कोविड-19 का कहर कई परिवरों पर ऐसा टूटा कि वे सकते में हैं. एक ही परिवार के दो या अधिक लोग इस बीमारी की चपेट में आए और आगे.पीछे मौत का शिकर हो गए. आम तौर पर यह मान लिया जाता है कि वृद्ध मां, पिता या अन्य नजदीकी परिजन अपने प्रियजन की मौत के सदमे को झेल नहीं पाए और वे भी मर गए. लेकिन, कोविड-19 के मामले में ऐसा मानना सही नहीं लगता. सच्चाई तो यह है कि लगभग पूरा परिवार ही कोरोना संक्रमित हुआ और एक से अधिक लोग मौत की चपेट में आ गए.
लालजी चौधरी और लालमुनी कुंवर (काउप, गड़हनी, भोजपुर)
लालजी चौधरी (43 वर्ष) ताड़ छेदने का काम करते थे, विगत 2 मई 2021 को सांस फूलने की बीमारी से मर गए. उनको तीन.चार दिनों तक बुखार रहा. बहुत दिनों तक गांव.इलाके के ग्रामीण डॉक्टरों से इलाज चला. जब हालत बिगड़ने लगी तो उनकी पत्नी सुनीता देवी उन्हें गड़हनी अस्पताल में भर्ती कराने ले गई. वहां पहुंचते ही वे नहीं रहे.
उनकी मां लालमुनी कुंवर (70 वर्ष) भी हफ्रते भर के भीतर ही (8 मई 2021 को) गुजर गईं. सुनीता देवी ने बताया. बबुआ, बबुआ कह के ढर.ढर लोर (आंसू) बहाती थीं. लालजी के पिता मंगनी चौधरी पहले ही नहीं रहे.
लालजी के तीन बच्चे हैं. एक छोटी बच्ची अंशु (4) और दो बेटे . बिट्टू (16) और करण (10). लालजी के गुजरे तीन माह हो चले हैं. कोई भी सरकारी आदमी उनके परिवार की सुध लेने नहीं आया है.
कृष्णा कुमार और शिवपातो देवी (पवना, अगिआवं, भोजपुर)
कृष्णा कुमार (38) को पहले बुखार आया. कोरोना जांच हुआ तो वह निगेटिव आया. सबसे पहले जगदीशपुर (दुलौर) के रेफरल अस्पताल में दिखाये. सुधार नहीं हुआ तो सदर अस्पताल, आरा में जाकर भर्ती हुए. उनकी सांस फूल रही थी. अस्पताल में कोरोना का इलाज चला. ऑक्सीजन भी दिया गया. एक सप्ताह इलाज कराने के बाद वे घर आ गए. उसी दिन शाम को उनका देहांत हो गया. उनकी पत्नी बेबी देवी ने बताया कि उनके पति की चाय दुकान थी. 3 बेटियां और दो बेटे हैं. एक बेटी की शादी उनकी मृत्यु के बाद हुई. चाय दुकान अब बड़ा बेटा नंदू कुमार चलाता है.
उनकी मां शिवपातो देवी को भी बुखार आया था. उनकी भी सांस फूल रही थी. थोड़े ही दिनों बाद उनकी भी मृत्यु हो गई.
अर्जुन कुमार और श्यामपरी देवी (बीरमपुर, कोइलवर, भोजपुर)
अर्जुन कुमार का पैर टूट गया था. पटना के राज अस्पताल में उनका इलाज हुआ. पैर में लगा स्टील रॉड निकलवाने के लिए वे अप्रैल महीने में दुबारा अस्पताल पहुंचे. वहां करीब 20 दिनों तक भर्ती रहे. वहीं रहते उन्हें बुखार आने लगा था.
अस्पताल से घर लौटने ही उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी. उनको पहले सदर अस्पताल, आरा और फिर पटना के उसी राज अस्पताल में भर्ती किया गया. उनका कोरोना जांच पॉजिटिव आया. ऑक्सीजन लेवल लगातार गिर रहा था. अस्पताल ने जब तक ऑक्सीजन जुटाया, उनकी हालत बिगड़ चुकी थी. 24 घंटे के भीतर उनकी मृत्यु हो गई.
अर्जुन कुमार की 5 बच्चियां हैं . रोशनी कुमारी (9 साल), राधिका (7 साल), बरखा (4 साल), गायत्री (2 साल) और अंजलि (3 माह). रिंकी देवी उनकी पत्नी हैं.
अर्जुन कुमार के भाई संतोष ने बताया कि भाई की मौत के 11 दिनों बाद मां श्यामपरी देवी की भी मृत्यु हो गई. पिता चुन्नीलाल प्रसाद की मृत्यु पहले ही हो चुकी है.
मणिभूषण पाठक और जानकी देवी (बीरमपुर, कोइलवर, भोजपुर)
विद्याभूषण पाठक ने बताया . मेरे छोटे भाई व मां की मृत्यु कोरोना की वजह से हो गई. पहले मेरे भाई मणिभूषण पाठक को खांसी व बुखार हुआ. फिर उनकी सांस फूलने लगी. लोगों ने कोरोना जांच कराने की सलाह दी. हम उनको लेकर बड़हरा गये. जांच में वे कोरोना पॉजिटिव पाये गए. जब हम उनको लेकर सदर अस्पताल, आरा पहुंचे तो हमसे बोला गया कि यहां न बेड है, और न ही ऑक्सीजन. उनको थोड़ी देर ऑक्सीजन देने के बाद कहा गया कि आप इनको घर ले जाइये और वहीं आइसोलेशन में रखकर दवा खिलाइये. 9 मई को हम उनको लेकर घर ले आये तो उनकी हालत और खराब हो गई. उसी रात 10 बजे उनका निधन हो गया. मेरी वृद्धा मां के साथ भी आगे चलकर यही हुआ. भाई के निधन के एक माह भी नहीं बीते कि उनकी भी मृत्यु हो गई.
मणिभूषण पाठक की पत्नी नीलम देवी ने कहा . हमें धोखा दिया गया. जिस दिन हम उन्हें अस्पताल से घर ले आये, उसी रात वे हमें छोड़ गये. हमलोग बहुत संकट में हैं. सरकार से कोई उम्मीद नहीं कर सकते. हम तो यह भी नहीं सोच पा रहे हैं कि क्या करें? हमारे तीन बच्चे हैं . आदर्श मणि (15), आसी मणि (10) और हर्ष कुमार (7). वे अभी पढ़ ही रहे हैं. उनकी पढ़ाई का क्या होगा?
फौजदार पासवान और विट्ठल पासवान (अवगिला, सहार, भोजपुर)
कुसुम देवी ने बताया. मेरे पिता फौजदार पासवान (60) को बुखार हुआ. रस्सी बुनते हुए वे अचानक जमीन पर गिर पड़े. बजरेयां और गांव के डॉक्टर से 15 दिनों तक सुई.दवाई चला. वे ठीक नहीं हुए और मर गये. पिता की मृत्यु से पहले उनके चाचा (और मौसा भी) विट्ठल पासवान की भी अचानक मृत्यु हो गई थी.
कुसुम अपने पिता की इकलौती संतान हैं. वे मायके में ही रहती हैं.
उनकी मौसी फूलकुमारी देवी ने बताया कि उनके पति को बुखार और देह में दर्द हुआ. उसी रात वे चल बसे. दोनों परिवार एक ही घर में रहते हैं.
श्रीदेव कुमार और नारायण सिंह (भेड़रिया सियारामपुर, पालीगंज, पटना)
श्रीदेव कुमार (36) को खांसी-बुखार हुआ. सांस लेने में भी दिक्कत थी. उनको पालीगंज में डॉ. श्यामनंदन शर्मा को दिखाया गया. जब हालत बिगड़ने लगी तो अस्पताल के लिए भाग.दौड़ शुरू हो गई. कोई भी अस्पताल भर्ती नहीं ले रहा था. एम्स के सामने वे दो घंटे तक एंबुलेंस में ही रह गये. पटना के एनएमसीएच पहुंचने के रास्ते में ही उनकी मौत हो गई. उनकी मृत्यु के दस दिन भी नहीं बीते कि उनके पिता नारायण सिंह (70) की भी मृत्यु हो गई. उनको भी बुखार था और हंफनी हो रही थी. पालीगंज में डॉक्टर को दिखा कर लौट रहे थे. बीच रास्ते में ही उनका दम टूट गया. श्रीदेव कुमार वाहन चलवाते थे. परिवार में उनकी पत्नी वसंती देवी और तीन छोटे बच्चे हैं.
पिंटू राम और सुशीला देवी (भेड़रिया सियारामपुर, पालीगंज, पटना)
कृष्णा राम के बेटे पिंटू राम को खांसी और बुखार हुआ. फिर, सांस फूलने लगी. पहले पालीगंज के सरकारी अस्पताल में दिखाया गया. कमजोरी बढ़ती गई और देह में खून की कमी हो गई. आगे चलकर बैदराबाद में डॉ. खुर्शीद से इलाज शुरू हुआ. पानी चढ़ाने के बाद उनकी हंफनी और बढ़ गई. 14 मई को उनकी मृत्यु हो गई.
कृष्णा राम के छोटे बेटे ने बताया. भाई की मृत्यु के बाद मेरी मां सुशीला देवी को भी हांफ और हल्की खांसी हुई. वे चलने.फिरने की हालत में भी नहीं रहीं. 17 मई को चापाकल के पास गिर गईं और और हांफते.हांफते गुजर गईं. पति और सास दोनों के इस तरह चले जाने से पिंटू राम की पत्नी सुनीता देवी सकते में हैं. उनके तीन छोटे.छोटे बच्चे हैं. एक अब भी मां की गोद में ही रहता है.
कृष्णा प्रसाद, सुमंती देवी, प्रकाशचंद्र भारती (चकिया, पुनपुन, पटना)
कृष्णा प्रसाद को बुखार था. फिर उनके बेटे प्रकाशचंद्र भारती को भी खांसी-बुखार होने लगा, सांस फूलने लगी. वे दोनों कोरोना पॉजिटिव हो गये थे. उनको पटना के एक प्राइवेट अस्पताल (आस्था अस्पताल) में भर्ती कराया गया. ऑक्सीजन के दो सिलेंडर (प्रति सिलेंडर 45,000 रु.) चलने के बाद भी उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. पहली मई को उनको राजेन्द्रनगर के ल्यूकेश अस्पताल में शिफ्रट किया गया. उसी दिन उनका निधन हो गया.
बेटे के इलाज के दौरान ही उनके माता.पिता की हालत भी खराब होती गई. वे दोनों उनसे पहले ही चल बसे. उनके पिता कृष्णा प्रसाद ने 25 अप्रैल और मां सुमंती देवी ने 27 अप्रैल को सदा के लिए आंखें मूंंद ली. पेशे से साफ्रटवेयर इंजीनियर प्रकाश का घर अभी सूना पड़ा है. उनके चाचा ने बताया कि बहू सीता देवी बच्चों समेत अपने मायके में हैं.
डॉ. बच्चा प्रसाद, सरस्वती देवी, पन्नालाल प्रसाद, लखी बाबू और मुनुमुन प्रसाद (मैरवां, सिवान )
मैरवां शहर के जाने.माने चिकित्सक डॉ. बच्चा प्रसाद समेत उनके 5 परिजन कोरोना बीमारी से मर गये. पिछले साल, 17 जुलाई को 2020 को उनके बेटे लखी बाबू (48) नहीं रहे. एक सप्ताह बाद ही 25 जुलाई 2020 को उनके भाई पन्नालाल प्रसाद (46) की मृत्यु हो गई. वर्ष 2021 के अप्रैल महीने में डॉ. बच्चा प्रसाद की कोरोना से मौत हो गई. उसी दिन उनकी पत्नी सरस्वती देवी नहीं रहीं. मां.पिता के निधन के सात दिन बाद ही डॉ. बच्चा प्रसाद के तीसरे बेटे मुनमुन प्रसाद (42) की भी मौत हो गई.
लखी बाबू के बेटे रवि सोनी ने बताया. पिछले साल मेरे घर के सभी लोग कोरोना पॉजिटिव हो गये थे. दादाजी (डॉ. बच्चा प्रसाद) के अस्पताल से ही सबका इलाज हुआ. पापा की तबीयत रात में अचानक बिगड़ गई. सांस लेना मुश्किल हो गया. हम उन्हें गोरखपुर ले जा रहे थे कि देवरिया के नजदीक पहुंच कर उनका निधन हो गया. सात दिनों बाद मेरे चाचा पन्नालाल प्रसाद भी नहीं रहे.
मनोज कुमार शर्मा और संध्यावती देवी (नगवां, फुलवारी, पटना)
मनोज कुमार शर्मा (48) की खांसी और बुखार हुआ. 12 अप्रैल को वे बुरी तरह से हांफने लगे. 24 घंटे की दौड़.धूप के बाद भी न तो उनको ऑक्सीजन मिला, न अच्छा अस्पताल. अगले दिन 13 अप्रैल को 10 बजे उनकी मृत्यु हो गई.
उनकी पत्नी पूनम देवी ने बताया . मेरे पति मेरे पति की मौत के 15 दिनों बाद मेरी मां संध्यावती (58 वर्ष) की भी यही बीमारी हुई और वे चल बसीं. पूनम देवी के तीन बच्चे हैं . गौतम आर्यन (21), उत्तम कुमार और मुस्कान कुमारी (16). पति और मां की अचानक मौत से वे सकते में हैं.
कलामुद्दीन अंसारी (पसौर, चरपोखरी, भोजपुर)
सैरुन बीबी ने बताया . मेरे पति कलामुद्दीन अंसारी (65) को पहले सर्दी.खांसी हुई. फिर उनको बुखार आ गया और वे हांफने लगे. दो दिन बाद उनको लेकर सदर अस्पताल, आरा गई. वहां सुई लगाते समय ही उनका दम टूट गया. जांच कराने व इलाज कराने का तो मौका ही नहीं मिला. मेरे दो बेटे हैं. उन दोनों का परिवार है. दोनों की पत्नियां, दो बच्चे और एक बच्ची. वे पंजाब में कारखाना में काम करते हैं. पिछले लॉकडाउन में दोनों पैदल चलकर घर लौटे थे. वे अपने बीवी.बच्चों की ही देखरेख करते हैं, मेरी नहीं.
करण साह (पसौर, चरपोखरी, भोजपुर)
आरती देवी ने कहा. मेर पति करण साह (45) को खांसी और बुखार हुआ था. उनकी सांस फूल रही थी. पहले उनको डुमरावं में डॉक्टर से दिखाया. सुधार नहीं हुआ तो आरा लेकर गई. वहां डॉक्टर ने पटना ले जाने को कहा. मेरे पास पैसा नहीं था कि आगे उनका इलाज कराती. वे लगातार हांफ रहे थे और अब तक के इलाज का कोई फायदा नहीं हुआ था. मेरे पति खेत मजदूर थे. उनकी कमाई से ही घर चलता था. मेरे छोटे.छोटे चार बच्चे हैं. एक बच्ची 12 साल और दूसरी 10 साल की है. एक बेटा जन्मजात दिव्यांग है. अब उनका भरण.पोषण कैसे होगा? गांव के मुखिया ने भी मेरी कोई मदद नहीं की.
कपिलमुनि तिवारी (बिहटा,तरारी, भोजपुर)
मृत्युंजय ने बताया. मेरे पिता कपिलमुनि तिवारी को पहले हल्का बुखार हुआ. हमने उनको दवा लाकर दी. उन्होंने रात का खाना (रोटी.भुजिया) भी अच्छी तरह से खाया और सो गए. 4 बजे भोर में उन्होंने मांग कर पानी पीया. उसके बाद उनको लगातार खांसी उठने लगी. वे हांफने लगे. तत्काल उनकी मृत्यु हो गई. 5 दिनों के भीतर ही 18 अप्रैल को वे चल बसे. गांव के आंगनबाड़ी केन्द्र से उनका मृत्यु प्रमाण पत्र बना है. हार्ट अटैक को मरने की वजह बताया गया है. मेरी मां राधिका देवी लगातार रो रही हैं. मैं और मेरे भाई रामचंद्र तिवारी गांव में ही रहकर खेती करते हैं.
स्वामीनाथ भगत (दमोदरा, गुठनी, सीवान)
सोघरा देवी ने बताया कि मेरे पति स्वामीनाथ भगत (56 वर्ष) को पहले खांसी हुई. फिर पेट फूल गया और सांस लेेने में दिक्कत होने लगी. देवरिया (उप्र) के डॉक्टर से इलाज चल रहा था. फिर उनको गोरखपुर के प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया. डॉक्टर ने देखते ही कह दिया. नहीं बचेंगे, घर लेकर जाइए. उसी रात कुछ घंटों बाद अस्पताल में ही वे गुजर गए. मेरे तीन बेटे हैं, बड़ा बेटा गूंगा है. उसको कोई सहायता नहीं मिलती. मेरे परिवार को सरकारी राशन नहीं मिलता.
सुभाष गुप्ता (केल्हरूआ, गुठनी, सीवान)
रिंकी गुप्ता ने बताया कि मेरे पति सुभाष गुप्ता (34 वर्ष) पलम्बर मिस्त्री का काम करते थे. वे दो माह पहले ही मुंबई से आये थे जहां वे प्राइवेट काम करते थे. पहले उनको बुखार हुआ. फिर खांसी हुई और दम फूलने लगा. उनको दमा रोग की दवा दी गई. उनको अस्पताल ले जाने का भी मौका नहीं मिला. तीन दिनों के अंदर ही 19 मई को उनकी मृत्यु हो गई. रिंकी देवी के दो बेटे हैं. अभय (5 वर्ष) और अमन (3 वर्ष). छोटा बेटा चल.फिर नहीं सकता. उसे ‘स्केल्टन डिस्प्लेसिया’ नाम की बीमारी है. सुभाष गुप्ता की मां भागमनी देवी ने बताया कि उनका छोटा बेटा भी मुंबई में है. पत्नी और बच्चों समेत उसको भी यही बीमारी हुई.
अवधेश कुमार सिंह (पसौर, चरपोखरी, भोजपुर)
45 वर्षीय अवधेश कुमार सिंह को पहले बुखार हुआ. फिर खांसी और हंफनी शुरू हो गई. इलाज के लिए चरपोखरी जाते हुए इनकी मृत्यु हो गई. इनकी पत्नी लीलावती देवी विद्यालय शिक्षिका हैं. दो बच्चे हैं. प्रीति कुमारी (8 वर्ष) और आशीष कुमार (6 वर्ष)
दीपनारायण यादव (पसौर, चरपोखरी, भोजपुर)
निर्मल कुमार यादव ने बताया. मेरे भैया दीपनारायण यादव (55) को पहले खांसी-बुखार हुआ, फिर सांस फूलने लगी. गांव के डॉक्टर ने इलाज किया, लेकिन हालत बिगड़ती चली गई. तीसरे दिन, जब इलाज के लिए गाड़ी से आरा ले जाया जा रहा था, बगवां गांव (गड़हनी) के नजदीक उनका दम टूट गया. उनकी पत्नी विमला देवी को कोई बच्चा नहीं है. उनका अपना खेत नहीं था. दूसरे के खेतों में मजदूरी करते थे.
नौशाबा खातून (पेउर, सहार, भोजपुर)
शमशाद अहमद ने बताया. मई महीने में मेरी बीबी नौशाबा खातून (51) को सर्दी.खांसी और बुखार हुआ. दो-चार दिनों में ही उनकी हालत बिगड़ गई. सांस लेने में दिक्कत होने लगी. उनको आरा, सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया. ऑक्सीजन भी दिया गया. लेकिन, 24 घंटे बाद ही वे पटना के लिए रेफर कर दी गईं. 11 बजे रात में उनको पीएमसीएच में भर्ती कराया गया. ढांई घंटे बाद ही उनका इंतकाल हो गया.
शमशाद अहमद पूना की एक ज्वेलरी शोप में सेल्स मैन थे. 2020 के लॉकडाउन के बाद वे घर लौट आये.
शिवशंकर राम (अकुरी, पालीगंज, पटना)
संजू देवी ने बताया. मेरे पति शिवशंकर राम को बुखार व खांसी हुआ. स्थानीय डॉक्टर को दिखाया गया तो बोले कि कोरोना है. उनको इलाज का भी मौका नहीं मिला. जिस दिन उनकी तबीयत खराब हुई, उसी रात उनकी मृत्यु हो गई.
राजा कुंवर (पसौर, चरपोखरी, भोजपुर)
प्रशासन राम ने बताया. मेरी मां राजा कुंवर (60 वर्ष) को पहले खांसी-बुखार हुआ. गांव में ही इलाज हो रहा था. तीन दिन बाद सांस भी फूलने लगी. पांचवे दिन वह मर गई. हम दो भाई हैं और हमारी तीन बहनें हैं. मेरे पिता पहले ही गुजर गए. अब मां भी नहीं रही.
लखपतिया देवी (अवगिला, सहार, भोजपुर)
रामप्रवेश राम ने बताया. मेरी पत्नी लखपतिया देवी (65) को सर्दी.खांसी-बुखार था. वह चलने-फिरने में असमर्थ थी. मेरी तबीयत भी खराब थी, उल्टी हुई थी. मैं सहार के सरकारी अस्पताल में दवा लाने गया था. वहां डॉक्टर ने मेरा कोरोना जांच करने के बाद बताया कि मैं कोरोना पॉजिटिव हो गया हूं. लेकिन, जब मैंने उनसे घर चल कर अपनी पत्नी का भी कोरोना जांच करने को कहा तो उन्होंने इंकार कर दिया. मुझे जगदीशपुर ले जाकर जबरन कोरोन्टाइन (क्वारंटीन) कर दिया गया. इसी बीच मेरी पत्नी गुजर गई.
चंदा खातून (मोथा, अरवल, अरवल)
नाजिया खातून ने बताया. मेरी मां चंदा खातून (41) को खांसी-बुखार हुआ और सांस फूलने लगी. उन्हें अरवल के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया. एक दिन बाद ही अस्पताल ने छुट्टी कर दी. घर लौटते समय रास्ते में ही उनका इंतकाल हो गया. मेरे अब्बा मो. शोएब गुजरात के गांधी धाम में रहते हैं. वे वहां गाड़ी चलाते हैं. हम तीन बहनें हैं, एक भाई. पूरा परिवार गुजरात में ही रहता है. पिछले लॉक डाउन में हम लोग अरवल आए थे.
गुलाब गोंड़ (दमोदरा, गुठनी, सीवान)
सुगान्ति देवी ने बताया कि मेरे पति गुलाब गोंड (65) चलने.फिरने में असमर्थ थे. उनको खांसी-बुखार हुआ और सांस फूलने लगी. ऑक्सीजन की कमी हो गई थी. अस्पताल नहीं ले जा पाये. गुठनी से डॉक्टर को बुलाकर इलाज हुआ. चौथे दिन उनकी मृत्यु हो गई. बेटे मनोज कुमार साव ने बताया कि हम गरीब लोग हैं. चार भाई हैं. एक भाई मनिहारी का काम करते हैं. एक राज मिस्त्री हैं. दो भाई अभी पढ़ रहे हैं.
सुग्रीव मल्लाह (चिताखाल, गुठनी, सीवान)
पत्नी ने बताया कि मेरे पति सुग्रीव मल्लाह को खांसी-बुखार हुआ था. इलाज के लिये पटना ले जाते समय बीच रास्ते में ही उनकी मृत्यु हो गई. मेरे तीन बच्चे हैं. बेटी अनिता कुमारी (18) और दो उससे छोटे बेटे.
अत्यंत ही निर्धनता में जी रहे परिवारों के लिए किसी भी तरह की बीमारी का इलाज कराना बेहद मुश्किल होता है, कोविड तो महामारी है. पहले से ही शारीरिक दुर्बलता का सामना कर रहे लोग इसका आसान चारा साबित हुए. जब हमने मृतकों के इलाज के बारे में जानना चाहा तो उनके चेहरे पर बेबसी, झुंझलाहट और गहरी पीड़ा की झलक देखने को मिली.
सुमंती (पसौर, चरपोखरी, भोजपुर)
राधिका देवी ने बताया. मेरी 16 वर्षीय बेटी सुमंती को सर्दी.बुखार हो गया. हमारे पास उसको पटना ले जाने का पैसा नहीं था. स्थानीय डॉक्टरों ने जो दवा बताई, हमने उसे ला कर दिया. पिछले साल के लॉकडाउन ने सबका रोजगार छीन लिया. अब तो पेट पर भी आफत है. हमलोग हर दिन सौ.दो सौ रु. ही कमाते हैं. उसमें से ही उसके लिए हर दिन 50.60 रु. की दवा लाते थे. हम उसे आरा-पटना ले जाने के बारे में तो सोच भी नहीं सकते थे. अलग से गाड़ी और अस्पताल का खर्चा भी कहां से जुटाते?
शिवमनी देवी (परसादी इंग्लिश, अरवल, अरवल)
जयप्रकाश राम बोले. मेरी पत्नी शिवमनी देवी को सर्दी.बुखार हुआ था. फिर उनको हंफनी होने लगी. वे पोलियो ग्रस्त थीं. कहीं आने.जाने में भी दिक्कत थी. मेरी और मेरी बेटी की तबीयत भी खराब थी. गांव के डॉक्टर से ही दवा लेकर उसको खिलाया. धीरे-धीरे वह कमजोर होती चली गई और अंत में मर गई.
मदन साव (बिहटा, तरारी, भोजपुर)
गुडि़या देवी ने कहा. मेरे पिता मदन साव (55 वर्ष) एक खेत मजदूर थे. उनके पास अपने खेत नहीं थे. वे दूसरे के खेतों में ही काम करते थे. उनको आठ दिनों तक खांसी और बुखार रहा. हमने उन्हें दवा तो दी लेकिन हमारे पास उनको अस्पताल ले जाने का पैसा नहीं था. मेरी शादी हो चुकी है लेकिन अपनी मां की मदद करने और उसे सांत्वना देने के लिए मैं उसके साथ रह रही हूं.
चंद्रमा साव (बिहटा, तरारी, भोजपुर)
राधिका देवी का कहना था. मेरे पति चंद्रमा साव (70 वर्ष) गांव के मैदान में मैच देखने गए थे. उनको खांसी-बुखार हुआ और सांस फूलने लगी. पहले विशुनपुरा और फिर कछवां ले जाकर डॉक्टर से दिखाया. उनको सुई.दवाई और भाप दिया गया. डॉक्टरों ने आरा.पटना ले जाकर दिखाने को कहा. लेकिन गरीबी के कारण यह संभव नहीं था. उस दिन ढाई बजे उनकी बोलचाल बंद हो गई. तीन घंटे बाद ही वे गुजर गये. हमारे दो बेटे और दो बेटियां हैं. दोनों बेटे अप्रवासी मजदूर हैं जो दिल्ली में काम करते थे. पिछले लॉकडाउन के कारण उनका काम छूट गया. हमारे पास अपना खेत भी नहीं है.
सुदर्शन बैठा (बिहटा, तरारी, भोजपुर)
सीता देवी ने बताया. मेरे पति सुदर्शन बैठा (60 वर्ष) को दो दिनों तक बुखार रहा और उसके बाद वे गुजर गये. हमारे पास इलाज के लिए बिल्कुल ही कोई पैसा नहीं था.
अमरनाथ साह (आसावं, दरौली, सीवान)
फूलकुमारी देवी ने बताया. मेरे पति अमरनाथ साह को खांसी-बुखार और सांस फूलने की बीमारी हुई. देहाती डॉक्टर से घर पर रहकर ही इलाज हुआ. ‘ना बढि़या डॉक्टर मिलल, ना बढि़या दवाई मिलल, ना बढि़या पइसा रहे.’ दो-तीन दिन के अंदर ही उनकी मृत्यु हो गई. मेरे पति सीमेंट-बालू के काम (गृह निर्माण) में मजदूरी करते थे. अपना खेत भी नहीं हैं. राशन कार्ड भी नहीं बना है. इंदिरा आवास भी नहीं मिला है. मेरे 4 बच्चे हैं, दो बेटे (14 और 7 वर्ष) और दो बेटियां (16 और 9 वर्ष). सभी पढ़ रहे हैं. बड़ी लड़की सरकारी स्कूल में 10 वें क्लास में पढ़ती है. मैं ठीक से खाना नहीं खा पाती. मुझे नींद भी नहीं आती.
उजागिर साह (कोहरवलिया, गुठनी, सीवान)
कलावती देवी ने कहा. मेरे पति उजागिर साह की सांस फूल रही थी. जतउर और बुंदी के डॉक्टर को बुला कर सुई-दवाई करवाया. अस्पताल नहीं ले गई क्योंकि उनको ले जाने में मदद करनेवाला कोई नहीं था. न कोई पास आता था, न कोई छूता था. घर में मेरे अलावा छोटी पतोहू और छाटी-सी पोती है. मेरे पास डॉक्टर को देने और दवा खरीदने का पैसा भी नहीं था. वे तीसरे दिन ही मर गये. छोटा बेटा गांव में ही इधर.उधर घूमता रहता है. दो बेटे दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहते हैं. वे सब अपना-अपना परिवार देखेंगे. अब मुझे कौन देखेगा?
लहेसरी देवी (अवगिला, सहार, भोजपुर)
जनी देवी ने बताया. सास लहेसरी देवी को खांसी-बुखार हुआ. स्थानीय दवा दुकान से लाकर उनको दवा दी गई. वे रात भर हांफती रहीं. अगले दिन शाम को उनके प्राण छूट गये. वे बोलीं. हम गरीब लोग हैं. हमें खाने-पीने की भी दिक्कत रहती है. मेरे ससुर 2018 में ही गुजर गए.
परिजन बीमार को लेकर इस अस्पताल से उस अस्पताल तक दौड़ते रहे. हर जगह या तो ना मिला या उन्हें दूसरी जगह के लिए रेफर कर दिया गया. कई लोग एंबुलेंस या वाहन के अंदर ही चल बसे.
मोहर्रम बीबी (अवगिला, सहार, भोजपुर)
बेबी खातून ने बताया. मेरी मां को खांसी और बुखार हुआ. मैंने उनको दवा लाकर दी लेकिन उनकी हालत बिगड़ती चली गई. तब मैं उनको अरवल के एक प्राइवेट अस्पताल में दिखाने ले गई. वहां हमसे कहा गया कि यहां कोरोना का कोई ईलाज नहीं हो रहा है, इनको पटना के किसी सरकारी अस्पताल में ले जाइये. अरवल के सरकारी अस्पताल ने भी उनको भर्ती नहीं लिया. उल्टे वहां कोरोना मरीजों को दूर से ही भगाया जा रहा था. मजबूरन हमें उनको लौटा कर घर (सहार) लाना पड़ा. उनकी हंफनी बढ़ती ही चली गई. उसी दिन शाम के 5 बजे उनका इंतकाल हो गया.
अस्पताल ने उन्हें यह कहते हुए भर्ती नहीं किया कि उन्हें कोरोना है. लेकिन, अब वे हमें कोई मुआवजा नहीं दे रहे हैं. कह रहे हैं कि उनकी किसी भी रिपोर्ट में यह नहीं लिखा है कि उनको कोरोना था.
मेरे पति मो. आमीन जेनरेटर-शामियाना (टेंट हाउस) का काम करते थे. काम के दौरान हुए हादसे में उनके हाथ.पांव की उंगलियां टूट गई. अब वे कोई कमाई नहीं कर पाते हैं.
शमीउल्लाह खान (मोथा, अरवल, अरवल)
रौशन खातून बोलीं. मेरे पति शमीउल्लाह खान (50) को सर्दी-खांसी-बुखार हुआ था. उनको अरवल के सदर अस्पताल में दिखाने ले जाया गया. वहां डॉक्टर दूर से ही देखते थे. उनकी हालत दिनों-दिन खराब होती जा रही थी. आखिर में उन्हें पटना ले जाया गया. डॉ. अरूण तिवारी और डॉ. एजाज अली के प्राइवेट क्लिनीक में उन्हें भर्ती कराने की कोशिश की गई लेकिन किसी ने भर्ती नहीं लिया. इसी दौड़-भाग के बीच उनका इंतकाल हो गया.
उन्होंने कहा. मेरे पति राज मिस्त्री थे. लॉकडाउन की वजह से काम-धंधा भी बंद था. सभी बच्चों की पढ़ाई रूक गई है. पांच बेटे और दो बेटियां हैं. एक ही बेटी की शादी हुई है.
लक्षमीना देवी (केल्हरूआ, गुठनी, सीवान)
रामायण प्रजापति ने बताया. मेरी पत्नी लक्षमीना देवी (45) को खांसी-बुखार हुआ और सांस फूलने लगी. मैरवां के प्राइवेट अस्पताल ने उनको भर्ती करने से इंकार कर दिया. कहा कि इनको ऑक्सीजन चाहिए, सरकारी अस्पताल में ले जाइये. सरकारी अस्पताल ने कोरोना का रोगी बताया और भर्ती लेने मेें बहुत ना.नूकुर किया. किसी तरह 24 घंटा भर्ती रखकर ऑक्सीजन दिया, फिर वहां से निकाल दिया. हम किसी दूसरी जगह ले जाने की स्थिति में नहीं थे. घर ले आये जहां वह दूसरे दिन गुजर गईं.
मेरी पहली पत्नी 1980 में एक बेटे को जन्म देकर गुजर गईं. दूसरी पत्नी भी साथ नहीं रहीं. उनसे मुझे एक बेटा और एक बेटी है.
संजय केवट (पुरैनया, पुनपुन, पटना)
गायत्री देवी ने कहा. मेरे बेटे संजय (42) को बुखार और खांसी था. वे फुलवारी के डॉ. केपी शर्मा के अस्पताल में भर्ती होने के लिए गये थे. वे उनको भर्ती नहीं लिये. बोले कि सरकारी अस्पताल एम्स या पीएमसीएच में जाइये. गांव लौटकर देहाती डॉक्टर से इलाज करवाया जा रहा था. उन्होंने आधा घंटा ऑक्सीजन भी दिया. 4 घंटे के भीतर ही मेरे बेटे की मृत्यु हो गई. संजय राज मिस्त्री का काम करते थे. उनक पांच बच्चे हैं.
मां ने कहा . पूछने पर बोलता था कि हम ठीक हैं. उसी के भरोसे घर चलता था. हमको कुहुकेला छोड़ दिया.
अनिल यादव (अकुरी, पालीगंज, पटना)
पार्वती देवी ने बताया. मेरे बेटे अनिल यादव को खांसी-बुखार था. सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी. सरकारी अस्पताल में भर्ती व इलाज न होने की वजह से वे पटना नहीं गए. 15 दिनों तक स्थानीय डॉक्टर की दवा खाते रहे. जब हंफनी होने लगी तो पटना के श्रीराम हॉस्पीटल में भर्ती हुए और वहीं पर मृत्यु हो गई. अनिल की पत्नी का नाम है . सुनयना देवी. उनके तीन बच्चे हैं. विशाल कुमार (21), अंजलि कुमारी (17) व सोनाक्षी. उनके भाई ने बताया कि उनके ईलाज में करीब 5.6 लाख रुपये खर्च हुए.
विद्यावती देवी (डरैली मठिया, दरौली, सीवान)
सत्येन्द्र चौहान ने कहा. मेरी मां विद्यावती देवी (45) को 25 मई से बुखार.खांसी शुरू हुआ. उनके पेट में दर्द भी था. खाने-पीने में भी कठिनाई हो रही थी. मैरवां के प्राइवेट अस्पताल ने भर्ती नहीं लिया तो ठेपहां के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया. वहां दो दिन ईलाज हुआ. कोविड जांच पोजिटिव था. सुधार नहीं दिखा तो गुठनी के एक प्राइवेट अस्पताल में ले गये, जहां हालत और बिगड़ गई. एंबुलेंस से गोरखपुर ले जाते समय चौरीचौरा के पास उनका दम टूट गया.
बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने दावा किया ‘कोरोना लहर के दौरान बिहार के अस्पतालों में मरीजों को दिए जाने वाले ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं थी. एक की भी मृत्यु ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है. उनका यह दावा पूरी तरह से झूठा है
मो. शमशेर खान (मोथा, अरवल, अरवल)
जमीउल्लाह खान ने बताया कि मेरे अब्बा मो. शमशेर खान को खांसी-बुखार हुआ और सांस लेने में दिक्कत हो लगी. अरवल के एक प्रइवेट अस्पताल (डॉ. विजय के क्लिनीक) में उन्हें भर्ती कराया गया. जब हालत ज्यादा खराब होने लगी तो उन्हें दूसरी जगह ले जाने की सोची. अरवल, और आरा में भी ऑक्सीजन की कमी थी. पटना के अस्पतालों में जगह नहीं मिल पा रही थी. गया के एक अस्पताल में भर्ती कराने की बात हुई. गाड़ी रिजर्व कर उन्हें ले जा रहे थे कि बीच रास्ते में ही उनका इंतकाल हो गया.
आरिफा परवीन (अवगिला, सहार, भोजपुर)
चुनचुन खातून ने बताया. मेरी डेढ़ साल की पोती आरिफा परवीन, जो पिछले साल 4 जनवरी को पैदा हुई थी, कोरोना से मर गई. उसे बुखर हुआ तो हम उसे सहार के सरकारी अस्पताल में ले गये. उन्होंने कहा. हम यहां इसका ईलाज नहीं कर सकते, इसे पटना ले जाइये. हम उसे सहार के एक प्राइवेट अस्पताल में भी ले गये. वहां भी उन्होंने यह कहा कि हम इतनी छोटी बच्ची का ईलाज नहीं कर सकते, पटना जाइये. इसलिए हम उसे पटना के एक प्रोईवेट अस्पताल में ले गये. वहां ऑक्सीजन नहीं था. इस वजह से 21 अप्रैल के दिन 2 बजे उसकी मौत हो गई. डॉक्टरों ने उसे छूआ तक नहीं. अगर उसे ऑैसीजन मिल जाता तो वह बच जाती. जिस दिन उसकी मौत हुई, उस दिन उस अस्पताल में पांच और लोग मरे. अखबारों में भी उसके मौत की खबर छपी. खुर्शीद मिस्त्री की पोती कोरोना से मरी. उसके मरने के बाद ही डॉक्टर ने हमें बताया कि उसे कोरोना था. लेकिन हमें उसके कोविड पोजिटिव होने का सर्टिफिकेट नहीं मिला. हमने उसकी बची हुई सारी दवाईयां और ईलाज के कागजात फेंक दिए हैं.
रामसुंदर सिंह (भेड़रिया सियारामपुर, पालीगंज, पटना)
श्रीनाथ कुमार ने बताया कि मेरे पिता रामसुंदर सिंह (70) बिल्कुल स्वस्थ थे. वे रात में दालान में सोये थे. सुबह गया तो देखा कि वे हांफ रहे थे. उनका फेफड़ा बहुत सिकुड़ गया था. नाक और गला कफ से जाम हो गया था. देह में जलन व बेचैनी थी. ऑक्सीजन की जरूरत थी लेकिन वह मिल नहीं रहा था. डॉ. सुभाष गुप्ता के यहां थोड़ा.बहुत ऑक्सीजन मिला. उनको पीएमसीएच में भर्ती कराया गया था. लेकिन, कोविड वाउर् की जगह जेनरल वार्ड मिला. वे अंततः गुजर गये. हम तीन भाई हैं, दो बहनें हैं. मां लगातार रो रही हैं.
दीना राजभर (कल्याणी, गुठनी, सीवान)
अस्मावती देवी ने कहा कि मेरे पति दीना राजभर राज मिस्त्री थे. वे ढलाई का काम करते थे. उनको बुखार और खांसी हुआ. हम उनको एक डॉक्टर से दिखाने ले गये. उसने उनको गुठनी के सरकारी अस्पताल (प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र) में रेफर कर दिया. वहां डॉक्टर ने बताया कि इनको कोरोना है. लेकिन वहां ऑक्सीजन नहीं था. उन्होंने उनको कोरोना का वैक्सीन लगा दिया. इसके तुरत बाद ही उनकी सांस उल्टी हो गई. सांस लेने की कोशिशों के दौरान ही वे पांचवें दिन चल बसे.
मेरे पति मुझे कभी मजदूरी नहीं करने दिए. हमारे तीन बच्चे हैं. बड़ी बेटी की शादी हो गई है. दूसरी बच्ची अभी 13 साल की है. 19 साल का एक बेटा है जिसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहती है. वह किसी काम का नहीं है. हमको बहुत भारी दुख हो गया. शाम में परिवार के खाने के लिए नमक और रोटी भी नहीं है. अब हमारा कौन सहारा है? केवल ऑक्सीजन मिल जाता तो वे बच जाते. अस्पताल का सारा कागज हमने फेंक दिया.
मोतीलाल मांझी (जैजोर, आंदर, सीवान)
कविता देवी ने बताया. मेरे ससुर मोतीलाल मांझी को खांसी-बुखार हुआ था. सांस लेने में तकलीफ थी और वे हांफने लगे थे. उनको रघुनाथपुर के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया. वहां ऑक्सीजन नहीं था. दो दिनों के अंदर उनकी हालत इतनी खराब हो गई कि घर लाना पड़ा. 30 मई को उनकी मृत्यु हो गई.
शमीम अंसारी (चिताखाल, गुठनी, सीवान)
लैला खातून ने बताया. मेरे शौहर शमीम अंसारी को खांसी-बुखार हुआ. सांस उल्टी चलने लगी. गुठनी के सरकारी अस्पताल में उनका इलाज हुआ. उनका कोरोना जांच हुआ था. एक्सरे भी हुआ था. लेकिन ऑक्सीजन नहीं मिला. 20 दिन बाद अस्पताल में ही उनकी मृत्यु हो गई. वे मजदूरी करते थे. मेरी एक छोटी-सी बच्ची है. करकट का घर है. जमीन नहीं है.
परिजनों ने अस्पतालों, खास तौर पर सरकारी अस्पतालों की बदहाली और डॉक्टरों व अन्य स्टाफ की असंवेदशीलता के बारे में बताया. प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के नाम पर लूट भी सामने आई.
बुधराजो कुंअर (पसौर, चरपोखरी, भोजपुर)
छठूनाथ सिंह ने बताया. मेरी मां बुधराजो कुंवर को बुखार लगा और तीसरे दिन ही मृत्यु हो गई. गांव के स्वास्थ्य उप केन्द्र ने कुछ दवायें दी थीं. उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य उप केन्द्र का अपना भवन नहीं है और ज्यादातर बंद ही रहता है.
जीउत राम (पसौर, चरपोखरी, भोजपुर)
इंदल कुमार ने कहा. मेरे पिता जीउत राम (65 वर्ष) को बुखार हुआ. उनका इलाज हुआ तो कुछ ठीक हो गये थे. बहुत कमजोरी हो गई थी. फिर उन्हें सांस की दिक्कत होने लगी. हम उन्हें लेकर आरा सदर अस्पताल पहुंचे. वहां उन्हें तीन घंटे बाद ऑक्सीजन मिला. फ्रलोमीटर मुझे ही बाजार से 3 हजार रु. में खरीद कर लाना पड़ा. डॉक्टर ने कहा कि यहां डेक्सोना भी नहीं मिलेगा. वे पटना रेफर करने पर जोर दे रहे थे. वहां कोई डॉक्टर रोगियों का नियमित चेक.अप नहीं करते थे. कोई बेड खाली नहीं था. हफ्रते दिन बाद वे मर गये. हम दो भाई, तीन बहनें हैं. दो बहनों की शादी नहीं हुई है.
राजू ठाकुर (जैजोर, आंदर, सीवान)
राजेश ठाकुर ने बताया. मेरे भाई राजू ठाकुर (48) उड़ीसा में बड़बील के पास माइन्स में सुपरवाइजर थे. वे भतीजे की शादी में शामिल होने के लिए 25 अप्रैल को गांव आने वाले थे. इसी बीच उन्हें खांसी-बुखार और सांस लेने में तकलीफ होने लगी. डॉक्टर ने बताया कि टाइफाइड है. कोरोना जांच में वे पोजिटिव पाये गये. उन्हें रांची लाकर सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया. आइसीयू में उन्हें देने के लिए ज्योंहि ऑक्सीजन का लीड खोला गया, उसमें ब्लास्ट हो गया. उसी समय उनकी मृत्यु हो गई. वे अस्पताल की भ्रष्ट व्यवस्था की भेंट चढ़ गये. उनके परिवार में पत्नी अंजू देवी और दो बच्चे. मंजीत ((9) और रंजन (7) हैं.
मनोज कुमार शर्मा (नगवां, फुलवारी, पटना)
सावन कुमार शर्मा ने बताया. मैं अपने भाई मनोज कुमार शर्मा को सुबह 10 बजे से पटना के किसी अस्पताल में भर्ती कराने में लगा रहा. उनको ऑक्सीजन की जरूरत थी, लेकिन ऑक्सीजन कहीं भी नहीं था. ‘लाइफ लाइन’ नाम के प्राइवेट अस्पताल ने 20 हजार रु. लेकर उनको भर्ती किया. वहां जब कोरोना जांच पोजिटिव आया तो ऑक्सीजन खत्म होने के बहाने उसने भी रखने से इंकार कर दिया. अनिसाबाद के एक अस्पताल ने हमसे भर्ती करने के लिए 60 हजार रुपये मांगे. हम अगली रात के 3 बजे तक दौड़.धूप कर थक गए. घर लौटना पड़ा. 10 बजे तक उनकी मृत्यु हो गई.
आशिक इमाम खान (मोथा, अरवल, अरवल)
आशिक इमाम खान (70) औरंगाबाद के शमशेर नगर में टीचर थे. पिछले साल, 2020 के 24 अक्टूबर को उनका इंतकाल हो गया. बेटे सफदर इमाम खान ने बताया कि वे बीमार पड़े तो उन्हें अरवल में डॉ. सुनील कुमार के पास ले जाया गया. वहां ऑक्सीजन की व्यवस्था नहीं थी. अरवल के सदर अस्पताल में उनके ईलाज की कोशिश नाकाम रही. अस्पताल ने उन्हें भर्ती नहीं लिया और तुरत पटना रेफर कर दिया. एंबुलेंस से पटना एम्स पहुंचे तो डॉक्टरों ने जांच करने के बाद बताया कि उनकी मृत्यु हो चुकी है. इस बीच उनके इलाज पर एक लाख रु. खर्च हो चुके थे.
उनकी बीबी जमीला खातून बीमार रहती हैं. सुगर व ब्लड प्रेशर बढ़ा रहता है. उन्होंने कहा. मेरे पति बहुत ही सीधा.सादा थे. उन्हें 34 हजार रु. पेंशन मिलते थे. सब लाकर मुझे ही दे देते थे. दो बेटे और दो बेटियां हैं. 5-10 कट्ठा जमीन ही घर की संपत्ति है.
नजाम खान (घुसियां कला, विक्रमगंज, रोहतास)
उस्मान खान ने बताया. भाई नजाम खान (44 वर्ष) मुंबई के भिवंडी में काम करते थे. अभी लॉकडाउन की वजह से वे घर में ही थे. उनको डायरिया हुआ और सांस की कमी हो गई. दरअसल उस समय पूरा गांव ही इससे जूझ रहा था. हम उनको बनारस के एक निजी अस्पताल में ले गए. और 1 जून को उसमें भर्ती करा दिया. 12 जून को उनका इंतकाल हो गया. हमारे कुल 8 लाख रुपये खर्च हो गये. हम गहरे कर्ज में डूब चुके हैं. हमारा पूरा परिवार नोटबंदी, जीएसटी और उसके बाद लॉकडाउन के कारण पिछले चार सालों से आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. उसकी पत्नी नाजरीन और छोटा बेटा और बेटी अब हमारे साथ रहते हैं. उनकी मेडिकल रिपोर्ट में कोविड .19 का जिक्र तक नहीं है. उसके मृत्यु प्रमाण पत्र में कार्डियो रेस्पिरेटरी अरेस्ट(सीआरएफ) को उसकी मौत की वजह बताया गया है.
उर्मिला देवी (बिहटा, तरारी, भोजपुर)
सिद्धनाथ सिंह ने कहा . मेरी पत्नी उर्मिला देवी को बुखार लगा और पेट में दर्द हुआ. मैं उसे तरारी ले गया जहां से उसे पटना रेफर कर दिया गया. वहां मैंने उसे एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया. उसका कोविड-19 का जांच पोजिटिव निकला. 8 दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई. इसमें हमें 2.5 लाख रुपये खर्च करने पड़े. मैंने इसके लिए कर्ज लिया. मेरा एक बेटा है जो बीए करने के बाद गांव पर ही रहता है. अभी तक तो मैंने मुआवजे के लिए आवेदन भी नहीं दिया है.
शमी अहमद खान (माथा, अरवल, अरवल)
फिरोज खान ने बताया. मेरे ससुर शमी अहमद खान (46) को सुगर और किडनी की बीमारी थी. पिछले साल, 2020 के अगस्त महीने में परेशानी बढ़ने लगी. उनको पटना के ऑक्सीजोन अस्पताल में भर्ती कराया कराया गया. उन्हें सांस लेने में भारी दिक्कत हो रही थी. वे कोरोना पोजिटिव निकले. 20 सितंबर 2020 को उनका इंतकाल हो गया. अस्पताल ने जो सर्टिफिकेट दिया उसमें कोविड-19 बीमारी का जिक्र है. लेकिन, नगर परिषद के मृत्यु प्रमाण पत्र में इसे गायब कर दिया गया है.
उनकी दो बच्चियां हैं. ताज कंवर (25) और शाइस्ता परवीन (19). इलाज में करीब 10 लाख से ज्यादा रुपये खर्च हुआ. रिश्तेदारों व जान.पहचान के लोगों से कर्ज लेना पड़ा. उनके इंतकाल के बाद घर की जमीन बेच कर कर्ज चुकाना पड़ा. अब भी करीब 6 लाख रु. की देनदारी है. सरकार की तरफ से हमसे कोई मिलने भी नहीं आया.
मनोज साव (डरैली मठिया, आंदर, सीवान)
राधिका देवी ने बताया. मेरे पति मनोज साव दिल्ली में हेल्पर का काम करते थे. अप्रैल में लॉकडाउन हुआ तो वे घर आ गये. उनको दिल्ली से ही बुखार था. उनके ईलाज के लिए भारी सूद पर कर्ज लेना पड़ा. मैरवां के प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया तो उसने तुरत रेफर कर दिया. उनको गोरखपुर ले जाया गया. वहीं प्राइवेट अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई. उनके ईलाज में बहुत पैसा खर्च हुआ. मृत्यु के बाद अस्पताल ने ही उनका सारा कागज यह कह कर फेंकवा दिया कि घर ले जाने पर इससे बीमारी फैलने का डर है.
राधिका-मनोज के दो बच्चे हैं. एक बेटा, एक बेटी. बेटा मिथिलेश आइएससी करने के बाद नौकरी ढूंढ रहा है. उसे पिता के ईलाज का कर्ज उतारना है.
बैजू केवट (चकिया, पुनपुन, पटना)
चंदन कुमार ने कहा. मेरे ससुर बैजू केवट को बुखार हुआ और सांस की कमी होने लगी. पहले डॉक्टरों से ऑनलाइन संपर्क कर इलाज हुआ. इस बीच कोरोना जांच भी कराया गया. उसकी पोजिटिव रिपोर्ट आ गई. उन्हें मीठापुर (पटना) के सहारा संजय अस्पताल में भर्ती कराया. यह एक पा्रइवेट अस्पताल है जहां हमसे पहले ही 1.5 लाख रुपये जमा करवा लिये गये. इस अस्पताल में उनके इलाज का कुल खर्च 5 लाख रुपये से भी अधिक आया जबकि एक दिन बाद ही 5 मई को 12 बजे उनकी मृत्यु हो गई.
पूनम देवी (पवना, अगिआवं, भोजपुर)
मेरे पति कृष्णा कुमार केशरी (38 वर्ष) को सर्दी.बुखार और खांसी हुआ. फिर उन्हें सांस लेने में कठिनाई होने लगी. आरा में उनका ईलाज हुआ. जब कोई सुधार नहीं हुआ तो पीएदमसीएच पटना में भर्ती कराया गया. मैं 6 दिनों तक अस्पताल में उनके साथ रही. वहीं पर उनकी मृत्यु हो गई. एक पैर कटा होने की वजह से वे कोई काम नहीं कर पाते थे. घर पर ही रहते थे. मेरी 11 साल की दो जुड़वां बच्चियां हैं . वर्षा और जीतू. वे मेरे मायके भभुआ में रहकर एक प्राईवेट स्कूल में पढ़ती है. अब मेरी मदद करने वाला कोई नहीं है. मुझे अपने बच्चों के भविष्य की चिंता है. मेरे पास अपने को खड़ा करने और बच्चों को पढ़ाने का कोई साधन नहीं है. मुझे सरकार से मदद का आसरा है. मैंने इंटर तक की पढ़ाई की है.
पन्ना देवी (काउप, गड़हनी, भोजपुर)
मेरे पति सुदामा सिंह (48) उचित इलाज के अभाव में मर गये. उनको बुखार हुआ था. पहले गड़हनी में डॉक्टर से दिखाया गया. फिर आरा और पटना ले जाया गया. हमने सोचा कि जो कुछ भी मेरे पास है, बेच.बाच कर लगा दूंगी, बस जीवन लौट जाना चाहिए. करीब तीन लाख रुपये लग गए, देह पर देनदारी भी हो गई, लेकिन उनका जीवन नहीं लौटा.
उनका कोरोना जांच पोजिटिव निकला. वे पहले पटना के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती हुए, जहां दो दिनों में 30 हजार रुपये लग गये और कोई सुधार भी नहीं हुआ. मृत्यु के समय वे पीएमसीएच में भर्ती थे.
पत्नी मन्ना देवी रो-रोकर कहती हैं. हमारे बच्चों के लिए कोई राह.रास्ता नहीं हुआ. एक बेटा और दो बेटियां हैं. बेटा बड़ा है. मैट्रिक के बाद उसकी पढ़ाई बंद हो गई. मेरे पास उसको आगे पढ़ाने का पैसा नहीं था. अब वह घर पर रहकर ही खेती.बाड़ी करता है. बेटी सरकारी स्कूल में पढ़ती है. प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने की औकात हमको नहीं है. हमारे रहने के लिए घर.दुआर भी करके नहीं गए कि हम कहें कि सुखी.संपन्न हैं.
सुदामा यादव के इलाज के कागजात घर वालों ने इसलिए नदी में फेंक दिए कि मृतक से संबंधित कोई चीज घर में नहीं रखी जाती. उनकी पत्नी कहती हैं. कोई कागज अब मेरे पास नहीं बचा है. ऐसे में मैं सरकार से क्या उम्मीद करूं?
ज्ञान्ती देवी (काउप, गड़हनी, भोजपुर)
मेरे पति डॉ. किशुन कुमार राम (45) को खांसी-बुखार हुआ. सदर अस्पताल आरा में उनका इलाज हुआ. डॉक्टर ने बताया कि इनको बुखार है और सुगर बढ़ा हुआ है. इलाज होने के बाद बुखार उतर गया. हम लोग घर लौट आये. अगले दिन वे अचानक हांफने लगे. दुबारा सदर अस्पताल, आरा ले जाया गया. डॉक्टर ने फिर कहा कि इनको कोरोना नहीं है, लेकिन ऑक्सीजन चाहिये. यहां नहीं मिलेगा, पटना ले जाइये. इसी बीच वे चल बसे.
डॉ. किशुन कुमार राम मजदूर थे. वे ग्रामीण उॉक्टर भी थे. उनके चार बच्चे हैं. प्रिया कुमारी, रूबी कुमारी, मुकेश और युवराज. सभी बच्चे अभी पढ़ रहे हैं. प्रिया गड़हनी में इंटर की पढ़ाई कर रही है. ज्ञान्ती कहती हैं. अब इनकी पढ़ाई का क्या होगा? इनका भरण-पोषण कैसे होगा?
कांति देवी (सलेमपुर पोखरा, विक्रमगंज, रोहतास)
मेरे पति मनोज राम (35) को पहले हल्की खांसी हुई. उन्होंने गांव के ही डॉक्टर से दवा ली और खांसी कम हो गई. उस दिन के पहले उनको कोई बीमारी नहीं थी. उनको सांस लेने में दिक्कत हो रही थी लेकिन उन्होंने अच्छी तरह से खाना खाया और मुझे जरा भी चिंता नहीं हुई. लेकिन रात में मैं बुरी तरह से डर गई थी . मैंने कभी भी किसी को एक.एक सांस के लिए उनकी तरह से तड़पते नहीं देखा. और उसके बाद वे मर गये. मेरे तीन छोटे.छोटे बच्चे हैं. कृष्ण और सुदामा दो बेटे और बेटी रानी. वे स्कूल जाते हैं. लेकिन, अब मैं उन्हें कैसे पढ़ाउंगी? हमारी झोपड़ी देखिये, आप देख सकती हैं कि बारिश का पानी चू रहा है. यह रात भर टपकती रहती है.
कोशिल्या देवी (दमोदरा, गुठनी, सीवान)
मेरे पति हरिहर भगत (35 वर्ष) को एक रात अचानक सांस लेने में तकलीफ होने लगी. उनके सीने में दर्द भी हो रहा था. मैं उनकी कोई सहायता नहीं कर सकी. उनके लिए कुछ भी नहीं कर पाई. गांव वालों ने कहा कि उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत है, तुम्हे ऑक्सीजन खरीदना पड़ेगा. लेकिन मेरे पास पैसा नहीं था. मैंने किसी तरह से गाड़ी भाड़े भर पैसा जुटाया और उनको लेकर अस्पताल के लिए निकली. घर से निकलते.निकलते, रास्ते में ही मैंने उनको दम तोड़ते हुए देखा. मैं वापस उन्हें घर ले आई और अकेले ही उनके अंतिम क्रिया का इंतजाम की. हर कोई इतना डरा हुआ था कि किसी ने भी आ कर मदद नहीं की. मुझे 12 साल का एक बेटा और 5 साल की एक बेटी है. मेरे पति अपने चार भाईयों में तीसरे थे, लेकिन सबने उन्हें अलग कर दिया है. वे अब हमारे लिए कुछ नहीं करते. मेरे साथ ऐसा होगा, यह मैंने कभी नहीं सोचा था. आप मुझे हिम्मत रखने को कह रही हैं लेकिन मैं हिम्मत कहां से जुटाऊं?
कमला देवी (शेखपुरा, पुनपुन, पटना)
मेरे पति शत्रुघ्न पासवान को सर्दी-खांसी-बुखार था. चामूचक के एक देहाती डॉक्टर से वे इलाज करवा रहे थे. वे ठेला चालक थे और जानीपुर बाजार से पड़ोस के गांवों में सामान ढोते थे. उस दिन बीमारी की हालत में ही वे जानीपुर गये और वहां से गांव के एक आदमी का पलंग और अन्य सामान लाये. सामान उतारने के दौरान ही उनको सीने में जोर से दर्द उठा. वे जमीन पर गिर पड़े और तुरत ही गुजर गये.
शत्रुघ्न पासवान के परिवार की माली हालत उनके निधन के बाद खराब है. उनके 6 बच्चे हैं. सोनी कुमारी और जूली कुमारी . दो बेटियां विवाहित हैं. सुलेखा (13), रागिनी (11), राधिका (8) और पांचू कुमार (6 ) के पालन.पोषण का जिम्मा अब पूरी तरह से मां के कधों पर है. पत्नी कमला देवी ने बताया कि उनके पास पति के शवदाह का खर्चा तक नहीं था. घर में नून.तेल भी नहीं है कि बच्चों को खिलायें. गांव के लोगों के सहयोग से ही घर चल रहा है. लेकिन कब तक?
अधिकांश डॉक्टरों ने कोरोना पीडि़तों को टाइफाइड का रोगी बताकर उनका इलाज किया. देहाती क्षेत्रें में काम करनेवाले मेडिकल प्रैक्टिशनर्स (देहाती डॉक्टरों) ने इससे बचाव व सुरक्षा की मानक दवाओं व इलाज के तरीकों का इस्तेमाल करने की जगह मरीज को पानी चढ़ा देने जैसे तरीके आजमाये. ‘लग गया तो तीर, नहीं तो तुक्का’. मृतकों के परिजनों ने बताया कि फेफड़े में इंफेक्शन व सांस लेने में परेशानी के बीच उनका यह तरीका अंततः जानलेवा साबित हुआ.
दिनेश शर्मा (घुसियां कला, विक्रमगंज, रोहतास)
कामेश्वर शर्मा ने बताया कि मेरा बेटा दिनेश शर्मा (39) गुजरात के एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था. उनको खांसी-बुखार हुआ. डॉक्टर ने बताया कि टाइफाइड हुआ है. उन्होंने साधारण दवायें लीं. जब बीमारी ज्यादा बढ़ गई तो घर चले आये. पहले डिहरी और फिर आरा में इलाज हुआ. उनका सुगर लेबल बहुत बढ़ा हुआ था. आरा सदर अस्पताल में ही उनकी मृत्यु हो गई.
उनकी पत्नी दुख से कमजोर हो गई हैं. उनको एक बेटा और दो बेटियां हैं. एक बेटी की शादी उनकी मृत्यु के बाद हुई. बेटा गोविंदा 11 वीं और बेटी नेहा कुमारी 9वीं क्लास में पढ़ती है. बीमारी पर करीब 70 हजार रु. खर्च हो गये. हम लोग बहुत गरीब हैं. वह बहुत सीघा-सादा था.
अब्दुल माजिद (पेउर, सहार, भोजपुर)
बीबी सईदा बानो ने बताया कि 1 मई से मेरे पति अब्दुल माजिद की तबीयत खराब हुई गांव के ही डॉ. मुख्तार ने उन्हें दवा दी, पानी चढ़ा दिया. दो दिन बाद उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी. जब हालत ज्यादा खराब हुई तो बोले कि हमारी तबियत ज्यादा खराब लग रही है. लगता है कि अब हम नहीं बचेंगे. मुझे अरवल ले चल कर दिखाओ. जहानाबाद से मेरे मायके वाले बुला रहे थे. तब बोले थे कि घर अकेला है और अम्मी बीमार. मैं घर छोड़कर कहां जाऊंगा?
उनको अरवल में डॉं. विजय से दिखाया गया. उन्होंने बताया कि टाइफाइड है, लेकिन जांच नहीं करवाया, केवल दवा और इंजेक्शन दिये. जब हालत बिगड़ती गई. तब बोले कि हमें कहीं और ले चलो. मेरे बहनोई गाड़ी लेकर आये. हम उन्हें जहानाबाद ले गये. केवल सरकारी अस्पताल खुला था, जिसमें उनको भर्ती कराया गया. ऑक्सीजन लेवल नीचे गिर रहा था. वे अस्पताल में 13 दिन रहे. सारी दवाईयां हमें बाहर से मंगानी पड़ी. कोई जांच भी नहीं हुआ. डॉक्टर बोलते रहे कि ये ठीक हो जायेंगे.
संतोष उर्फ राजकुमार (सकरी, अरवल, अरवल)
पत्नी आशा कुमारी ने बताया कि उनको दो-तीन दिन बुखार लगा था. अरवल में डॉ. सुनील राय देखने के बाद बोले कि टाइफाइड हुआ है. खून-पेशाब का जांच हुआ, लेकिन कोरोना का नहीं. सुबह उन्होंने खाना खाया और दूध भी पीया. जब शौच के लिए गए तो पसीना-पसीना हो गये और जोर.जोर से हांफने लगे. उसी दिन उनकी मत्यु हो गई. वे पिछले 8 साल से शिक्षक की नौकरी कर रहे थे. हमारे दो बेटे हैं. बबलू (18 ) और शुभम् (16). एक बेटी है. रूबी कुमारी (14 साल).
अपने प्रियजनों, खास तौर जीवन साथी और इकलौती संतान के अचानक गुजर जासे हजारों लोग गहरे अवसाद से गुजर रहे हैं और अब जीना नहीं चाहते.
आरती (पसौर, चरपोखरी, भोजपुर)
पथराया-सा चेहरा हो गया है उसका. उसके पड़ोसी ने हमें बताया कि वह न खा रही है और न सो रही है. ‘‘वह अपने बच्चों को देखती और रोती रहती है.’’ आरती ने हमसे कहा, ‘‘मेरे माता-पिता बहुत दूर रहते हैं और मेरे पास फोन भी नहीं है. मैं उनसे हर रोज बात भी नहीं कर पाती. मेरे रिश्तेदार मुझे नहीं चाहते. मेरा पति मुझसे प्यार करता था, लेकिन वह जा चुका है. प्यार अब नहीं रहा. मैं अब जीना नहीं चाहती.’’
बुरहान अहमद (पेउर, सहार, भोजपुर)
तहसीन अहमद की मां शकीला बानो कोविड-19 से मर गईं. उनकी अम्मी और अब्बा दोनों को खांसी-बुखार हुआ. 13 अप्रैल को अम्मी की तबीयत ज्यादा खराब हो गई. वे सांस नहीं ले पा रही थीं. ऑक्सीजन लेबल 44 प्रतिशत था. उनको एम्स, पटना में भरती कराने की कोशिश नाकाम रही. आखिर में पीएमसीएच में जगह मिली. रैपिड टेस्ट निगेटिव आया और आरटीपीसीआर पोजिटिव. 26 अप्रैल की रात वे चल बसीं.
उनकी मौत से उसके अब्बा बुरहान अहमद को गहरा धक्का लगा है. वे 20 दिनों तक ‘कोमा’ की अवस्था में रहे. हम जितनी देर तक वहां रहे, वे अपनी बीबी के लिए रोते रहे. तहसीन ने बताया कि उनका अच्छी तरह से खाना.सोना नहीं हो पा रहा है. तहसीन एक ओर जहां अपने अब्बा के लिए डरा हुआ है, वहीं खुद के शोक से भी जूझ रहा है . एक ही साथ दोनों मोर्चे संभाल रहा है.
पूनम देवी (चकिया, पुनपुन, पटना)
वे कहती हैं ‘मेरे पति बैजू केवट बहुत बढि़या आदमी थे. वही अब बुझा रहा है. हमको बेसहारा कर दिए. मैं सो नहीं पा रही हूं. रात भर रोती रहती हूं. बड़ी खराब लग रहा है. दो महीना हो गया घर से निकले. चुपचाप बैठे रहते हैं. सोचते रहते हैं कि क्या कर लें?’
राधेश्याम (जयजोर, आंदर, सीवान)
राधेश्याम ने कहा. मेरे छोटे भाई की पत्नी बिंदा देवी को कोरोना हो गया था. हम उसे अस्पताल ले गए. हम पहले एक निजी अस्पताल में और फिर हमने एक सरकारी अस्पताल में एक बेड हासिल किया. हमने उसके इलाज के लिए कर्ज लिये, फिर भी वह मर गई. जब उसका मृत शरीर घर पर लाया गया गया, मेरी पत्नी श्रीमती उसे देखते ही ढह गईं. तब उनको भी वे ही लक्षण थे. बुखार, खांसी, सांस की कमी. लेकिन मेरे पास पैसा नहीं था. इसलिए मैंने उनके इलाज का कोई प्रयास नहीं किया. तीन दिनों के अंदर वे भी चल बसीं. मेरे 3 बच्चे हैं, भाई के भी बच्चे हैं. उसने अपने घर में ताला लगा दिया और बाहर कमाने चला गया. कहता है. अब यहां रह के क्या होगा. मैं बिल्कुल नर्वस हो गया हूं. अब धर का संचालक ही नहीं रही. सब कुछ तहस.नहस हो गया है. एक ही घर में दो.दो आदमी मर गया, सरकार ने कोई मदद नहीं किया. जलाने-फूंकने का भी खर्च नहीं. मुझे कुछ भी समझ में नहीं आता. अब काम करने का क्या मतलब है जब वह नहीं रही? कुछ भी करने का क्या मतलब है? मैं न सो रहा हूं, न खा रहा रहा हूं. मैं जहर खाकर मर जाना चाहता हूं.
धुरान ठाकुर उर्फ कुंदन कुमार (भेड़रिया सियारामपुर, पालीगंज, पटना)
पिता रवीन्द्र ठाकुर व अन्य परिजनों ने बताया. धुरान ठाकुर (25) सूरत के एक सैलून में काम करते थे. अप्रैल.मई में जब वहां कोविड महामारी अपने चरम मुकाम पर थी, वे वहीं थे. जून महीने में वे अपने घर लौटे थे. वे एक दिन खेत में घास काटने गए. जब लौटे तो पहले एक पैर में दर्द शुरू हुआ जो धीरे.धीरे पूरे शरीर में फैलता चला गया. परिजन उनको पटना ले गये. पीएमसीएच ने उनको भर्ती करने से इंकार कर दिया. वे जेबीएन हर्ट क्लिनिक पहुंचे तो वहां भी वहीं जवाब मिला. सत्यम् अस्पताल में इलाज का अवसर ही नहीं मिला. कुछ ही देर बाद उनकी मृत्यु हो गई. अस्पताल ने उनकी मृत्यु का कारण ‘कार्डियक भैस्कुलर अरेस्ट’ बताया है. जाहिर है कि वे ‘ब्लड क्लॉटिंग’ की वजह से मरे. बहुतेरे कोरोना मरीजों में महीनों बाद यह जानलेवा बीमारी पैदा हो जाती है.
धुरान ठाकुर अपने चार भाइयों में सबसे बड़े थे. हम उनकी मृत्यु के दो दिनों बाद ही पहुंचे थे. उनकी पत्नी है सीमा और उनके दोनों बच्चों के नाम हैं मुनमुन (डेढ़ वर्ष) और गुनगुन (7 माह).
साधुशरण गोंड़ (बीरमपुर, कोईलवर, भोजपुर)
मुन्नी देवी ने बताया. मेरे पति साधुशारण गोंड़ को तीन-चार दिनों तक खांसी-बुखार रहा. घर में मेरे अलावा कोई नहीं था. कोरोना के भय से अगल-बगल को कोई पूछने भी नहीं आया. मेरी तबीयत भी बहुत खराब हो गई. गांव ही के डॉक्टर राजू भईया को बुला कर सुई.दवाई करवाई. फिर वे पूरा हांफने लगे. उनको ऑक्सीजन की कमी थी. हम आरा ले जाना चाहते थे. शाम का समय था. लोग बोले कि कहां ले जाइयेगा, ऑक्सीजन आरा में नहीं है, घर पर ही रखिये. साथ चलने वाला कोई आदमी नहीं मिला. सुबह पांच बजे ही वे मर गये.
राम एकबाल केवट (पुरैनिया, पुनपुन, पटना)
मेरे गांव के कोरोना मृतक संजय केवट की अंतिम क्रिया में डर के मारे कोई शामिल नहीं हुआ. गाड़ी वाले ने भी श्मशान घट तक पहुंचाने के लिए पांच हजार रु. लिये.
रवि सोनी (मैरवां, सीवान)
कोरोना की दूसरी लहर बहुत प्रचंड थी. मेरे दादा, दादी और एक चाचा नहीं रहे. मेरे पिता लखी बाबू और एक चाचा पन्नालाल प्रसाद कोरोना की पहली लहर में गुजर गए. मेरी दूकान करीब डेढ़ महीने बंद रही. हमलोग बहुत शर्मिंदगी महसूस करते थे और घर से बाहर नहीं निकलते थे. बाद में, जब स्थिति सामान्य हुई तो दूकान खुली. लोगों से मिलना-जुलना शुरू हुआ. लखी बाबू के सभी भाई ब्यवसाय करते थे.
उमेश ठाकुर (कुलहडि़या, कोइलवर, भोजपुर)
गामा ठाकुर ने बताया – मरे बेटे उमेश ठाकुर (45 वर्ष) को पहले खांसी-बुखार हुआ. इलाज के लिए हम लोग कोईलवर ले गये. वहां डॉक्टर ने आरा सदर अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. सदर अस्पताल में एक दिन रखने के बाद डॉक्टर बोला पटना ले जाइये. पटना ले जाते समय वे लगातार हांफ रहे थे. पटना में एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया था. कुछ देर तक आइसीयू में रहे. फिर उनकी मृत्यु हो गई.
अस्पताल ने मृत्यु का कारण ‘हार्ट अटैक’ बताया है. मृतक के दो बेटे और एक बेटी है. इनकी उम्र क्रमशः 18 साल, 10 साल और 16 साल है.
उदय मिश्रा (भेड़रिया सियारामपुर, पालीगंज, पटना)
उज्जवल मिश्रा ने बताया. मेरे पिता उदय मिश्रा (55) को पहले खांसी-बुखार हुआ था. पालीगंज में डॉ. श्यामनंदन शर्मा ने उनका इलाज किया और 7.8 इंजेक्शन लगाये. उनका बुखार उतरता था और फिर लौट आता था. उनका ऑक्सीजन लेबल 95.96 रहता था, लेकिन स्वाद और सूंघने की शक्ति चली गई थी. वे दो-तीन कोरोन्टाइन रहे. अचानक सुबह 4 बजे सीने में दर्द हुआ और वे चल बसे. कोरोना जांच नहीं हुआ था, लेकिन कोरोना का ही इलाज हुआ. डॉक्टर ने पुर्जे पर यह नहीं लिखा.
संतोष कुमार सिंह (पसौर, चरपोखरी, भोजपुर)
बड़े भाई हरेंद्र कुमार सिंह ने बताया. मेरे छोटे भाई हरेन्द्र कुमार (48) पहले खांसी-बुखार हुआ. आगे चलकर सांस लेने में तकलीफ होने लगी. कोरोना जांच और इलाज के लिए वे डिहरी ऑन सोन (रोहतास जिला) के अनुमंडल अस्पताल में गये. लेकिन इलाज से कोई लाभ नहीं हुआ. उनकी मृत्यु से एक दिन पहले जो जांच रिपोर्ट मिली उसमें उनको कोरोना निगेटिव बताया गया. उनकी पत्नी का नाम अनिता देवी है. दो बच्चे हैं. श्वेता कुमारी (19 वर्ष) और विभु कुमार (17 वर्ष).
अहमद हुसैन खान (घुसियां कला, विक्रमगंज, रोहतास)
अंजुम आरा ने बताया. मेरे पति अहमद हुसैन खान (40 वर्ष) बक्सर जिले के सरैंया में मदरसा टीचर थे. उनको बुखार और खांसी हुआ. सांस फूलने लगी. सबसे पहले हम उन्हें जमुआर के नारायण अस्पताल में ले गये. उसने उनको अपने यहां भर्ती नहीं लिया. तब हम सासाराम के सदर अस्पताल ले गये. वहां उनका कोरोना जांच हुआ जो पोजिटिव निकला. सदर अस्पाल में इलाज की अच्छी व्यवस्था नहीं थी. उनकी हालत बिगड़ती ही जा रही थी. उनको हर्ष अस्पताल (प्राइवेट) में भर्ती कराया गया. उसने एचटीसीटी जांच कराने को कहा और 10 हजार रुपये जमा कराये. जांच के दौरान ही उन्होंने दम तोड़ दिया. आवेदन करने के बाद भी हमें अब तब मुआवजा नहीं मिला.
शिवदयाल पंडित (शेखपुरा, पुनपुन, पटना)
सतीश कुमार ने बताया कि मेरे पिता शिवदयाल पंडित (44) को खांसी-बुखार था. सबसे पहले वे महावीर अस्पताल गये. फिर एनएमसीएच में भरती हुए. वहां कोरोना जांच हुआ तो रिपोर्ट निगेटिव आयी. अस्पताल ने उनको पीएमसीएच में रेफर कर दिया. लेकिन वे घर चले आये. 30 अप्रैल को जब वे एम्स, पटना में दिखाने गये. वहां उनका आरटी-पीसीआर हुआ. वे कोरोना पोजिटिव निकले. इस बीच उनकी सांस फूलने लगी. उनका ऑक्सीजन लेवल कम था. 3 मई को वे एम्स में भरती हुये. पहले उन्हें जेनरल वार्ड में रखा गया, बाद में आइसीयू में लाया गया. वहां उन्हें ऑक्सीजन दिया जाने लगा. उनकी हालत संभलने लगी और अस्पताल ने दो दिनों बाद डिस्चार्ज करने को कहा. 20 मई को अचानक उनकी हालत फिर से बिगड़ गई. उन्हें दोबारा आइसीयू में ले जाया गया जहां उनका निधन हो गया. कारोना पोजिटिव रिपोर्ट और आवेदन जमा करने के बाद भी हमें दो महीने से टहलाया जा रहा है.
अनंत विश्वकर्मा (परसादी इंग्लिश, अरवल)
अनंत विश्वकर्मा (60) बिजली मिस्त्री थे. वे घर-घर जाकर वायरिंग का काम करते थे. उनको खांसी-बुखार होने के बाद सांस लेने मे तकलीफ होने लगी. उनकी पत्नी चिंता देवी ने रोते हुए बताया ‘अरवल के डाक्टर की सलाह पर उनको एम्स, पटना में भर्ती कराया गया. वहां हुए कोरोना जांच में वे पोजिटिव पाये गये. लगभग 25 दिन वहां रहने के बाद वे चल बसे. इलाज के दौरान डॉक्टरों ने मुझे उनसे मिलने भी नहीं दिया. मुझे केवल उनका शव देखने को मिला. चिंता देवी की 4 लड़कियां हैं और तीन लड़के. उनकी छोटी बहू उनके साथ रहती है. बेटा भी बिजली मिस्त्री है. मुझे भी अभी तक मुआवजा नहीं मिला.
कोरोना महामारी के कारण अस्पतालों में गैरकोविड मरीजों का इलाज बंद होने और लॉकडाउन के कारण आवागमन कठिन होने के कारण भी कई लोगों को जान गंवानी पड़ी.
रूबी देवी (काउप, गड़हनी, भोजुपर)
रूबी देवी (28 वर्ष), पति – मुकेश राम, ग्राम – काउप, गड़हनी, जिला. भोजपुर की मौत इसका उदाहरण है. गर्भवती यबी देवी को 25 अप्रैल को ब्लिडिंग शुरू हो गई, लेकिन न तो गड़हनी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में और न ही आरा सदर अस्पताल में गैरकाविड मरीज इलाज की कोई व्यवस्था थी. सदर असपताल का प्रसूति विभाग बंद था. प्राइवेट डॉक्टर ने भी शीला को भर्ती नहीं किया. भागते-दौड़ते अततः प्राइवेट साईं अस्पताल में रूबी देवी भर्ती हुई. तबतक शरीर से काफी खून निकल चुका था और रूबी देवी ने दम तोड़ दिया.
श्रीराम (सलेमपुर पोखरा, विक्रमगंज, रोहतास)
पत्नी सोनपातो देवी ने बताया कि मेरे पति की आंख के आपरेशन के बाद उनकी आंख में घाव हो गया. उनका इलाज कोलकाता के एक अस्पताल से चल रहा था. लॉकडाउन की वजह से वे कोलकाता नहीं जा पाये. मई महीने में उनकी मृत्यु हो गई. उनके दो बेटे व एक बेटी है. बड़े बेटे राजकुमार की उम्र महज 14 साल है. घर में अब कोई कमाने वाला नहीं है.
रकीबा खातून (पेउर, सहार, भोजपुर)
नौशाबा खातून (पेउर, सहार) की चार बच्चियां हैं. अफ्रशां निगार, नकीबा निगार और रकीबा खातून बीए कर चुकी हैं, नसीबा खातून इंटर में पढ़ रही हैं. बेटी रकीबा कहती है. ‘‘हमारी अम्मी अभी एकदम जवान थीं. वह घर का सारा काम खुद करती थीं. हमें कुछ नहीं करने देती थीं. वे अचानक बीमार पड़ गईं और हमें छोड़ गईं. देखिये, हमलोग अभी कितने छोटे-छोटे है.’’
आफताब आलम (पेउर, सहार, भोजपुर)
हम चार भाई हैं, सभी अलग-अलग रहते हैं लेकिन मेरी अम्मी आशिया खातून (60) मेरे साथ रहती थीं. मेरे अब्बा 10 साल पहले ही नहीं रहे. मेरी बीबी का भी 3 साल पहले इंतकाल हो गया. मेरे बच्चों का देखभाल अम्मी ही करती थीं. मुझे इस बात का फख्र था कि अम्मी मेरे पास थीं. उनकी तबीयत 15 मार्च के आसपास खराब हो गई. उन्हें बुखार था और देह-हाथ में दर्द हो रहा था. वे बहुत कमजोरी महसूस कर रही थीं. उनका इलाज चला, कई इंजेक्शन पड़े, वे कुछ ठीक हो रही थीं कि अचानक गुजर गयीं.
सोनी खातून (मोथा, अरवल, अरवल)
सोनी खातून ने अपने शौहर शफीकुल्लाह खान को याद करते हुए कहा. वे छह फीट लंबे, खूबसूरत व मजबूत आदमी थे. वे अब इस दुनिया में नहीं हैं. दो छोटे बच्चों अफरीदी (11) और असगर (8) के साथ मुझे अकेला छोड़ गये हैं. वे दोनों प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं. उनके पिता उन्हें अच्छी तालीम देना चाहते थे. अभी दूकान भी बंद है. अब मैं उन्हें कैसे तालीम दे पाऊंगी?
अंजुम आरा (घुसियां कला, विक्रमगंज, रोहतास)
मेरे शोहर अहमद हुसैन खान बहुत ही अच्छे इंसान थे. खुद भी पढ़े-लिखे थे और अपने बच्चों को भी अच्छी तालीम देना चाहते थे. बताया कि हमारे चार बच्चे हैं. सना खातून (16), जेबा खातून (13), अर्सलान (10) और जैनब (7). सभी बच्चे स्कूल में हैं. उनके अब्बा अरशद हुर्सन खान और अम्मी जमाला खातून समेत उनके तीन भाइयों का परिवार इस हादसे से उबर नहीं पा रहा है.
सुनयना देवी (पवना, अगिआवं, भोजपुर)
मेरा बेटा रोहित कुमार (24) वापी जिले (गुजरात) के सारीगांव में एक कैंटीन में खाना बनाता था. वहां उसे खांसी और बुखार हुआ. सांस फूलने लगी. प्राईवेट हो या सरकारी, किसी भी अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं मिला. एक प्राईवेट अस्पताल में जगह मिली. वहीं पर उसकी मृत्यु हो गई.
वह मेरा सबसे छोटा, सबसे अच्छा बेटा था. उसे मरते समय भी मेरी ही चिंता थी. 15 तारीख को घर आने को भी बोला था. अगले साल उसकी शादी होने वाली थी. मैं और मेरे पति अब वृद्ध हो चुके हैं. मेरे दोनों बड़े बच्चों को हमसे बहुत मतलब नहीं रहता. जिससे आसरा था वह तो मुझे बेसहारा छोड़ गया?
कोविड के दूसरे चरण की भयावहता को हम सबने महसूस किया है. शायद ही हममें से कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसके किसी प्रियजन की मौत नहीं हुई हो. हम सबने ऑक्सीजन के अभाव में लोगों को मर ते देखा है. लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण हमारी आंखों के सामने लोग मरते रहे और हम चाहकर भी उनकी जिंदगी नहीं बचा सके. दूसरे चरण के तांडव से हम शायद ही कभी उबर पायें और तीसरा चरण दस्तक भी देने लगा है. मौत की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भोजपुर जिले के कोइलवर प्रखंड स्थित कुल्हडि़या गांव में 69 और बड़हरा के कोल्हारामपुर में 45 मौतें हुईं. कुल्हडि़या में तो जनवरी महीने में ही 13 मौतें हो चुकी थीं.
लेकिन आजादी के बाद की इस सबसे बड़ी महामारी के प्रति सरकार का रवैया बेहद ही चिंताजनक है. स्वास्थ्य मंत्री बहुत ही निर्लज्जता से झूठ बोलते हैं कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत हुई ही नहीं. मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा रहा था कि अप्रैल-मई के महीने में पूरे राज्य में 2 लाख के करीब मौतें हुई हैं, जो हमारी जांच से भी सही साबित हो रहा है. एक दावे के अनुसार यह संख्या 4 लाख से कम नहीं है. इसके बरक्स कोविड से मौत का सरकारी आंकड़ा महज 9646 है, जिसमें कोविड के प्रथम चरण के दौरान हुई 1500 मौतें भी शामिल हैं. अर्थात सरकार मौत का 20 गुना आंकड़ा छुपा रही है. यह एक ऐसा अपराध है जिसके लिए सरकार को कभी माफ नहीं किया जा सकता है. सरकार सच्चाई पर पर्दा डालने के लिए जानबूझकर यह आंकड़ा छुपा रही है.
हमारी पार्टी ने बिहार के 13 जिले के 79 प्रखंडों के 607 पंचायतों के 1904 गांवों में 1 अप्रैल 2021 से लेकर 31 मई 2021 तक अर्थात महामारी के दूसरे चरण के दौरान मारे गए लोगों का आंकड़ा निकाला है. (देखें, परिशिष्ट-1, पेज नंबर- 39). इसके मुताबिक उपर्युक्त जांचे गए 1904 गांवों में 7200 कोविड लक्षणों व 784 लोगों की अन्य कारणों से मौतें हुई हैं. अर्थात कुल 7984 मौतें हुईं. इनमें हमें 1114 व्यक्ति के कोविड पॉजिटिव होने व 320 लोगों के कोविड निगेटिव होने का आंकड़ा मिला है. यह कुल 1434 होता है, जबकि 6550 मृतकों की कोई जांच ही नहीं हुई. अन्य कारणों से मृत 784 लोगों में एक छोटा सा हिस्सा स्वाभाविक या पहले से गंभीर रूप से बीमार लोगों का है. इसका बड़ा हिस्सा ऐसे लोगों का है जो महामारी के कारण अस्पतालों में गैरकोविड मरीजों का इलाज बंद होने व लॉकडाउन के कारण आवागमन बाधित होने से मारे गए. सरकार का फर्ज बनता है कि वह इन्हें भी मुआवजा दे.
हमारे द्वारा जांचे गए गांव बिहार के कुल गांवों के 4 प्रतिशत होते हैं. इनमें ही 7200 कोविड से हुई मौतों का आंकड़ा है, जबकि बिहार में तकरीबन 50 हजार छोटे.बड़े गांव हैं. इसलिए मौत का वास्तविक आंकड़ा सरकारी आंकड़े के लगभग 20 गुना से अधिक 2 लाख तक पहुंचता है. हमारी टीम शहरों अथवा कस्बों की जांच न के बराबर कर सकी है. यदि हम ऐसा कर पाते तो जाहिर है कि यह आंकड़ा और अधिक हो जाएगा.
कोविड लक्षणों से मृतकों में 15.47 प्रतिशत लोगों की कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आई. महज 19.91 प्रतिशत ही कोविड जांच हो पाई. 80.81 प्रतिशत मृतकों की कोई जांच ही नहीं हो पाई, जो कोविड लक्षणों से पीडि़त थे.
कुल मृतकों के आंकड़े में 3957 लोगों ने देहाती, 2767 लोगों ने प्राइवेट व महज 1260 लोगों ने सरकारी अस्पताल में इलाज कराया. यह आंकड़ा साबित करता है कि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था किस कदर नकारा साबित हुई है और लोगों का विश्वास खो चुकी है. इन मृतकों में महज 25 लोगों को मुआवजा मिल सका है. हाल के दिनों में मुआवजा की संख्या में कुछ वृद्धि हुई होगी.
ये आंकड़े कोविड पर सरकार द्वारा लगातार बोले जा रहे झूठ को बेनकाब करते हैं. यदि इसके प्रति सरकार और हम सब गंभीर नहीं होते हैं, तो आखिर किस प्रकार संभावित तीसरे चरण की चुनौतियाें से निबट पायेंगे?