1980-दशक के मध्य से आर्थिक वृद्धि में जो उत्तरोत्तर तेजी आई, उसके कारण थे: (क) भारी घरेलू कर्ज, जिसने केंद्र व राज्य सरकारों के सकल राजकोषीय घाटे को 1990-91 तक जीडीपी के 12.7 प्रतिशत तक पहुंचा दिया, (ख) चूंकि इन घाटों को फिर कर्ज से ही पूरा करना था, इसलिए सरकार का आंतरिक ऋण 1980-81 के अंत में जीडीपी के 35 प्रतिशत के मुकाबले तेजी से बढ़ता हुआ 1990-91 के अंत में जीडीपी का 53 प्रतिशत हो गया, और (ग) विदेशी मुद्रा भंडार का क्षरण, यह भंडार जनवरी 1991 में 1.2 अरब डाॅलर का था, लेकिन उस वर्ष के मध्य तक वह आधा हो गया, जो मोटामोटी 3 सप्ताह के जरूरी आयातों की ही पूर्ति कर सकता था (दूसरे शब्दों में कहें, तो भुगतान संतुलन के वाह्य दायित्वों को भारत चंद सप्ताह तक ही पूरा कर सकता था). प्रधान मंत्री चंद्रशेखर की केयरटेकर सरकार ने 67 टन सोने की अतिरिक्त जमानत रखकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) से 2.2 अरब डाॅलर का आपात ऋण हासिल किया – उस सोने को हवाई जहाज से लंदन ले जाया गया. जब यह मामला प्रकाश में आया कि सरकार ने कर्ज लेने के लिए देश के स्वर्ण भंडार को गिरवी रखा है, तो सार्वजनिक तौर पर काफी छीछालेदर हुई, लेकिन जैसा कि मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने बाद में लिखा कि वह ऐतिहासिक संकट “अधिक प्रणालीबद्ध आर्थिक सुधार शुरू करने के लिए एक अवसर बन गया.”एंट्री आॅन प्लानिंग, “द आॅक्सफोर्ड कंपेनियन टु इकाॅनोमिक्स इन इंडिया”, कौशिक बसु (सं.), आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2007, पृ. 400 आइएमएफ द्वारा सुझाए गए और इसके चहेते अधिकारी-रहे मनमोहन सिंह द्वारा लागू किए गए नुस्खे “ढ़ांचागत समायोजन कार्यक्रम (सैप)” के प्रमुख अंग इस प्रकार थे: (क) कठोर कमखर्ची उपायों के जरिए राजकोषीय गड़बड़ियों में सुधार, (ख) मौद्रिक नीति को कठोर बनाना और रुपये का अवमूल्यन करना, (ग) लाइसेंस-परमिट राज को धीरे-धीरे खत्म करना तथा अर्थतंत्र के तमाम क्षेत्रों को देशी-विदेशी निजी निवेश के लिए खोलना, और (घ) विदेशी व्यापार व निवेश का उदारीकरण और उसके बाद ‘फेरा’ की जगह, वर्ष 2000 में, नखदंतविहीन ‘विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून’ (फेमा) लागू करना.

बहरहाल, सुधारों की इस नई खुराक ने आने वाले दस वर्षों में आर्थिक वृद्धि को कोई नया महत्वपूर्ण आवेग नहीं दिया. 1990-96 के बीच वृद्धि दर 5.8 प्रतिशत रही और 1990 के पूरे दशक के लिए यह 6 प्रतिशत थी – 1980 के दशक में जो वृद्धि दर हासिल की गई थी, उससे थोड़ा ही ज्यादा. 2003-04 में ही ऊंची वृद्धि का नया स्तर प्राप्त किया जा सका, और वह भी पांच-छह वर्षों से ज्यादा समय के लिए नहीं टिक सका.