भारत के साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्रवाद से अपनी शर्मनाक और देशविरोधी गद्दारी को छिपाने के लिए संघ परिवार ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की बात करता है. यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद सांप्रदायिक फासीवाद के अलावा और कुछ नहीं है. आज वे भले इससे इन्कार करें लेकिन सावरकर के शब्द ही इसे सबसे अच्छी तरह साबित करने के लिये काफी हैंः
- कानपुर में छात्रों के समूह को संबोधित करते हुए सावरकर ने कहा “जिसे राष्ट्रवाद कहा जाता है उसे इस देश पर शासन कर रहे और अब भी शासन करने की इच्छा रखने वाले बहुसंख्यक समुदाय की राष्ट्रीय सांप्रदायिकता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. इस तरह हिंदुस्तान में हिन्दू धर्म का प्रचार कर रहे बहुसंख्यक हिन्दू राष्ट्रीय समुदाय का निर्माण करते हैं और राष्ट्र व राष्ट्रवाद के निर्माता हैं”
(ए जी नूरानी, ‘अ नेशनल हीरो?’ फ्रंटलाइन, अक्टूबर 23-नवंबर 05, 2004 में उद्धृत)
आरएसएस और हिन्दू महासभा भारत को नाज़ी जर्मनी जैसा देखना चाहते थे
गोलवलकर और सावरकर दोनों ने हिटलर के नेतृत्व वाली नाज़ी जर्मनी की तारीफ में लिखा और भारत को हिन्दू बहुसंख्यकवादी फासिस्ट राष्ट्र बनाना चाहते थे, जिसमें अल्पसंख्यक उत्पीड़ित हों. भगत सिंह और अम्बेडकर जैसा भारत बनाना चाहते थे, वे उसके खिलाफ थे. संघ परिवार के इन नायकों के लेखों से ही यह भी स्पष्ट हैः
- “… हिंदुस्तान में रहनेवाली विदेशी नस्लों वे लोग या तो हिन्दू संस्कृति और भाषा को स्वीकार करें, हिन्दू धर्म का सम्मान करें और उस पर श्रद्धा करें, हिन्दू नस्ल और संस्कृति अर्थात हिन्दू राष्ट्र पर गर्व के अलावा कोई दूसरा विचार मन में न लाएं, अपना अलग अस्तित्व समाप्त कर हिन्दू नस्ल में समाहित हो जाएं, या फिर पूरी तरह हिन्दू राष्ट्र के अधीन बनकर, बगैर किसी मांग के, बिना किसी अधिकार के रहें. वे हिन्दू राष्ट्र में किसी ख़ास सलूवफ या नागरिक अधिकारों तक की भी मांग नहीं कर सकते.”
(एम.एस. गोलवलकर, वी आॅर आॅवर नेशनहुड डिफाइंड, 1938, पृ. 47-48)
- “आज जर्मन जाति का गौरव चर्चा का विषय है. अपनी नस्ल और संस्कृति की पवित्रता को बचाये रखने के लिए जर्मनी से सेमेटिक नस्ल के यहूदियों का संहार करके दुनिया को चैंका दिया. ...जर्मनी ने यह भी दिखा दिया कि दो अलग-अलग मूल की नस्लों और संस्कृतियों का एक होना कितना असंभव है. यह एक अच्छी शिक्षा है जिसे हम हिंदुस्तान के लोगों को ग्रहण करनी चाहिए और लाभ उठाना चाहिए.”
(एम.एस. गोलवलकर, वी आॅर आॅवर नेशनहुड डिफाइंड, 1938, पृ. 35)
- “ऐसा कोई कारण नहीं है कि हम हिटलर को नाज़ी होने के कारण मानव दैत्य के रूप में माने... नाज़ी या फासिस्ट जादू की छड़ी से छूते ही जर्मनी और इटली का अभूतपूर्व शक्तिशाली के रूप में उभार हुआ है. यह तथ्य ही साबित करने के लिए काफी है कि यही राजनीतिक ‘वाद’ उनकी बिगड़ी सेहत के लिए सबसे बेहतर टाॅनिक था.”
(सावरकर, हिन्दू महासभा के 22वें अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण, मदुरा 1940)
यहां तक कि आरएसएस का गणवेश और प्रणाम करने का तरीका भी हिटलर से उधार लिया गया है और 2002 में गुजरात में मुसलमानों के जनसंहार की प्रेरणा भी वहीं से आती है. आरएसएस की नई भूरी पैंट वाली ड्रेस भी हिटलर की सेना की भूरी पोशाक से प्रेरित है.