कोविड-19 की दूसरी लहर अप्रैल.मई के महीनों में अपने चरम पर थी. बिहार में इस महामारी से मरने वालों की सही संख्या को लेकर जारी विवाद अभी तक थमा नहीं है. इस बीच न जाने कितने मृतकों के शव ‘शववाहिनी’ गंगा में बहाये, श्मशान घाटों पर जलाये और कब्रिस्तानों में दफनाये गए होंगे.
भाकपा(माले) की राज्य कमेटी ने बिहार के हर गांव.टोले में कोरोना मृतकों को श्रद्धांजलि देने और साथ ही, उनकी गिनती करने के लिए ‘अपनों की याद कार्यक्रम आयोजित करने की कोशिशें की. इसी दौरान कई जिलों के सैकड़ों गांवों में मृतकों की संख्या और उनके इलाज, कोविड-19 बीमारी की जांच और सरकार की ओर से मृतकों के आश्रितों को दिये जानेवाले मुआवजे की स्थिति और साथ ही, गांव स्तर से लेकर जिला स्तर तक के सरकारी अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था के बारे में भी तथ्य संग्रह किए गए.
भाकपा (माले) पोलित ब्यूरो सदस्य कॉ. कविता कृष्णन, केन्द्रीय कमेटी सदस्य संतोष सहर और केन्द्रीय मुख्यालय के सदस्य अरूण कुमार ने इस अभियान में शामिल होते हुए राज्य के कई जिलों का दौरा किया, कई गांवों में गए और मृतकों के आश्रितों व परिजनों से बातचीत की और उसका ऑडियो-वीडियो डाक्यूमेंटेशन किया.
मोदी-नीतीश की केन्द्र-राज्य सरकारें कोरोना महामारी से निपटने में न केवल पूरी तरह से नाकाम रहीं हैं बल्कि इस सच्चाई से लगातार आंख चुराने की कोशिशों में लगी हुई हैं. प्रधानमंत्री मोदी कह रहे हैं कि महामारी मानवता का सवाल है, इसे राजनीति का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए. उनकी यह बात इसकी स्वीकारोक्ति नहीं है कि उनकी राजनीति मानवता के सवालों से संपूर्ण संबंध विच्छेद कर चुकी है?
उनके ही सुर में सुर मिलाते हुए संघ.भाजपा नेता एक से बढ़कर एक झूठ गढ़ने में लगे हुए हैं. बिहार के भाजपाई स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने तो यहां तक कह दिया कि कोरोना लहर के दौरान बिहार के अस्पतालों में मरीजों को दिए जाने वाले ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं थी. एक की भी मृत्यु ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है.
मृतकों के परिजनों और बिहार के ग्रामीण क्षेत्रें में रहने वाले लोगों से हुई यह बातचीत एक ओर जहां कोविड-19 की दूसरी लहर की भयावहता, प्राणवायु के अभाव में दम तोड़ते लोगों की बेचारगी और अपने प्रियजनों को अपनी आंखों के सामने दम तोड़ते देखने वाले परिजनों – माताओं, पत्नियों, भाई-बहनों की पीड़ा को दर्ज करने की कोशिश है, वहीं यह दूसरी ओर बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली और असंवेदशीलता की एक तस्वीर खींचने का भी प्रयास है.
केंद्र.राज्य की भाजपा शासित सरकारें इस महामारी व इसके इलाज से जुड़ी असहमतियों को भी देशद्रोह ठहराने और उसे कुचलने पर अमादा है. ऐसे में असहमति के स्वरों को और भी जोरदार बनाना होगा. ‘तुम नहीं चारागर, कोई माने मगर, मैं नहीं मानता, मैं नहीं जानता.’
लोगों को अच्छी और सस्ती स्वास्थ्य सुविधायें मिलनी चाहिए. यह उनका अधिकार है.आइये, हम सब मिलकार इसे हासिल करने के लिए मिल-जुल कर संघर्ष करें.
भाकपा (माले) बिहार राज्य कमेटी द्वारा प्रकाशित
अगस्त 2021
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