कार्यवाही ने उन लोगों को लड़खड़ा दिया जो कट्टरता से विश्वास रखते थे कि कोई राष्ट्रपति उस कानून पर अमल नहीं करेगा. जैसा कि आप जानते हैं, राष्ट्रपति रीगन ने जीत हासिल की, मगर इससे कहीं ज्यादा उनकी कार्यवाही ने निजी नियोक्ताओं के इस कानूनी अधिकार को बल प्रदान किया कि वे अपनी मर्जी के अनुसार मजदूरों को भर्ती कर सकते हैं या काम से निकाल सकते हैं, वह नियम जिसका वे पहले इस्तेमाल नहीं करते थे.” इस ऐतिहासिक हमले की तीसवीं बरसी पर माइकेल मूर ने कहा कि रीगन द्वारा पैटको के हड़तालियों की बर्खास्तगी “अमेरिका के ढलान पर फिसलने” की शुरूआत थी. उन्होंने एएफएल-सीआईओ को भी दोष दिया क्योंकि उन्होंने अपने सदस्यों को पैटको की पिकेट लाइनों को पार कर जाने के लिये कहा था. (‘थर्टी ईयर्स एगो टुडे: द डे द मिडल क्लास डाइड’, माइकेल मूर, डेली काॅस, 5 अगस्त 2011). उसी वर्ष आॅक्सफोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस ने जोसेफ मैककार्टिन द्वारा लिखित पुस्तक ‘कोलिजन कोर्स: द एयर ट्रैफिक कंट्रोलर्स, एंड द स्ट्राइक दैट चेंज्ड अमेरिका.”
खान श्रमिकों की चुनौती से निपटने में ग्रेट ब्रिटेन की “आयरन लेडी” के बतौर ख्यात मार्गरेट थैचर इससे कम कठोर नहीं थीं.
6 मार्च 1984 को नेशनल कोल बोर्ड ने घोषणा की कि 1974 की हड़ताल (जिस हड़ताल ने हीथ सरकार को गद्दी से उतारने में प्रमुख भूमिका अदा की थी) के बाद हस्ताक्षरित समझौता अब पुराना पड़ गया है, और इस उद्योग को सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी को रैशनलाइज (पुनव्र्यवस्थित) करने के लिये वे 20 कोयला खदानों को बंद कर देना चाहते हैं. इसका अर्थ यह था कि 20,000 खान मजदूरों को अपने रोजगार से हाथ धेना पड़ेगा. बंद होने का खतरा झेल रही कई खदानों में स्वतःस्फूर्त रूप से हड़ताल शुरू हो गई. 12 मार्च 1984 को नेशनल यूनियन आॅफ माइनवर्कर्स (एनयूएम) -- जो देश की एक सबसे शक्तिशाली यूनियन थी -- ने राष्ट्रीय हड़ताल की घोषणा कर दी जो तुरंत कारगर ढंग से लागू भी हो गई.
यहां थोड़ी बहुत पृष्ठभूमि की जानकारी देना जरूरी होगा. 1981 में, जब सरकार ने इसी किस्म से 23 पिटों को बंद कर देने की योजना बनाई थी, तो इसके खिलाफ हड़ताल लगभग होने ही जा रही थी, हालांकि उन दिनों सरकार को पीछे हटने के लिये मजबूर करने हेतु हड़ताल की धमकी देना ही पर्याप्त होता था. वास्तव में सरकार ने उस समय हड़ताल से बचने का ही फैसला किया, क्योंकि कोयले का स्टाॅक बहुत कम था और हड़ताल होने से उसका गंभीर प्रभाव होता. अगले साल सरकार ने वेतन में 5.2 प्रतिशत की वृद्धि का प्रस्ताव दिया जो आंशिक तौर पर उत्पादकता बढ़ाने पर आधारित था. यूनियन के सदस्यों ने अपने नेताओं द्वारा हड़ताल को मंजूरी देने के लिये जारी किये गये आह्नान को अस्वीकार करते हुए इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. इस चालाकी भरे कदम ने सरकार को आने वाले दिनों में अनिवार्य रूप से किये जाने वाले हमले के लिये कोयले का पर्याप्त स्टाॅक जमा करने का मौका दे दिया.
इस प्रकार सरकार ऐसी स्थिति में पहुंच गई कि वह हड़तालियों से टक्कर मोल ले सके. 29 मई 1984 के दिन, ओरग्रीव में आयोजित पिकेट (धरना) के बाद, जब पांच हजार धरनार्थियों की पुलिस के साथ हिंसक झड़प हुई, तो थैचर ने एक भाषण में कहा, “... हम कानून के शासन की जगह भीड़ के शासन को लागू करने का प्रयास देख रहे हैं, और इसको सफल नहीं होने दिया जायेगा ... भीड़ के शासन पर कानून के शासन को हावी होना ही होगा.”
इस हड़ताल का प्रभाव 1970 के दशक के शुरूआत में होने वाली हड़तालों जैसा जोरदार, स्थायी प्रभाव वाला कहीं से भी नहीं था. अधिकांश घर तेल या गैस द्वारा सेन्ट्रल हीटिंग की व्यवस्था से लैस थे और रेलवे ने काफी पहले ही कोयले की जगह डीजल और बिजली का इस्तेमाल शुरू कर दिया था. कोयला हड़ताल के चलते बिजली की संभावित कमी की समस्या को थैचर सरकार ने ताड़ लिया था, जिसने इस बात पर जोर दिया कि ब्रिटेन के कोयला पर आधारित बिजलीघर कोयले का अपना भंडार बनायें जिसका इस्तेमाल वे कोयला उद्योग में होने वाली किसी भी हड़ताल की समूची अवधि में कर सकेंगे. कोयला श्रमिकों की हड़ताल के दौरान यह रणनीति असाधारण रूप से सफल रही और बिजलीघर 1984 की सर्दियों में भी अपनी बिजली की आपूर्ति को लगातार जारी रख सके.
यह हड़ताल लगभग एक वर्ष तक चली और अंततः 3 मार्च 1985 को समाप्त हो गई. अपनी यूनियन को बचाने के लिये नेशनल यूनियन आॅफ माइनवर्कर्स ने अल्प बहुमत से फैसला लिया कि प्रबंधन के साथ किसी नये समझौते पर पहुंचे बिना ही मजदूर काम पर वापस लौट जाएं.
इस प्रकार 1980 के दशक की विशेषता रही पूंजी द्वारा अपने वर्ग-शत्रुओं को रक्षात्मक स्थिति में पहुंचाकर नवउदारवादी हमलों का आरंभ. भूमंडलीकरण जादुई शब्द बन गया और जब सोवियत के विध्वंस के बाद के परिदृश्य में विजय चिन्ह “टीना” (देयर इज नो आल्टरनेटिव, इसका कोई विकल्प नहीं) को प्रदर्शित किया गया, तो सब नहीं होने पर भी अधिकांश लोगों ने उसे चाहे-अनचाहे स्वीकार कर लिया.