“मानव जाति हमेशा अपने सामने ऐसे ही कार्यभार रखती है जिन्हें वह पूरा कर सके; क्योंकि अगर मामले को और नजदीक से देखें तो हमेशा पायेंगे कि कार्यभार तभी सामने आता है जब उसके समाधान की भौतिक स्थितियां पहले से ही मौजूद होती हैं या कम से कम निर्माण की प्रक्रिया में होती हैं.” (कार्ल मार्क्स, ‘राजनीतिक अर्थशास्त्र की आलोचना में एक योगदान की भूमिका’)
उन्नीसवीं सदी के मोड़ पर मानवता ने पूरे साहस और निष्ठा के साथ शोषण और उत्पीड़न से मुक्त एक सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण का आकर्षक कार्यभार अपने लिए तय किया. उस समय तक पूंजीवाद के गर्भ में समूची मानव जाति की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक भौतिक प्रचुरता तेजी से विकसित हो रही थी; इस विराट रूपान्तरण को दिशा दिखाने के लिए आवश्यक सिद्धांत की बुनियादों या घटक अंगों को महान दार्शनिकों, अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों की रचनाओं में आकार मिलना शुरू हो गया था; और इस क्रांतिकारी परिवर्तन को वास्तव में लाने में सक्षम सामाजिक शक्ति अर्थात पूंजीवाद की संभावित “कब्र खोदने वाले” – के रूप में ऐतिहासिक वाहक इतिहास के मंच पर आ चुके थे, इस मिशन को पूरा करने के लिए हालांकि वे वैचारिक रूप से पूरी तरह तैयार नहीं थे. लेकिन इन स्थितियों की मौजूदगी का मतलब यह नहीं है कि पूंजीवाद अपने आप भहरा कर गिर पड़ेगा. उसके लिए इन बिखरे हुये घटकों को आपस में जोड़ने और निर्मित करने का काम रह जायेगा ताकि (क) उस सामाजिक शक्ति, आधुनिक सर्वहारा को एक सम्पूर्ण, सुसंगत रूप से क्रांतिकारी विश्वदृष्टि के साथ सज्जित किया जा सके, (ख) तात्कालिक कार्यवाही की रूपरेखा के साथ सही और व्यापक रूप से स्वीकार्य रणनीतिक दृष्टि सूत्रबद्ध की जा सके, और (ग) विस्तृत होते हुए आन्दोलन का नेतृत्व करने के लिए वैचारिक रूप से सुसंगठित कम्युनिस्ट पार्टी का निर्माण किया जा सके. घोषणापत्र ने भव्य तौर पर पहली दो शर्तों को पूरा किया और तीसरी शर्त को पूरा करने की ओर आगे बढ़ा. इस तरह धरती के दरिद्रों के लिए दुनियां को जीत लेने की सर्वहारा की सचेतन अग्रगति को झण्डा दिखाया. तब से अब तक यह अग्रगति अत्यंत तकलीफदेह ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर उतार-चढ़ाव के साथ जारी है.
आज भूमण्डलीकरण और विश्वव्यापी वेब (वर्ल्ड-वाइड-वेब) के युग में “यूरोप को कम्युनिज्म का भूत नहीं आतंकित कर रहा” लेकिन समूची विश्व व्यवस्था साफ तौर पर भयानक तिहरे संकट – आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक-सांस्कृतिक – से हिली हुई है. यह संकट बड़े पैमाने पर सामाजिक हलचल और आलोड़न को जन्म दे रहा है. आइये, हम सब साम्राज्यवाद और उसके पालतू कुत्तों की गिरफ्त से धरती को आजाद करने के दीर्घकालीन युद्ध में, घोषणापत्र की आत्मा के अनुरूप जनवाद और समाजवाद की लड़ाई को जीतने के लिए एकजुट हों, जो हमारे युग से उतना ही जुड़ा हुआ है जितना पिछली दो सदियों का सपना रहा है. मानव जाति ने जो कार्यभार उन्नीसवीं सदी में अपने सामने प्रस्तुत किया था उसे इक्कीसवीं सदी में पूरा किया जा सकता है और पूरा करना होगा.