काले धन का मुद्दा ऐसा है जिसे जब-तब उठाया जाता है, हर सार्वजनिक मंच पर इस गर्मागर्म बहसें होती हैं, इसे उखाड़ने के लिए मांगें की जाती हैं, वायदे किए जाते हैं, और फिर गुबार थमने पर अन्य मुद्दे रंगमंच पर छा जाते हैं. हमारे पास सिर्फ काले धन के ताजे आंकड़े रह जाते हैं, और इसका समानांतर अर्थतंत्र आधिकारिक अर्थतंत्र के मुकाबले अधिक जोरदार ढंग से फूलता-फलता रहता है.
आजादी के बाद ही, कैंब्रिज अर्थशास्त्री निकोलस कैलडोर ने वित्तीय वर्ष 1955-56 के लिए भारत के काले अर्थतंत्र का आकार इसके आधिकारिक या “श्वेत” जीडीपी का 2-3 प्रतिशत आंका था, और ‘प्रत्यक्ष कर जांच समिति’ (वांचू समिति) ने 1960-दशक के अंत में इसका मूल्यांकन श्वेत जीडीपी के 7 प्रतिशत के बराबर किया था. द ब्लैक इकाॅनोमी आॅफ इंडिया (पैंग्विन बुक्स, नई दिल्ली, 1999) में अरुण कुमार ने 1995-96 के लिए भारत के काले अर्थतंत्र का आकलन करके इसका आकार श्वेत जीडीपी का लगभग 40 प्रतिशत बताया था. कैलडोर से चलकर अरुण कुमार तक आते-आते, काले अर्थतंत्र का सापेक्षिक आकार 16 गुना बढ़ गया. 1995-96 के लिए अरुण कुमार के आकलन के मुताबिक भारत की सकल काली घरेलू आमदनी का लगभग 80 प्रतिशत अंश वैध आर्थिक गतिविधियों से पैदा होता है, और यह अधिकांशतः संपत्ति आमदनी होती है – व्यवसाय अथवा अन्य कार्यों से प्राप्त आमदनी नहीं.
इस विषय पर नवीनतम दस्तावेज काले धन के बारे में भारत सरकार का श्वेत पत्र है जो आशानुरूप, जनता को धोखा देने की कवायद मात्रा है. इसमें काले धन को उजला बनाने के लिए सर्वाधिक उपयोग में लाई जाने वाली पद्धतियों को खत्म करने की कोई बात नहीं की गई है. ऐसी ही एक पद्धति है ‘पार्टिसिपेटरी नोट्स’ की, जिसके जरिए विदेशी निवेशकों को भारतीय प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज) में निवेश करने की इजाजत तो होती है, लेकिन वे भारतीय नियामकों की आंखों से ओझल रहते हैं. इस दस्तावेज में माॅरीशस, केमैन द्वीपसमूह और सिंगापुर के रास्ते विदेशी निवेश के तरीके को अ-मान्य भी नहीं किया गया है (निवासी भारतीय “राउंड ट्रिपिंग” के लिए, यानी अपनी खुद की कंपनियों में काले धन का निवेश करने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल करते हैं, और विदेशी निवेशक भी कर-भुगतान से बचने के लिए ऐसा करते हैं). हालांकि, इस बात को स्वीकार किया गया है कि इन अत्यंत छोटे राज्यों से आनेवाला विशाल निवेश काला धन हो सकता है, जो ‘श्वेत धन’ के रूप में भारत में पुनः प्रवेश कर रहा है. और, श्वेत पत्र में इस बड़े सवाल को पूरी तरह अनुत्तरित छोड़ दिया गया है कि भारत में काले धन की वास्तविक मात्रा क्या है!