1. भातीय राज्य एवं जनता का जनवादी राज्य : साम्राज्यवाद परस्त बड़ा पूंजीपति वर्ग जोतदारों व कुलकों के साथ सांठगांठ कर भारतीय राज्य का नेतृत्व करता है. भारतीय राज्य भी क्रमशः एक आंचलिक प्रभुत्ववादी शक्ति के रूप में उभर रहा है, लेकिन ऐसा वह अमेरिकी साम्राज्यवाद की वैश्विक योजना के एक प्रमुख सहयोगी के बतौर ही कर रहा है. यह राज्य तमाम तरह की जनविरोधी कार्रवाइयों का संचालन करता है.
बड़े पूंजीपतियों-जोतदारों के संश्रय के शासन को उखाड़ फेंकने के बाद विजयी क्रांति मजदूरों, किसानों व अन्य क्रांतिकारी वर्गों तथा जनवादी तबकों के शासन – अर्थात् जनता की जनवादी राजसत्ता की शुरूआत करेगी जो निम्नलिखित बुनियादी कार्यभारों को लागू करेगी. इसका मतलब है : (क) राज्य के ढांचे और कामकाज का पूर्ण जनवादीकरण, (ख) संघीय, जनवादी व धर्मनिरपेक्ष राज्यप्रणाली के आधार पर राष्ट्रीय एकता का पुननिर्माण, (ग) तीव्र, आत्मनिर्भर, टिकाऊ व संतुलित आर्थिक विकास तथा व्यापक गरीबी उन्मूलन, समग्र सार्वजनिक सुविधाओं एवं जनकल्याण को सुनिश्चित करना, (घ) समूचे समाज का आधुनिक, जनवादी सांस्कृतिक रूपांतरण तथा (च) साम्राज्यवाद विरोधी प्रगतिशील विदेश नीति को बढ़ावा देना.
हमारी क्रांति की मंजिल जनता की जनवादी क्रांति है जिसे केवल मजदूर वर्ग के नेतृत्व में ही संपन्न की जा सकती है. जनता की जनवादी क्रांति को विजय की ओर ले जाने के लिए जरूरी है कि मजदूर वर्ग एकताबद्ध एवं स्वतंत्र राजनीतिक शक्ति के बतौर उभरे और आम जनवादी आंदोलन पर अपना नेतृत्व कायम करे.
मजदूर वर्ग द्वारा संचालित जनवादी क्रांति की मुख्य शक्ति किसान समुदाय है. पार्टी ग्रामीण सर्वहारा एवं गरीब किसानों पर पूर्णतः निर्भर करती है. मध्यम किसानों से एकताबद्ध होती है, पूंजीवादी फार्मर व धनी किसानों के एक हिस्से को अपने पक्ष में कर लेती है और शेष को तटस्थ कर देती है, ताकि उनके बहुमत को क्रांति के दुश्मनों के साथ जाने से रोका जा सके. शहरी गरीब और मेहनतकश जनसमुदाय पार्टी के शहरी जनाधार के प्रमुख स्तंभ है जबकि मध्य वर्ग के कुछेक हिस्से महत्वपूर्ण संश्रयकारी हैं. छोटे व्यापारी, मैनुफैक्चरर तथा छोटे-मंझोले पूंजीपति और बुर्जुआ बुद्धिजीवी जनवादी क्रांति के दुलमुल व अस्थिर संश्रयकारी हैं.
जनता की जनवादी क्रांति को अपने लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए यह आवश्यक है कि इन तमाम वर्गो को लेकर मजदूर वर्ग के नेतृत्व में जनता के एक जनवादी मोर्चे का निर्माण किया जाये जिसकी बुनियाद मजदूर-किसान एकता हो. इसकी खातिर पार्टी विविध वर्गीय एवं तबकाई तथा बहु वर्गीय मोर्चा संगठनों का निर्माण करती है. जनता के विभिन्न हिस्से का विभिन्न तरह का संगठन खड़ा करती है तथा इन सबको लेकर मोर्चा बनाती है. इसके जरिए वह मजदूर, किसान, छात्र-युवा, शिक्षक-कर्मचारी, अन्य पेशाकर्मी, छोटे दुकानदार व व्यापारी तथा समाज के हरेक कमजोर तबके – दलित, महिला, आदिवासी, अल्पसंख्यक समुदाय, उत्पीडि़त राष्ट्रीयताओं के लोगों को संगठित करती है, उनके सहयोग से उनके भीतर रहकर कार्य करती है. परिस्थिति के मुताबिक वह अन्य जनवादी शक्तियों के साथ मुद्दा आधारित अभियानों और साझा कार्यक्रम आधारित अल्पकालिक संश्रय में भी जाती है.
भारत जैसे विशाल और विविधताओं व जटिलताओं वाले देश में जनता की जनवादी क्रांति को पूरा करने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी को काम के हर उपलब्ध रास्ते का - संघर्ष के गैर-संसदीय व संसदीय रूपों का - इस्तेमाल करने तथा संघर्ष के विविध रूपों को तेजी से एक-दूसरे में बदलने की कला में विशेष रूप से महारत हासिल करनी होगी. लिहाजा, पार्टी संघर्ष व संगठन के सभी आवश्यक रूपों के जीवंत संश्रय के जरिए सुसंगत क्रांतिकारी व्यवहार विकसित करने का प्रयास करती है.
सामान्य परिस्थितियों में भारतीय राजप्रणाली कम्युनिस्टों को खुले, कानूनी और संसदीय तरीकों के कार्य करने की इजाजत देती है. पार्टी को संयुक्त मोर्चा की अपनी बुनियादी लाइन के साथ संगति रखकर उपयुक्त चुनावी कार्यनीति विकसित करते हुए लंबे अरसे तक संसदीय रंगमंच पर क्रांतिकारी विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए तैयार रहना होगा. चुनावी संघर्ष के दौर में यह संभव है कि कम्युनिस्ट स्थानीय निकायों में और यहां तक कि राज्य विधायिका में भी बहुमत हासिल कर लें. दीर्घकालीन और जोरदार राजनीतिक संघर्षों के जरिए वर्ग शक्तियों के संतुलन को अपने पक्ष में झुकाने के साथ-साथ पार्टी स्वतंत्र रूप से अथवा समान विचारों वाली शक्तियों के साथ संश्रय कायम करके ऐसे अवसरों का इस्तेमाल करने के लिए तैयार है, बशर्ते कि पार्टी के पास मतदाताओं के साथ किए गए अपने वादों को पूरा करने की शक्ति हो.
हर हालत में ऐसे स्थानीय निकायों और सरकारों के साथ पार्टी का संबंध और उनके अंदर पार्टी की भूमिका का मार्गदर्शन निम्नलिखित बुनियादी उसूलों के जरिए होगा :
(क) पार्टी हर कीमत पर अपना स्वतंत्र सांगठनिक कार्यकलाप चलाती रहेगी और राजनीतिक पहलकदमी अपने हाथों में रखेगी,
(ख) स्थानीय निकायों/सरकारों को प्राप्त अधिकारों का पूरा उपयोग क्रांतिकारी जनवादी सुधार संचालित करने और जन-चेतना को एक नए जनवादी विकल्प की दिशा में मोड़ने के लिए किया जाएगा.
(ग) ऐसे स्थानीय निकायों/सरकारों को केंद्रीय सत्ता समेत अपने उच्चतर सत्ता प्रतिष्ठानों के खिलाफ व्यापक क्रांतिकारी विपक्ष के अभिन्न अंग के रूप में कार्य करना होगा तथा
(घ) पार्टी और उसके नेतृत्व में चलने वाले स्थानीय निकायों/सरकारों को इस बात की गारंटी करनी होगी कि जनवादी शक्तियों, जनवादी चेतना और जनवादी आंदोलन के स्वतंत्र विकास की राह में किसी भी स्थिति में कोई रुकावट पैदा न हो.
सर्वहारा की पार्टी को सभी तरह के संभावित प्रतिक्रांतिकारी हमलों का मुकाबला करके अंतिम निर्णायक विजय हासिल करने और उसे टिकाए रखकर क्रांति संपन्न करने के लिए खुद को मुकम्मल तौर पर तैयार करना होगा. लिहाजा, जनता का जनवादी मोर्चा और जनसेना पार्टी के शस्त्रागार में क्रांति के दो सर्वाधिक बुनियादी औजार हैं.